आनंद ( गुजरात). एकात्म मानव दर्शन विषय पर भारतीय विचार मंच द्वारा आनंद (गुजरात) में एक दिवसीय प्रांत स्तरीय कार्यकर्ता प्रशिक्षण वर्ग का आयोजन किया गया. उद्धघाटन सत्र में एकात्म मानव दर्शन अर्ध शताब्दी समिति, गुजरात प्रांत की घोषणा की गई.
अभ्यास वर्ग की भूमिका रखते हुए श्री श्रीकांत भाई काटदरे, संयोजक – प्रज्ञा प्रवाह (पश्चिम, मध्य एवं राजस्थान क्षेत्र) ने कहा कि पंडित दीनदयाल जी द्वारा 1964 -65 में मुंबई, उदयपुर, विजयवाड़ा आदि स्थानों पर दिये गये भाषणों में एकात्म मानव दर्शन विषय रखा गया. आज जब विश्व विभिन्न वादों में उलझा हुआ है, तब यह विचार किस प्रकार आधार बन सकता है और भारत किस प्रकार इस मार्ग पर चलकर विश्व कल्याण कर सकता है, इसका विचार करने के लिये तथा कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण द्वारा विविध संगठनो के माध्यम से समाज में पहुंचे, ऐसी कल्पना हैं.
प्रथम सत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य डॉ. बजरंग लाल गुप्त ने कहा कि दीनदयालजी को समझने के लिये भारतीय मन और मानस चाहिये. मात्र परिचय, शब्दावली व संकल्पनाओं से दीनदयालजी को नहीं समझा जा सकता. बजरंग लालजी ने कहा कि दीनदयालजी से जब अन्य वादों (ism) के विषय में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि पश्चिम विचार में मुलभूत खामियां हैं, यह घोर प्रतिक्रिया से निकला है और प्रतिक्रिया से आया कोई भी विचार शाश्वत नहीं होता. पंडितजी ने बताया कि हमारे वेद और पुराण में सभी कुछ है. पुरातन को युगानुकूल बनाकर नवीन को देशानुकूल बनाने का विचार हमें दीनदयालजी ने दिया. वही एकात्म मानव दर्शन हैं
उन्होंने कहा कि विविधता जीवन का यथार्थ (Fact of Life) है, पश्चिम में विविधता में विभिन्नता ढूंढ़ने का काम हुआ हैं. हमें विविधता में एकता ढूंढ़ने का कार्य करना है. हमें समग्र समन्वित एकात्म विश्व दृष्टि लानी होगी. हमारी परंपरा में प्रकृति को भगवान माना जाता है, जबकि पश्चिम में प्रकृति को दासी माना जाता है.
श्री बजरंगलालजी ने बताया की जब पंडितजी से पूछा गया कि मनुष्य क्या हैं ? तब पंडितजी ने बताया की मनुष्य यानि शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा इन चारो का संकलन. अतः मनुष्य कल्याण की योजना बनाते समय मनुष्य की आवश्यकताओं का विचार होना चाहिये. मात्र शरीर की नहीं वरन इन चारों की पूर्ति करने वाली योजना ही मनुष्य को सुखी बना सकती है, यह ध्यान रखना आवश्यक है.
व्यक्ति और समाज के बारे में उन्होंने कहा कि समाज व्यक्तियों से मिलकर बनता हैं. व्यक्ति मरणशील है, जबकि समाज चलता रहता हैं. राष्ट्र एवं राज्य के विषय में पंडितजी ने राजनीति में रहते हुए भी बहुत हिम्मत से कहा कि भारत सेक्युलर स्टेट नहीं हैं. हमारा आदर्श धर्मराज है और हमारे धर्मराज की संकल्पना धार्मिक नहीं हैं. उन्होंने दो बातें भारपूर्वक कहीं- एक राष्ट्र को जागृत करना और दूसरी विराट का जागरण करना. उनके अनुसार संगठित कार्यशक्ति का निर्माण किये बिना कोई कार्य नहीं हो सकेगा. बजरंगलालजी ने कहा कि दीनदयालजी को समझने के लिये भगवद् गीता की तरह एकात्म मानव दर्शन का मनन करना होगा, यदि एक वाक्य में कहें तो अतीत का गौरव, वर्तमान का यथार्थ आकलन कर भविष्य की महत्वकांक्षा के साथ ले चिति के प्रकाश में निराश हुए बिना नवरचना का प्रयास करते रहना ही एकात्म मानव दर्शन है.
अभ्यास वर्ग के अन्य वक्ता सुश्री इन्दुमति बहन काटदरे (सचिव, पुनरुत्थान ट्रस्ट) ने सुन्दर शब्दों में एकात्म मानव दर्शन में पारिभाषित शब्दों के अर्थ की व्याख्या की. उन्होंने बताया की एकात्म यानि आत्मा एक संकल्पना है, सचराचर में आत्मा एक ही है. यही भाव एकात्मता का भाव है. एकात्म भारत की पहचान है. शिक्षण के विषय पर इन्दुमति बहन ने कहा कि शिक्षण धर्म का प्रतिनिधित्व करता है अतः शिक्षण कभी भी राज्य सत्ता के हाथ में नहीं होना चाहिये.
विभिन्न संगठनों द्वारा इस विषय पर वर्षभर के आयोजन तथा सूचन संबंधी सत्र गुजरात के प्रांत कार्यवाह श्री यशवंतभाई चौधरी ने लिया. इस अवसर पर एकात्म मानव दर्शन – भारतीय चिंतन की आधुनिक प्रस्तुति का विमोचन भी किया गया.
डॉ. जयंतीभाई भाडेसिया (प्रांत संघ चालक, गुजरात प्रांत), श्री चिंतनभाई उपाध्याय (प्रांत प्रचारक, गुजरात प्रांत) सहित विभिन्न संगठनों के प्रमुख कार्यकर्ता इस अवसर पर उपस्थित रहे. कार्यक्रम का संचालन श्री देवांग आचार्य (संयोजक, एकात्म मानव दर्शन अर्ध शताब्दी समिति, गुजरात प्रांत ) ने किया.