रवि प्रकाश
मुंबई
ज़फरुल-इस्लाम खान दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष हैं. जाहिर है, इस पद पर आसीन करने के पहले उनके व्यक्तित्व का, उनकी कर्तृत्व का, उनके इतिहास का विचार किया गया होगा. यह भी जाहिर है कि उनके शरीर में नमक, पानी, अनाज सब कुछ इसी देश की मिट्टी से मिला होगा. लेकिन उन्होंने साबित कर दिया कि भारत के संविधान की शपथ लेकर विभिन्न पदों का सुख भोगने वाला यह आदमी जफरुल-इस्लाम खान न अपने पद का है, न संविधान का है, न भारत देश का है. सच कहें तो यह इंसान भी नहीं है, इसकी पहचान सिर्फ इतनी है कि यह मुसलमान है. यह हम नहीं कहते. यह खुद उनके फेसबुक पन्ने पर उनके ही द्वारा लिखी गयी बातें कहतीं हैं. उनकी बातों पर दिल्ली एनसीटी सरकार के मुखिया, अरविन्द केजरीवाल क्या कदम उठाते हैं, यह तो आगे देखना होगा. फिलहाल ज़फरुल-इस्लाम खान नामक गद्दार की बातों पर गौर करें, उनकी ही कलम से –
“भारतीय मुसलमानों के साथ खड़े होने के लिए धन्यवाद कुवैत! हिंदुत्व धर्मांध लोगों ने सोच रखा था कि भारी आर्थिक हित शामिल होने के कारण मुस्लिम और अरब जगत भारत में मुसलमानों के उत्पीड़न के बारे में ध्यान नहीं देगा.
“ये कट्टरपंथी यह भूल गए थे कि इस्लामी उद्देश्यों के प्रति सदियों की अपनी सेवाओं, इस्लामी और अरबी विद्वता में उत्कृष्टता, विश्व धरोहरों में सांस्कृतिक और सभ्यता संबंधी उपहारों के लिए अरब और मुस्लिम जगत की नज़रों में भारतीय मुसलमानों की जबरदस्त कद्र है. शाह वलीउल्लाह देहलवी, इक़बाल, अबुल हसन नदवी, वहीदुद्दीन खान, जाकिर नाइक और अनेक दूसरे नामों का अरब और मुस्लिम जगत के धर-घर में सम्मान होता है.
“कट्टर धर्मान्धों ध्यान रखना, भारत के मुसलमानों ने अभी तक तुम्हारी नफरत भरे अभियानों और लिन्चिंग और दंगों के बारे में अरब और मुस्लिम जगत से शिकायत नहीं की है. जिस दिन उन्हें ऐसा करने के लिए बाध्य होना पड़ा, कट्टर धर्मान्धों को जलजले का सामना करना पड़ेगा.”
28 अप्रैल, 2020 को अपलोड किये गए इस फेसबुक पोस्ट के निहितार्थ कितने खतरनाक, कितने भारत-विरोधी और कितने जहरीले हैं, इसे समझना कोई मुश्किल नहीं है. इसका विश्लेषण करें, इससे पहले यह भी जान लेना ज़रूरी है कि इस पोस्ट पर संज्ञान लेते हुए इलेक्ट्रॉनिक समाचार चैनल Times Now ने जफरुल-इस्लाम खान से पूछा तो इस आदमी ने अपने चेहरे से भारतीय होने का मुखौटा उतारते हुए पूरी बेशर्मी के साथ न केवल अपने पोस्ट को सही ठहराया, बल्कि भारत सरकार के लिए वांछित साम्प्रदायिक अपराधी जाकिर नाइक का पक्ष लेते हुए उसे निर्दोष बताया.
अब इस आदमी के पोस्ट की मंशा खोलने के क्रम में हम याद दिलाना चाहते हैं कि आज से ठीक 100 वर्ष पहले, 1919 में महात्मा गाँधी ने एक ऐतिहासिक भूल करते हुए एक ऐसे आन्दोलन को अपना नेतृत्व प्रदान किया, जिसका इस देश से कुछ लेना-देना नहीं था. तुर्की के खलीफा का झगड़ा ब्रिटिश हुकूमत से था. लेकिन तब के जफरुल-इस्लाम खान जैसे कट्टर धर्मांध मुसलमानों ने भारत की आज़ादी के लिए नहीं, बल्कि तुर्की के खलीफा की हिफाजत के लिए अंग्रेजों से संघर्ष करने का फैसला किया. महात्मा गाँधी ने स्वतंत्रता संघर्ष की राजनीति में धर्म का प्रथम प्रयोग करते हुए खिलाफत आन्दोलन में मुसलमानों के साथ कूद पड़े, जिसे काजी मुहम्मद अदील अब्बासी जैसे मुसलमान नेताओं और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में महात्मा गाँधी के अंधभक्तों ने हिन्दू-मुस्लिम एकता का शंखनाद कहा था. यह एकता कहाँ जाकर रुकी यह उसी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में सम्पूर्ण भारत ने 1947 में धर्म के आधार पर देश के विभाजन के रूप में देखा.
हम कहते रहे हैं कि जहां तक भारत के प्रति देशभक्ति का प्रश्न है, हमें कुछ लोगों पर संदेह इसलिए होता है कि मुसलमानों का कोई देश नहीं होता. इनकी एक बिरादरी होती है और इनकी दुनिया से अलग इनकी नजर में बाकी जगहों पर “काफिरों” का नाजायज कब्जा है, जिसे काफिरों से मुक्त कराकर इस्लामी खलीफा का निजाम बनाना है. ज़फरुल-इस्लाम खान का पोस्ट इसी सिलसिले की एक कड़ी है. उनके लिए भारत की कोई सरकार नहीं है, उनके लिए भारत में कोई संविधान नहीं है, उनके लिए भारत में कोई न्याय व्यवस्था नहीं है. उनके लिए कहीं कुछ है तो कुवैत का अमीर है, अरब जगत है, इस्लामी जगत है. इन्हें न देश की लोकतांत्रिक पद्धति से चुनी गयी सरकार पर भरोसा है, न न्यायपालिका पर भरोसा है, न संविधान पर भरोसा है और इसीलिये ये देश को, देश की लगभग 80 प्रतिशत आबादी को, सम्पूर्ण हिन्दू समाज को धमकी देते हैं, कुवैत के रास्ते अरब और इस्लामी जगत की धौंस दिखाते हैं और डराते हैं कि इन्होंने अरब और इस्लामी जगत से शिकायत कर दी तो भारत हिमस्खलन के प्रवाह में बह जाएगा, यहाँ जलजला आ जाएगा.
क्या इसका सीधा अभिप्राय नहीं है कि ज़फरुल-इस्लाम खान पाकिस्तान के आईएसआई और जाकिर नाइक जैसे अपराधी के एजेंट के रूप में काम करते हुए, मुसलमानों पर अत्याचार की मनगढ़ंत कहानी के बहाने कुवैत और अरब के रास्ते भारत को इस्लामी देशों में बदनाम करना चाहता है, इस्लामी बिरादरी के नाम पर मुस्लिम बहुल देशों को भारत के खिलाफ खड़ा करना चाहता है और इस प्रकार पाकिस्तान को भारत में आतंकवादी और सामरिक हमले करने में मदद करना चाहता है? यह सोचने का विषय है. आज नहीं जागे तो हो सकता है, कल बहुत देर हो चुकी होगी.
दुर्भाग्य की बात है कि देश की जनता द्वारा राजनीति में हाशिये पर फेंक दिए गए कुछ राजनैतिक दलों और उनके देशी-विदेशी तथाकथित बुद्धिजीवियों की भी एक ज़मात है जो ऐसे गद्दारों के साथ गिरोहबंदी कर रहे हैं. आज जब सारा देश कोरोना की दहशत से बाहर निकलने के लिए एकजुट होकर संघर्ष कर रहा है कि कल भी अरुंधती रॉय का जहरीला बयान आया है कि कोरोना की आड़ में “मोदी सरकार मुसलमानों का ‘नरसंहार’ करने की साजिश कर रही है.” हम नहीं जानते कि इस उच्छृंखल ‘विदुषी’ को ‘नरसंहार’ शब्द का अर्थ पता है या नहीं. लेकिन यह प्रचार करना कि भारत में मुसलमानों के नरसंहार की साजिश हो रही है, अपने-आप में इसके भारत-विरोधी मंसूबों को प्रकट करता है.
अभी देश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की देश की जनता के बीच और अंतरराष्ट्रीय पटल पर बढ़ती लोकप्रियता से राजनीति में चूक गयी ज़मातों की एक गिरोहबंदी हो रही है जो अंध विरोध में उन्मत्त होकर देश को तोड़ने की साजिश कर रहा है. उनकी इस साजिश के खिलाफ सरकार को सख्त कदम उठाने होंगे.
दिल्ली एनसीटी की अरविन्द केजरीवाल सरकार द्वारा नियुक्त दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष ज़फरुल-इस्लाम खान का उपर्युक्त फेसबुक पोस्ट इसी साजिश का हिस्सा है. हम जहां भारत सरकार से मांग करते हैं कि इस आदमी को अविलम्ब गिरफ्तार करके इस पर मुकदमा चलाया जाए, वहीं देश के समस्त देशभक्त हिन्दुओं और मुसलमानों से अपील करते हैं कि ऐसे सिरफिरे लोगों की साजिशों के खिलाफ और देश की एकता-अखंडता के पक्ष में एकजुट होकर मुक्त कंठ से और समवेत स्वर में भारत माता की जय कहें, भारत की विजय कहें.
(लेखक भारत विकास परिषद, मुंबई प्रांत कार्यकारिणी के सदस्य हैं)