देवालापार, नागपुर (विसंकें). “ग्रामायण” द्वारा 20 व 21 अप्रैल को देवलापार स्थित ‘गो – अनुसंधान’ केंद्र में गोमय समृद्धि कार्यशाला आयोजित की गई. गोमय अर्थात् गोबर से निर्मित वस्तु तथा कलाकृति का प्रशिक्षण तथा प्रदर्शन किया गया. गोमय से घड़ी, लैम्पशेड (दिये के आवरण), गौरीहर घट, फोटोफ्रेम, आईना, तोरन, चाबी रिंग, दीवार पर लगाने की पेंटिंग आदि बनाई जा सकती हैं. भोपाल से गोबर संस्कृति संवर्धन के गोबर शिल्पी सुरेश जी राठौर अपने साथी अनिल जी, उज्जैन के राहुल जी आमंत्रित थे. “गोमय वसते लक्ष्मी” इस कहावत को सार्थक करने वाली यह कार्यशाला थी. इससे गोमय से विविध मूल्यवान तथा सुंदर कलाकृति बनाकर शहर तथा विशेष रूप से ग्रामीण विभाग में स्वरोजगार में सहायक होगा.
20 अप्रैल को कार्यशाला का शुभारंभ रामटेक स्थित किट्स महाविद्यालय के डॉ. रविंद्र कुमार बोपचे जी ने किया. उन्होंने उद्घाटन भाषण में कहा कि भारतीय संस्कृति में गोमाता के रूप में गाय का सम्मान है. वह एक मां की तरह ही अपनी संतान यानि हमारा पालन करती है. गोमय से अनेक उपयोगी तथा मूल्यवान एवं पर्यावरणपूरक वस्तुओं का निर्माण देख आनंद का अनुभव हो रहा है. उन्होंने ‘ग्रामायण’ का अभिनंदन किया.
‘ग्रामायण’ के सचिव संजय सराफ जी ने अभियान की प्रस्तावना रखी. ‘ग्रामायण’ ने भविष्य में इसे बढ़ावा देने के लिये अन्य स्थानों पर भी ऐसे प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने का संकल्प लिया है. यह अभियान गोधन निर्माण करने वाले किसनों के लिए आजिविका का आधार बन सकता है. “सच्चा धन है गोबर धन बाकि सब है धन-धन-धन” यह उनका स्वरचित गीत गाकर उत्साह निर्माण किया गया. इसी गीत से कार्यशाला का आरंभ हुआ.
समारोप के समय सभी प्रशिक्षणार्थियों अनुभव कथन करते हुए कार्यशाला के प्रति संतोष व्यक्त किया. साथ ही भविष्य में ‘ग्रामायण’ से जुड़े रहने का निश्चय किया. समारोप पर प्रशिक्षणार्थियों को प्रमाणपत्र दिये गए. इस अवसर पर गोमय निर्मित वस्तुओं की प्रदर्शनी लगाई गई थी. ‘ग्रामायण’ के अध्यक्ष अनिल जी सांबरे ने कहा कि कार्यशाला में निर्मित वस्तुओं बिक्री से प्रशिक्षणार्थियों के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है.