श्याम प्रसाद

कोरोना से पूरा देश लॉकडाउन हो गया. प्रवासी श्रमिकों की अपने-अपने घर की ओर बाल-बच्चों के साथ पैदल चलने वाली हृदय विदारक तस्वीर ने देश की जनता के हृदयों को झकझोर दिया. सबसे पहले हमारी नजर में यह बात आई थी कि हर राज्य में हमारी कल्पना से परे प्रवासी श्रमिक जीवन बिता रहे हैं. ये प्रवासी श्रमिक कौन हैं? उनकी समस्याएँ क्या-क्या हैं?
निकट रास्ते से अधिकार पाने की चाह रखने वाले हमारे राजनैतिक नेता कई बार प्रादेशिक भावोद्वेगों को भड़काते रहते हैं. शिवसेना के नेताओं की चेतावनी – “मुंबई सिर्फ मराठी लोगों की है. दूसरे राज्यों के लोगों को यहाँ रोजगार के लिए आना नहीं चाहिए.” तेलंगाना आंदोलन के संदर्भ में के.सी.आर की चेतावनी; “तेलंगाना से आंध्रा वाले चले जाएँ”, तमिळनाडु के डीएमके के नेताओं की चेतावनी; “हम द्रविड़ हैं, उत्तर भारत के आर्यों का आधिपत्य हमें नहीं चाहिए.” असम के आंदोलन के संदर्भ में ‘आसू’ नेताओं की चेतावनी; “असम में दूसरे राज्यों के लोगों को नहीं रहना चाहिए”, इन सबको हमने देखा था. इन सभी चेतावनियों को दरकिनार करते हुए अपने पेट की भूख मिटाने के लिए, हर राज्य से लाखों गरीब जनता, दूसरे राज्यों में जाकर तरह-तरह के काम करते हुए, लोगों की जरूरतों को पूरा करती आ रही है. इस तरह के प्रवासी श्रमिकों में ज्यादातर गावों के भूमिहीन गरीब श्रमिक ही दिखाई देते हैं. कुछ लोगों के पास जमीन होती है लेकिन बहुत कम. पानी की सुविधा न होने के कारण वे कृषि पर आधारित जीवन बिता नहीं सकते. इसलिये कुछ लोग प्रवासी श्रमिक बन जाते हैं. इनमें ज्यादातर लोग अनुसूचित जातियों के ही होते हैं. फिर भी सभी जातियों के लोग प्रवासी श्रमिकों में दिखाई देते हैं.
हर राज्य में दूसरे राज्यों से आने वाले ये लोग भवन-निर्माण, बढ़ई, बिजली, मिट्टी खोदना जैसे श्रम पर आधारित काम करते हैं. ऐसे काम स्त्री और पुरुष सब लोग करते हैं. उनके शिशु पेड़ों के नीचे साड़ी के झूले में सो जाते हैं और मिट्टी में खेलते रहते हैं. प्रवासी श्रमिकों के बच्चों की पढ़ाई होती नहीं. उनके बूढ़े माँ-बाप अपने गावों में घर के पहरेदार बनकर रह जाते हैं. इस तरह के श्रमिक दिल्ली, मुंबई, कोलकत्ता, बेंगलूर, हैदराबाद जैसे बड़े -बडे महानगरों में लाखों संख्या में काम कर रहे हैं. बड़े-बड़े बहु मंजिला इमारतें, सुंदर फ्लाईओवर ब्रिज, विलासी गाड़ियों से भरे चौड़ी सड़क, इन सुंदर तस्वीरों के पीछे, किसी की नजर में नहीं आने वाले अदृश्य रूप से लाखों संख्या में श्रमिक अपना जीवन किसी न किसी तरह से बिताते आ रहे हैं. इनकी कोई भी परवाह नहीं करता. ये लोग भारत भर के सभी राज्यों से आते हैं, भारत के सभी राज्यों में रहते हैं. आर्थिक दृष्टि से देखें तो सभी राज्यों में रहने वाले ये प्रवासी श्रमिक भोजन के लिए तड़पने वाले लोग हैं. सामाजिक दृष्टि से देखें तो इनमें सभी जातियों और सभी धर्मावलंबी शामिल हैं. देश की एकता की दृष्टि से देखें तो ये लोग ‘देश की एकता के सेतु’ कहलाने योग्य हैं. इनमें अपने राज्य के प्रति, अपनी भाषा के प्रति प्रेम दिखाई देता है, लेकिन दूसरे राज्यों के प्रति और दूसरी भाषाओं के प्रति इनमें कहीं घृणा नहीं दिखाई देती है. दूसरों को ये नीचा करके नहीं देखते.
तेलुगु राज्यों की तस्वीर
आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम, विजयनगरम, और विशाखपट्टनम में रहने वाले तटवर्ती प्रदेशों के मछुआरे समुंदर में शिकार नहीं मिलने के कारण कई सालों से उत्तर भारत के समुंदर के तटवर्ती प्रदेशों और गुजरात की ओर जा रहे हैं. प्रकाशम और नेल्लूरु के रहने वाले तटवर्ती प्रदेशों के मछुआरे कर्नाटक के समुंदर के तटवर्ती प्रदेशों के प्रवासी बनकर जा रहे हैं. नेल्लूरु जिले के उदयगिरि, प्रकाशम जिले के कनिगिरि की ओर रहने वाली जनता, पीने के पानी के अभाव में और कृषि के लिए पानी उपलब्ध नहीं होने से ईंट बनाने का काम ढूँढते हुए कई सालों से अलग-अलग राज्यों की ओर प्रवास कर रहे हैं.
रायलसीमा जिलों के लोगों को सरकार नजरअंदाज करती है. इनमें से मुख्य रूप से अनंतपुरम जिले के कृषि आधारित श्रमिक और छोटे-मोटे कृषक हजारों संख्या में गाँव खाली करके बेंगलूर शहर की ओर जा रहे हैं. रायलसीमा प्रदेश से राष्ट्रपति और मुख्यमंत्री चुने गये. फिर भी आज अनंतपुरम जिले के कई गावों में पीने के पानी की बड़ी समस्या है. यह शासकों की विफलता का कारण ही नहीं प्रवासी श्रमिकों के अस्तित्व की भी समस्या है. तेलंगाना का पालमूरु जिला प्रवासी श्रमिकों के जिले के रूप में प्रसिद्ध है. कई साल से इस जिले से प्रवासी श्रमिक मुंबई जाते हैं. ये सिर्फ आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की कुछ खबरें मात्र हैं. यहाँ के हर शहर में भवन निर्माण का काम करने वाले श्रमिकों में से ज्यादातर लोग बिहार राज्य के ही हैं.
चिकित्सा की आपातकालीन स्थिति से आर्थिक आपातकालीन स्थिति की ओर
कोरोना वायरस से लोगों को बचाने के लिए केद्र प्रशासन ने लॉकडाउन की घोषणा की. यह एक तरह से चिकित्सा परक आपतकालीन स्थिति है. देश के गावों की जनता सरकार की ओर से बताए गए सभी नियमों का यथावत अनुसरण कर रही है. शहरों में रहने वाले पढ़े-लिखे लोगों में इन नियमों के आचरण के प्रति श्रद्धा नहीं दिखाई देती. ताजा खबर यह है कि हैदराबाद के मादन्नपेटा बस्ती में एक शिशु के नामकरण उत्सव के अवसर पर 50 लोग एकत्रित हुए. इसके फलस्वरूप माँ और शिशु के साथ 30 लोगों को कोरोना लग गया.
केंद्र सरकार की ओर से लॉकडाउन की घोषणा करते हुए लिखित रूप में स्पष्ट सूचनाएँ भेजी गयी थीं कि प्रवासी श्रमिकों को एक जगह से दूसरी जगह भेजना नहीं चाहिए और जो जहाँ है, उनको वहीं आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध कराना चाहिए. फिर भी दिल्ली के मुख्यमंत्री ने इन सूचनाओं को ठुकरा दिया था और दिल्ली में रहने वाले उत्तर प्रदेश के प्रवासी श्रमिकों को बसों में भेजने की कोशिश की. गरीब जनता-विरोधी कार्रवाई में भाग लेने वाले कुछ IAS अधिकारी अपनी गलती के लिए निलंबित हुए थे. देशभर में ‘सेवाभारती’ और अन्य कई सेवा संस्थाओं की ओर से गरीब जनता के साथ, इन प्रवासी श्रमिकों को भी भोजन के पैकेट, पीने का पानी, सेनेटाइजर आदि उपलब्ध कराए गए. हो सकता है कि ज्यादातर लोगों को इनकी सेवाएँ नहीं मिली हों.
एक ओर प्रवासी श्रमिकों के सामने करने के लिए कोई काम नहीं था. लोग ऐसी जगह रह गये जो उनका अपना गाँव भी नहीं था. इसके ऊपर कोरोना का डर भी था. फिर काम कब से शुरु होंगे – इसकी भी कोई जनकारी नहीं थी. एक ऐसी स्थिति आ गयी थी कि किस ओर जाएं? क्या करें? स्पष्ट नहीं था. बाकी जनता की तरह रहने के लिए इन प्रवासी श्रमिकों के पास कोई घर नहीं था. पच्चीस (25) दिन बीतने के बाद देश के सभी प्रवासी श्रमिकों के मन में यह बात आ गयी थी कि हम अपने-अपने गाँव चले जाएँगे. वे इन निर्णय पर पहुँच गए कि ‘अपने गाँव में सुरक्षित रहेंगे’; ‘जो कुछ मिलता है वही खाएँगे’. इन प्रवासी श्रमिकों के मन की स्थिति के प्रति ध्यान देते हुए केंद्र सरकार ने लॉकडाउन के तीसरे चरण में प्रवासी श्रमिकों को अपने-अपने राज्य भेजने की स्वीकृति देते हुए विषेश रेल गाड़ियों की व्यवस्था की. इस अवसर पर केंद्र और राज्य प्रशासन के नेता यह विश्वास प्रवासी श्रमिकों में नहीं भर सके कि आप अपने-अपने गाँव मत जाएं. फिर से काम शुरु होंगे. जैसा काम कर रहे थे, आप लोग आगे भी अपना-अपना काम वैसे ही कर सकते हैं.
केंद्र सरकार ने स्वीकार किया था कि इन विषेश रेल गाड़ियों में 85 प्रतिशत रेल का किराया केंद्र प्रशासन वहन करेगा और 15 प्रतिशत उन -उन राज्यों को देना होगा, जहाँ से प्रवासी श्रमिक निकलते हैं. देश के पाँच राज्यों से यथा महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बंगाल और तमिळनाडु से केंद्र सरकार को उचित सहायता नहीं मिली. केंद्र सरकार ने विदेशों में फंसे भारतीयों को देश में वापिस लाने के लिए विशेष हवाई जहाज और जहाजों की व्यवस्था की. लेकिन कुछ राज्यों के प्रवासी श्रमिकों अपने राज्यों की ओर जाने के प्रति ध्यान नहीं दिया. एक ओर भारी संख्या में अपने घर की ओर मुख्य सड़कों से परिवार और बच्चों के साथ पैदल चलने वाले प्रवासी श्रमिकों के दृश्य, राज्यों की सरहदों पर भीड़ में एकत्रित प्रवासी श्रमिक, भावोद्वेग में विद्रोह करने वाले कुछ लोग, 25 दिन से दिन-रात काम करने वाली पुलिस संतुलन खोकर प्रवासी श्रमिकों पर लाठीचार्ज करने के दृश्य और मौका देखकर मोदी सरकार की आलोचना करने के लिए राह देखने वाला कांग्रेस और वामपंथी बुद्धिजीवी कार्यकर्ता प्रवासी श्रमिकों की स्थिति पर अपनी आँसू बहा रहे थे. इन प्रवासी श्रमिकों की समस्या को लेकर देश में अराजक माहौल तैयार करने की कुछ बुरी ताकतों की योजनाएँ – यह वर्तमान की स्थिति है.
हैदराबाद से प्रवासी श्रमिकों की रेलगाड़ी बिहार के पटना शहर पहुंची. रेलगाड़ी से उतरने वाले कुछ प्रवासी श्रमिकों ने अपनी मातृभूमि पहुँचते ही प्लेटफॉर्म से उतर कर अपनी मातृभूमि बिहार की वंदना की थी. उन तस्वीरों में यह व्याकुलता दिखाई देती है कि किसी न किसी तरह से अपने गाँव चला जाए. शासकों और उन गाँव में रहने वाले लोगों में यह डर था कि ये प्रवासी श्रमिक अपने-अपने गाँव आ जाएं तो अब तक सुरक्षित उन गाँवों में कोरोना वायरस फैल जाएगा. उनके डर में भी सच्चाई दिखाई देती है. इन सभी लोगों को क्वारेंटाइन में रखना कोई ममूली बात नहीं है, लेकिन अवश्य रखना ही चाहिए.
अभी भी विभिन्न राज्यों के सड़कों पर पैदल चलने वाले प्रवासी श्रमिकों के दृश्य दिखाई देते हैं. इनको कई स्थानों पर आर.एस.एस, सेवा भारती, समरसता फॉउन्डेशन तेलंगाना और आंध्र में भेजन के पैकेट, पीने के लिए पानी और कुछ जगहों पर जूते भी दे रहे हैं.
कोरोना के फैलाव को रोकने के लिए अब तक लॉकडाउन के नाम पर चिकित्सा-आपातकालीन- स्थिति अप्रकटित रूप में लागू हो गई. अब इस स्थिति से बाहर आना शुरु हो गया है. लॉकडाउन से देश के अर्थिक-चक्र की गति रुक गई थी. पूरा देश अप्रकटित- आपातकालीन -स्थिति में प्रवेश कर गया था. इसका प्रभाव सभी वर्गों की जनता पर दिखाई देता है. केंद्र सरकार ने बड़े अर्थिक पैकेज की घोषणा की. इसका कार्यान्वयन करने वाली राज्य सरकारों को मन लगाकर काम करना चाहिए. इस तरह से नहीं सोचना चाहिए कि प्रवासी श्रमिकों पर किये जाना वाला खर्च अनुत्पादक है.
स्वयं समृद्ध गाँवों के निर्माण की दिशा में
अपने-अपने गाँव पहुँचने वाले प्रवासी श्रमिकों में से कुछ लोगों ने निर्णय लिया था कि काम की तलाश में अब बाहर नहीं जाना चाहिए. ऐसी स्थिति में गाँवों को आर्थिक दृष्टि से स्वयं समृद्ध (Economic self-sufficiency) बनाने के लिए इन्हीं गाँवों में उन प्रवासी श्रमिकों की सेवाओं को लेने की जरूरत है. इसके लिए विशेष योजनाओं को बनाना चाहिए. इन योजनाओं का उचित रूप में कार्यान्वयन करना चाहिए. इस काम में केंद्र और राज्य सरकारों को ऐसी कुछ प्रमाणिक स्वच्छंद संगठनों की मदद लेनी चाहिए.
प्रवासी श्रमिकों के लिए रोजगार देने की योजनाएँ बनाना चाहिए
केंद्र और राज्य सरकारों की यह जिम्मेदारी होगी कि अपने राज्य के हों या दूसरे राज्यों के प्रवासी- श्रमिक, सबको समान मानते हुए रोजगार के काम देने चाहिए. कोई भी प्रवासी-श्रमिक भूख से नहीं तड़पे; भूख के कारण आत्महत्या न करे. इसके लिए विशेषज्ञों को अपनी अमूल्य सलाह देनी चाहिए, जिससे कि केंद्र और राज्य सरकार और स्वच्छंद सेवा संगठन, एक सुनिश्चित नीति अपनाएं और कार्यक्रम करें. केंद्र और राज्य सरकार भी अधिकार के मायाजाल की चौखट से बाहर आकर विशेषज्ञों की सलाह स्वीकार करे और उनके कार्यान्वयन की कोशिश करनी चाहिए. इस संकट- समय में समस्याओं के आधार पर आंदोलन की ओर नहीं; समस्याओं को सुलझाने की दिशा में बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ताओं को प्रयास करना चाहिए. देशभर के प्रवासी श्रमिकों के लिए रोजगार के अवसर मिलें – इस दिशा में उचित योजना बनाने और उनके कार्यान्वयन की दिशा में केंद्र और राज्य सरकारों को एक व्यवस्था का गठन करना चाहिए.
(लेखक अखिल भारतीय समरसता प्रमुख हैं.)