करंट टॉपिक्स

औपनिवेशिकता से भारतीय मानस की मुक्ति

Spread the love

देहरादून (विसंकें). देवभूमि विचार मंच, उत्तराखण्ड एवं कुमांऊ विश्वविद्यालय द्वारा सोबन सिंह जीना परिसर अल्मोड़ा में एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन 19 नवम्बर को किया गया. संगोष्ठी का शुभारम्भ प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय सह संयोजक श्रीकांत काडदरे जी, प्रो. राकेश सिन्हा जी, प्रकाश पंत जी वित्त मंत्री उत्तराखण्ड, आदित्य मिश्रा जी कुलपति पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय, एच.एस. धामी जी कुलपति, आवासीय विश्वविद्यालय अल्मोड़ा, भगवती प्रसाद राघव जी क्षेत्र संयोजक, प्रज्ञा प्रवाह द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया.

मुख्य वक्ता प्रो. राकेश सिन्हा जी ने कहा कि अंग्रेजों द्वारा थोपी गई औपनिवेशिक मानसिकता स्वीकार्य नहीं होगी. यह आज भी हमारी संस्कृति को दूषित करने का काम कर रही है. अंग्रेजों ने हमारे देश पर कब्जा किया, यह दासता है. किन्तु हमने अंग्रेजों द्वारा थोपी गई औपनिवेशिकता को अंगीकृत कर लिया, यह गुलामी है. उन्होंने आह्वान किया कि विवेकानन्द की तरह आज ऐसे हजारों विवेकानन्दों की आवश्यकता है जो विश्व के पटल पर अपनी गौरवमयी संस्कृति को पुनर्स्थापित करने का कार्य करें. प्रो. आदित्य मिश्रा जी ने कहा कि अपनी संस्कृति एवं पारम्परिक ज्ञान के महत्व को समझ कर ही हम कला एवं विज्ञान के क्षेत्र को औपनिवेशिकता से मुक्त कर सकते हैं.  प्रो. एच.एस. धामी जी ने कहा कि पश्चिम में टेलर आदमी को जेंटलमेन बनाता है और हमारे यहां हमारा संस्कृति आदमी को जेंटलमेन बनाती है.

प्रथम सत्र में 27 शोध पत्र प्रस्तुत किए गए. तृतीय सत्र में प्रो. डी.आर. पुरोहित जी द्वारा उत्तराखण्ड की संस्कृति पर लोक गीतों के माध्यम से व्याख्यान दिया गया. इस सत्र में विधान सभा के उपाध्यक्ष रघुनाथ सिंह चौहान जी द्वारा अध्यक्षता की गई. इस अवसर पर मंच के अध्यक्ष डॉ. चैतन्य भण्डारी जी के सम्पादन में देवभूमि विचार मंच द्वारा प्रकाशित शोध पत्रिका ‘देवभूमि इण्टरनेशनल जर्नल ऑफ मल्टी डिसीपिलिनरी रिसर्च’ का विमोचन अतिथियों ने किया. यह पत्रिका गढ़वाली, कुमाऊँनी, हिन्दी, संस्कृत एवं अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित की जाएगी. इसका उद्देश्य उत्तराखण्ड की भाषाओं, संस्कृति, साहित्य एवं विकास को शोध के माध्यम से एक नया आयाम देना है, साथ ही राष्ट्र सर्वोपरि विचारों को भी पल्लवित एवं पुष्पित करना. संगोष्ठी में प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से 286 प्राध्यापकों एवं बुद्धिजीवियों ने प्रतिभाग किया.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *