वर्षों तक गुलामी का दंश झेल रहा भारत अब इस पीड़ा से निकलने का हर संभव प्रयास कर रहा था. एक तरफ क्रांतिकारी देश को आजाद कराने के लिए अपने तरीके से लड़ाई लड़ रहे थे, तो वहीं दूसरी ओर एक व्यक्ति नौजवानों में देश प्रेम की भावना जगाने के लिए स्थान स्थान पर जाकर लोगों को जोड़ रहा था.
यह व्यक्ति “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार जी” थे. डॉ केशव बलिराम हेडगेवार जी ने सन् 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शुरुआत नागपुर से की थी. नागपुर के बाद अन्य स्थानों पर डॉक्टर जी ने स्वयं प्रवास कर शाखा प्रारंभ की, तथा कुछ स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित कर देश के विभिन्न स्थानों पर भेजा ताकि देश के हर कोने से युवाओं को राष्ट्र की भावना से जोड़ा जा सके.
भारत के “मध्य भारत प्रांत” में यह काम सर्वप्रथम स्वयं डॉक्टर जी द्वारा ही प्रारंभ हुआ. सन् 1929 में डॉ. हेडगेवार जी अपनी चाची जी के उपचार हेतु देवास आए थे, उसी समय देवास के कुछ लोगों से मुलाकात कर उन्होंने मध्य भारत में संघ की नींव डाली. सन् 1929 के बाद 1945 तक मध्य भारत में संघ कार्य का स्वर्णिम काल रहा. इस दौरान संघ का पूरे प्रांत में विस्तार हो चुका था.
गुना में सन् 1935 में संघ की पहली शाखा लगी, जिसका श्रेय प्रभाकर खैर जी को जाता है. उन्होंने सेठ मुंगालाल की बगीची में शाखा प्रारंभ की थी. बाद में ग्वालियर के प्रचारक नारायणराव तर्टे का नियमित प्रवास यहां होने लगा, जिसके बाद सन् 1937-38 के आसपास सेठ मूंगाल की बगीची में स्थित गोपाल भवन में संघ का कार्यालय बनाया गया. सर्वप्रथम डॉ. प्रभाकर गोविंद घुड़े को जिला प्रचारक के रूप में काम देखने के लिए गुना भेजा गया था. वे मूल रूप से नागपुर के स्वयंसेवक थे. वह चिकित्सा विज्ञान में स्नातक व स्वर्ण पदक विजेता थे. डॉ. घुड़े के प्रयत्नों के कारण शाखा की उपस्थिति में तेजी से वृद्धि होने लगी थी. इस समय तक गुना में केवल सायं शाखा ही लग रही थी, जिसमें सामान्यतः बाल व तरूण विद्यार्थी आया करते थे, पर बाद में व्यवसायियों की सुविधा को ध्यान में रखकर प्रभात शाखा भी प्रारंभ की गई. शाखा के सुचारू संचालन व वृद्धि में सेठ नंदकिशोर अग्रवाल का उल्लेखनीय योगदान रहा. उन्होंने अपनी वसीयत में इस बात का उल्लेख किया था कि उनकी संपत्ति में से 250 रूपये प्रतिवर्ष गुरु दक्षिणा के रूप में संघ को दिए जाएं.
उन दिनों राजस्थान का कोटा मध्यभारत के अंतर्गत ही आता था. 1947 के पूर्व गुना इसी विभाग का एक जिला रहा है. सन् 1947 के प्रारंभ में पूजनीय गुरु जी का कोटा प्रवास हुआ था, उस समय गुना के 21 स्वयंसेवक कार्यक्रम में भाग लेने गए थे. सन् 1947 में माननीय एकनाथजी रानडे, 1951 में बाला साहब आप्टे व नवंबर 1952 में पूजनीय गुरूजी गुना प्रवास पर पधारे थे. पूजनीय गुरु जी का गुना प्रवास के समय आर्य समाज का वार्षिकोत्सव चल रहा था, उसे भी पूजनीय गुरूजी ने संबोधित किया था.
राजगढ़-ब्यावरा जिले से लगी हुई ‘चाचौड़ा तहसील’ का प्रमुख स्थान बीनागंज में मई 1947 में तहसील प्रचारक के रूप में इंदौर के शितिकंठ गवारीकर जी ने शाखा का बीजारोपण किया था. शाखा के प्रथम मुख्य शिक्षक रामजीलाल खंडेलवाल थे जो बाद में प्रचारक भी रहे. राधौगढ़ की शाखा नारायणराव तर्टे जी ने शुरू कराई थी. शाखा के पहले कार्यकर्ता हजारीलाल सन् 1942 में संघ शिक्षा वर्ग करने के लिए लखनऊ गए थे.
मुंगावली में संघ की पहली शाखा ग्वालियर से आए नारायणराव तर्टे ने प्रारंभ की थी. इस तहसील में संघ कार्य में आश्चर्यजनक रूप से विस्तार पाया तथा मुंगावली में सन् 1946 तक नगर के प्रत्येक मोहल्ले में शाखा लगने लगी थी, जिनकी संख्या 18 थी.
गुना से संघ शिक्षा वर्ग के लिए सर्वप्रथम दीवानसिंह रघुवंशी जी अपने 9 साथियों के साथ सन् 1946 में सागर में वर्ग करने गए थे. 1948 में गांधी जी की हत्या के बाद जब पूरे देश में संघ पर पहला प्रतिबंध लगाया गया, तब गुना से 25 स्वयंसेवकों ने सत्याग्रह में भाग लिया. जोगलेकर नाम के एक बाल स्वयंसेवक ने भी सत्याग्रह कर गिरफ्तारी देनी चाही थी, पर पुलिस गिरफ्तार नहीं कर रही थी. तब वह आग्रह कर जेल गया था. दूसरे प्रतिबंध आपातकाल के दौरान गुना के स्वयंसेवकों ने पुनः सत्याग्रह में भाग लिया था, तब सुरेश चित्रांशी, केशव चंद्र गोयल, नाथूराम मंत्री, बसंत भागवत, गोविंद सुखद आदि सत्याग्रह कर जेल गए थे.
प्रमुख कार्यक्रम – सन् 1947 में गुना शाखा का वार्षिकोत्सव जीनघर मैदान पर मनाया गया था. उत्सव में कोटा विभाग प्रचारक जयंतराव जी का बौद्धिक हुआ था. कार्यक्रम में शारीरिक प्रदर्शन के लिए 100 लकड़ी की तलवारें बनाई गई थीं जो देखने में वास्तविक लोहे की तलवारों की तरह ही प्रतीत होती थी, इसीलिए कुछ दिनों बाद जब संघ पर प्रतिबंध लगा और कार्यालय पर छापा मारा गया तो पुलिस को किसी प्रकार के हथियार आदि नहीं मिले, तब कलेक्टर ने पूछा कि “वह तलवारें कहां है? जब उन्हें बताया गया कि वह लकड़ी की तलवारें थी तो उन्हें यकीन नहीं हुआ. बोले ‘तुम हमें बेवकूफ बना रहे हो’ वह तलवारें असली ही थीं. जब उन्हें वह तलवारें दिखाई गईं, तब कलेक्टर महोदय ने विश्वास किया.
फरवरी 1987 में श्री बाला साहब देवरस, बूढ़े बालाजी के पास मैदान पर तीन दिवसीय शिविर में आए थे. इसी प्रकार सन् 2004 में मोहन भागवत जी (उस समय सरकार्यवाह थे) का गुना आगमन हुआ था. वह कैंट क्षेत्र में धर्म रक्षा समिति सम्मेलन कार्यक्रम में पधारे थे.