उदयपुर (विसंकें). हिन्दू जागरण मंच ने ऐतिहासिक धरोहर चित्तौड़गढ दुर्ग को संरक्षित करने के प्रस्ताव पर विचार करने तथा कांग्रेस सरकार द्वारा ऐतिहासिक विश्व संरक्षित धरोहर के सम्बन्ध में अपनाई गई विरोधी नीति को लेकर केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह को बुधवार को उदयपुर यात्रा के दौरान ज्ञापन दिया गया. मंच के प्रताप भानु सिंह शेखावत ने गृह मंत्री से मांग की कि सर्वोच्च न्यायालय में कांग्रेस सरकार द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका वापस ली जाए एवं बीजेपी सरकार एवं पार्टी स्तर पर अपना मत सार्वजनिक करना चाहिए, जिससे धरोहर के संरक्षण को लेकर उचित कार्यवाही प्रभावी रूप से हो सके. और विश्वप्रसिद्ध चित्तौड़गढ़ दुर्ग की ऐतिहासिक धरोहर पूर्ण संरक्षित व सुरक्षित रह सके.
ज्ञापन में चित्तौड़गढ़ दुर्ग की सुरक्षा को लेकर विभिन्न मांगें की गई हैं. इसके अनुसार चित्तौड़गढ़ दुर्ग की 10 किलोमीटर की परिधि में खनन पट्टे (कानूनी या गैर कानूनी) सभी पूरी तरह से निरस्त किये जायें, जिनके बारे में राजस्थान हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा है. पूर्व राजस्थान सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में दायर एसएलपी वापस लिया जाए. चित्तौडगढ़ दुर्ग विकास बोर्ड की स्थापना हो – जैसे आमेर विकास बोर्ड जयपुर है.
प्रताप भानु सिंह ने कहा कि विश्वप्रसिद्ध ऐतिहासिक धरोहर चित्तौड़गढ़ दुर्ग को खतरा है. पुरा महत्व की धरोहर चित्तौड़गढ़ दुर्ग को 22 मई 2013 को विश्व संरक्षित धरोहर घोषित किया गया था. संरक्षित ऐतिहासिक धरोहर ’’चित्तौड़गढ़ दुर्ग’’ का अपना एक साहस, वीरता एवं बलिदान का इतिहास है. अभेद्य दुर्ग हमीर सांगा, कुम्भा जैसे वीर शक्तिशाली राजाओं की राजधानी रहा है. 1303 ईस्वी में महारानी पद्मनी के नेतृत्व में, 1535 ईस्वी में महारानी कर्मावती के नतृत्व में, 1588 ईस्वी में महारानी फूलकंवर के नेतृत्व में कुल तीनों जौहर में 46000 वीरांगनाओं द्वारा जौहर किया जाना शौर्य, वीरता एवं पराक्रम की पराकाष्ठा है. पन्ना धाय ने 1530 ईस्वी में अपने पुत्र चन्दन का बलिदान कर स्वामी भक्ति की मिसाल कायम की. वहीं मीरा ने भक्ति की रस धारा बहाकर दुर्ग को शक्ति, भक्ति एवं मुक्ति की ऐतिहासिक धरोहर का रूप दिया.
उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय, राजस्थान ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा गया है कि चित्तौड़गढ़ दुर्ग एक हजार वर्ष से भी अधिक पुराना है. यह एक राष्ट्रीय धरोहर है. इसकी ऐतिहासिक महत्ता है एवं इसे संरक्षण देने की जरूरत हैं. इसी प्रकरण में जिओलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया, आरकेलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया एवं इण्डियन ब्यूरो ऑफ माइन्स की रिपोर्ट पेश हुई है. उच्च न्यायालय ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग की महत्ता को मानते हुए यह निर्णय दिया है कि चित्तौड़गढ़ किले की दस किलोमीटर की परिधि में किसी तरह खनन कार्य नहीं होगा. दस किलोमीटर की परिधी में खनन पट्टे निरस्त किये तथा खनन मालिकों पर पांच करोड़ रूपये का जुर्माना लगाया.
दुःख का विषय है कि उच्च न्यायालय के निर्णय के विरूद्ध तत्कालीन राज्य सरकार ने ना जाने किस दबाव के अन्तर्गत सर्वोच्च न्यायालय में एक एसएलपी दायर की. राजस्थान सरकार ने याचिका में यह बताया है कि जिओलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया की यह रिपोर्ट कानून के प्रावधानों के अन्तर्गत मान्य नहीं हैं क्योंकि यह विशेषज्ञ की परिभाषा में नहीं आती है. आरकेलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया द्वारा दी गई रिपोर्ट पूर्ण तथ्यों को रखने में असमर्थ रही हैं तथा आरकेलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया केवल ऐतिहासिक भवनों की उम्र को तथा उनकी परिस्थितियों को बता सकती है, न कि यह कि उनकी जर्जर अवस्था किन कारणों से हुई है.
हिन्दू जागरण मंच ने ज्ञापन में कहा है कि राज्य सरकार की यह सोच बड़ी विचित्र है कि हमारी ऐतिहासिक धरोहर को नुकसान माइनिंग/खनन से न होकर धरोहर को देश की शान मानकर देखने वाले पर्यटकों के कदमों एवं धरोहर के आसपास उछलकूद करने वाले बन्दरों से होता है और आरकेलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया ने गम्भीर तथ्यों को नजर अन्दाज किया. इसलिये आरकेलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया की रिपोर्ट को नहीं माना जाना चाहिए.
राजस्थान उच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय के विरूद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील में जाना सरकार के गलत इरादों को प्रकट करता है, साथ ही सरकार का खनन कर्ता कम्पनियों से गठबन्धन भी प्रकट करता है एवं ऐतिहासिक धरोहर के प्रति सरकार की संवेदनहीनता प्रकट होती है.