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चीनी वायरस – कई देशों में कोरोना के खिलाफ जंग में अंधविश्वास बना बाधा

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अमेरिका, दक्षिण कोरिया, दक्षिण अफ्रीका में सामनें आई अनेक घटनाएं

भारत वर्ष के जन ने आपदाओं का डटकर मुकाबला किया है, चाहे वह प्राकृतिक हों या फिर मानव निर्मित. भारत का समाज इन आपदाओं से सजगता, समझबूझ और जीवटता के साथ मुकाबला कर फिर से उठ खड़ा हुआ है. वर्तमान में संपूर्ण विश्व सहित भारत भी कोरोना वायरस या कहें चीनी वायरस के प्रकोप से जूझ रहा है. जहां विश्व के कई विकसित देश महामारी से त्रस्त हो चुके हैं, वहीं भारत में समय रहते लिए गए निर्णय व जन समर्थन के कारण विकराल रूप लेने से अभी तक रोक रखा है.

विभिन्न देशों की सरकारें महामारी से निपटने के उपाय कर रही हैं. लेकिन धर्मगुरु अंधविश्वास फैलाकर अपना एजेंडा चलाना चाह रहे हैं. महामारी की आड़ में अंधविश्वास फैलाकर मतांतरण के उद्देश्य को पूरा कर रहे हैं.  लेकिन उनका यह गैर जिम्मेदाराना रवैया सरकारों व मानवजाति के समक्ष समस्या ही खड़ी कर रहा है. मजहबी  संगठनों से सम्बंधित खबरें प्रतिदिन समाचार पत्रों व सोशल मीडिया में चर्चा का विषय बन रही हैं.

भारत में लॉकडाउन के पश्चात सभी छोटे-बड़े मठ-मंदिरों को सामान्यजन के लिए बंद कर दिया गया है, दूसरी ओर कुछ लोग हठधर्मिता को नहीं छोड़ रहे.

16 मार्च, 2020 को ‘पुणे मिरर’ समाचार पत्र में प्रकाशित समाचार के अनुसार महाराष्ट्र के दापोदी स्थित विनेयार्ड वर्कर चर्च के पादरी पीटर सिलवे ने यह दावा किया कि “पवित्र तेल” के सेवन तथा 100 बार ‘जीसस का खून’ (Blood of Jesus) रटने से कोरोना वायरस के प्रकोप से बचा जा सकता है. चर्च के पादरी द्वारा भ्रम का निर्माण करना संकट को बढ़ाएगा ही.

एक अन्य घटना में लखनऊ में अहमद सिद्दिकी कोरोना का इलाज करने वाला बाबा बताकर लोगों का उपचार कर रहा था. मास्क या सोशल डिस्टेंसिंग नहीं, 11 रुपए का ताबीज़ कोरोना वायरस से लोगों को सुरक्षित रखेगा. यह झाड़ फूंक से कोरोना को भगाने का दावा कर रहा था, सूचना मिलने पर पुलिस ने उसे गिरफ़्तार कर लिया था.

29 मार्च, 2020 को नवभारत टाइम्ज़ में छपे समाचार के अनुसार केरल में वायनाड के समीप एक गिरजाघर के पादरी, दो नन तथा आठ अन्य लोगों को लॉकडाउन के बावजूद सामूहिक प्रार्थना सभा आयोजित करने के लिए गिरफ्तार किया गया. उनका तर्क था, जीसस उनकी रक्षा करेंगे.

एक ऐसी घटना तेलंगाना के कोथागुडेम की है, चर्च को बंद करने के लिए कहा गया, तो उन्होंने चर्च बंद करने से मना कर दिया और कहा कि जीसस हैं जो हमें कोरोना के संक्रमण से बचाएंगे.

ऐसी अनेक घटनाओं की चर्चा रही, जहां लॉकडाउन का उल्लंघन करते हुए मस्जिदों में नमाज अता की गई और तर्क दिया गया कि पांच वक्त की नमाज अता करने वालों की अल्लाह रक्षा करेगा.

ऐसे गैर जिम्मेदाराना धर्मगुरु लोगों को मजहब के नाम पर बहकाकर उनका जीवन संकट में ही डाल रहे हैं. निजामुद्दीन मरकज ताजा उदाहरण है, जिस कारण हमारे सामने संकट बढ़ा ही है.

भारत ही नहीं कोरोना से जूझ रहे विकसित देश भी इस समस्या का सामना कर रहे हैं. 12 मार्च, 2020 को न्यूज़वीक में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार नुसार अमेरिका के एक धर्मगुरु केनेथ कोपलैंड ने टेलीविज़न पर कोरोना संक्रमित अनुयायियों को ठीक करने का दावा किया. यह भी दावा किया कि यदि कोरोना संक्रमित व्यक्ति उनके द्वारा सुझाया गया सिल्वर सोल्यूशन पीता है तो संक्रमण का निदान होगा तथा बुजुर्ग लोगों की पाचन शक्ति भी बढ़ेगी.

न्यूयॉर्क पोस्ट में 17 मार्च, 2020 को छपी एक अन्य खबर के अनुसार अमेरिका के एक पादरी रोडने हावर्ड ब्राउन द्वारा कोरोना से बचाव सम्बन्धी सरकारी दिशानिर्देशों को यह कहकर मानने से इनकार किया गया कि वे किसी भी क़ीमत पर चर्च को बंद नहीं करेंगे क्योंकि ईश्वर स्वयं अपने श्रद्धालुओं की रक्षा करने आएँगे.

इसी प्रकार की एक अन्य घटना का ज़िक्र मोर्निंग स्टार न्यूज़ ने 26 मार्च को प्रकाशित समाचार में किया है, इसके अनुसार नेपाल के एक पादरी को क्रिश्चियन प्रार्थनाओं के माध्यम से कोरोना संक्रमण के इलाज का दावा करने के अपराध में गिरफ़्तार किया गया  है .

दक्षिण कोरिया के जियोंगी प्रांत में ग्रेस समुदाय चर्च के पादरियों ने लोगों को इस बीमारी से बचने का ऐसा उपाय बताया कि क़रीब 46 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए. दावा था कि उनके पास ऐसा पानी है, जिसमें नमक मिलाकर पीने से कोरोना वायरस के संक्रमण को रोका जा सकता है. उन्होंने चर्च सेवा के लिए आए 100 लोगों को यह पानी पिलाया और इससे 46 लोग संक्रमित हो गए.

यही नहीं दक्षिण अफ़्रीका की एक चर्च में पादरी ने कोरोना वायरस से बचने के लिए दवा के तौर पर डेटोल पिला दिया. जिससे 58 लोगों की मौत हो गई. पादरी का कहना था कि उसे गॉड द्वारा यह कार्य करने का निर्देश मिला था, जिसके चलते उसने यह कदम उठाया.

उपरोक्त समस्त घटनाएं यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाले कौन हैं. दूसरा अपने आप को प्रोग्रेसिव कहने वाले महान व्यक्तित्व इन सब घटनाओं पर मौन हैं. उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया सुनने को नहीं मिली. लेकिन यदि यही काम किसी मठ या मंदिर में हो रहा होता तो इन सभी का प्रलाप शुरू हो जाता.

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