हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने जबरन, प्रलोभन देकर धर्मांतरण करने के खिलाफ शुक्रवार को विधेयक पारित किया. विपक्ष ने हिमाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक 2019 का समर्थन किया और विधेयक ध्वनिमत से पारित हुआ. चर्चा का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि नया कठोर कानून इसलिए जरुरी हो गया था क्योंकि खासकर रामपुर और किन्नौर में जबरन धर्मांतरण बढ़ता जा रहा है.
यह विधेयक हिमाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2006 का स्थान लेगा. नये कानून के तहत सात साल तक की कैद का प्रावधान है, जबकि पुराने कानून में तीन साल की सजा की व्यवस्था थी. यह विधेयक बहकाने, जबरन, अनुचित तरीके से प्रभावित करने, दबाव, लालच, शादी या किसी भी धोखाधड़ी के तरीके से धर्म परिवर्तन पर रोक लगाता है. यदि कोई भी शादी बस धर्मांतरण के लिए होती है तो वह इस विधेयक की धारा पांच के तहत अमान्य माना जाएगा. धर्मान्तरण विरोधी विधेयक विधान सभा में पारित, मुख्य बिन्दु –
1. धारा तीन में प्रावधान किया कि कोई भी व्यक्ति प्रत्यक्ष या अन्य तरह से मिथ्या निरूपण, बलपूर्वक, असम्यक प्रभाव, प्रलोभन देकर या किसी अन्य कपटपूर्ण तरीके से किसी का धर्म बदलवाने का प्रयास नहीं करेगा, किसी को धर्म परिवर्तन के लिए उकसाएगा और न षड्यंत्र करेगा.
2. यदिकोई अपने मूल धर्म में वापस आना चाहता है तो इस अधिनियम के तहत यह धर्म परिवर्तन नहीं माना जाएगा, जो इसका उल्लंघन करेगा उसे अपराध साबित होने पर कम से कम एक साल और पांच साल तक का कारावास होगा, जुर्माना भी देना होगा……
– हिमाचल प्रदेश में नाबालिग और महिला का जबरन धर्म परिवर्तन किया तो सात साल की कैद.
– अनुसूचित जाति या जनजाति के लोगों का धर्मान्तरण करवाने पर भी इतनी ही सजा.
– प्रलोभन, जालसाजी या जबरन धर्म परिवर्तन गैर जमानती.
– जिला मजिस्ट्रेट को सूचना न दी तो भी कैद.
– जबरन धर्मांतरण के खिलाफ बनाए गए हिमाचल प्रदेश धर्म की स्वायत्तता विधेयक 2006 में कई धाराएं जोड़ी गई हैं. विधेयक को बनाने से पहले उत्तराखंड के विधेयक के कुछ अंश भी जोड़े गए हैं.