कुरुक्षेत्र (विसंकें). हरियाणा के राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी जी ने कहा कि पराधीनता के कारण हम अपने संस्कारों को भूल बैठे हैं. हम देखने में तो भारतीय लगते हैं, लेकिन अपने संस्कार, व्यवहार, आचरण से हम वास्तव में भारत से दूर हो गए हैं. भारत को पुनर्जीवित करने के लिए हमें देश के लोगों को संस्कार देने होंगे. राज्यपाल 28 अक्तूबर शनिवार को संस्कार भारती द्वारा कुरुक्षेत्र के गीता विद्या मंदिर में आयोजित अखिल भारतीय कला साधक संगम कार्यक्रम के शुभारंभ के अवसर पर देशभर से आए कलाकारों को संबोधित कर रहे थे. इस अवसर पर उनके साथ केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह जी भी मौजूद रहे. शंखध्वनि के साथ दीप प्रज्ज्वलित कर राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी जी, केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह जी ने कार्यक्रम का शुभारंभ किया. इससे पूर्व राज्यपाल तथा केंद्रीय गृहमंत्री ने हरियाणवी प्राचीन कला प्रदर्शनी तथा चित्रकला का अवलोकन भी किया.
हरियाणवी प्राचीन कला प्रदर्शनी में हरियाणवी संस्कृति, रहन-सहन, वेषभूषा, प्राचीन पद्धति की झलक नजर आ रही थी. चित्रकला प्रदर्शनी में चित्रकारों द्वारा चित्रों के माध्यम से महाभारत के युद्ध को दर्शाया गया. कार्यक्रम की खास बात यह रही कि दर्शकों को एक स्थान पर ही देशभर की संस्कृति की झलक देखने को मिली. राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी जी ने कहा कि कुरुक्षेत्र का भारत में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में विशेष महत्व है. राजनैतिक तौर पर तो दिल्ली हमारी राजधानी है, जबकि आर्थिक दृष्टि से मुंबई हमारी राजधानी है. लेकिन धार्मिक व अध्यात्म के तौर पर देखा जाए तो कुरुक्षेत्र हमारी राजधानी है. उन्होंने संस्कार भारती द्वारा आयोजित कला साधक संगम की प्रशंसा करते हुए कहा कि संस्कार भारती का जन्म 11 जनवरी 1981 को हुआ था और आज यह संस्था पूरे वट वृक्ष का रूप धारण कर देशभर के लोगों में संस्कार उत्पन्न करने का कार्य कर रही है. कुरुक्षेत्र में आयोजित कार्यक्रम देश को एक नई दिशा देने का काम करेगा. कार्यक्रम में देशभर से आए कलाकार भारत के संस्कारों को साधकर देश को नया जीवन देंगे. उन्होंने कहा कि कार्यक्रम में आयोजित प्रदर्शनी के माध्यम से हरियाणवी संस्कृति व कला को जीवित करने का कार्य किया गया है.
गृहमंत्री राजनाथ सिंह जी ने कहा कि कुरुक्षेत्र में आयोजित कार्यक्रम में देशभर से चार हजार कलाकार पहुंचे हैं. ये कलाकार एक-दूसरे के साथ संपर्क कर देश की संस्कृति को साधने का कार्य करेंगे. भारतीय नाट्य दो हजार वर्ष से भी पुराना नृत्य है. इसकी पहचान भारत में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में है. कला में एक ऐसी शक्ति है जो अपने माध्यम से अनकहे को कह देती है तथा अदृश्य को प्रदर्शित कर देती है. कला के माध्यम से समाज में परिवर्तन किया जा सकता है. इसलिए कला के महत्व को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता. कलाकारों के लिए तो कला पूरी गीता है. उन्होंने कहा कि भारतीय परंपरा में कला को साधना की मान्यता है. कला के प्रदर्शन से रस की उत्पत्ति होती है. भारत मुनि ने नाट्य शास्त्र में नौ तरह के रस बताए हैं. ये नवरस दिखते नहीं, पर हर व्यक्ति अपनी जिंदगी में इनका अनुभव करता है. कला के संसार की सबसे बड़ी कृति महाभारत है. हजारों साल बाद भी उसकी प्रासंगिकता समाप्त नहीं हुई. महाभारत में भगवान श्री कृष्ण एक पूर्ण कलाकार थे. वह 16 कलाओं में निपुण थे. उन्होंने कुरुक्षेत्र में जो गीता ज्ञान दिया, वह मनुष्य के जीवन के हर पहलू को छूता है. उन्होंने कहा कि विज्ञान के क्षेत्र में हमने भले ही कितनी भी तरक्की क्यों न कर ली हो, लेकिन कला में विज्ञान से अधिक ताकत होती है. कला रहित मनुष्य पशु के समान होता है. कला देश का प्राण है. 19वीं शताब्दी में देश की आजादी के लिए जो जन जागरण हुआ, उसमें समाज सुधारकों के साथ-साथ कला का भी विशेष योगदान है. उस समय के लेखकों ने बड़े ही कलात्मक ढंग से अपनी लेखनी का प्रयोग कर लोगों को जागरूक करने का काम किया था. सन् 1905 में गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर के भतीजे अवनीन्द्र नाथ टैगोर ने एक ऐतिहासिक चित्र बनाया था, जिसे भारत माता के नाम से जाना गया. उस एक चित्र ने पूरे बंगाल में जनमानस को इतना प्रेरित किया कि बहन निवेदिता उस चित्र को पूरे भारत वर्ष में ले जाना चाहती थी. कला साधक देश के नए शिल्पी बन सकते हैं. राजनाथ जी ने कहा कि प्रधानमंत्री का भी यह संकल्प है कि वह देश की जनता के सहयोग से 2022 तक देश को आतंकवाद, भ्रष्टाचार तथा गरीबी मुक्त करेंगे.