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जब जिम्मेदारी की बात आयी तो गायब हो गए अधिकार मांगने वाले

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सौरभ कुमार

किसी भी देश की सफलता और असफलता उस देश के नागरिकों के साथ जुड़ी होती है. कोरोना महामारी ने नागरिकों की भूमिका को और ज्यादा महत्वपूर्ण बना दिया है क्योंकि यह बीमारी लोगों से लोगों में फैल रही है और जागरूकता इसके फैलाव को रोकने का एकमात्र उपाय है. जिस देश के नागरिक सरकार के नियमों को मान रहे हैं और स्थानीय प्रशासन के साथ सहयोग कर रहे हैं, वहां कोरोना से सबसे कम नुकसान हुआ है. भारत में भी नागरिक प्रधानमंत्री के आवाहन के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे आए. लॉकडाउन की शुरुआत में नागरिकों ने दीपक जलाकर एवं तालियां और थाली बजाकर कोरोना वॉरियर्स का सम्मान किया, लेकिन अफसोस की महामारी के समय में भी कुछ लोग राष्ट्र के विरोध में खड़े नजर आए. वह जो बड़े शान के साथ शायरी करते थे कि “किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है” उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत की इस भूमि को वो अपने पूर्वजों का तो बिलकुल नहीं मानते. एक तरफ भारत की जनता ने कोरोना वॉरियर्स के सम्मान में दिवाली मनाई, दूसरी तरफ कुछ लोग कोरोना वॉरियर्स पर पत्थर फेंकते हुए दिखे. जब भारत का एक तबका तालियों से कोरोना वॉरियर्स का सम्मान कर रहा था, उसी वक्त समाज का एक तबका कोरोना वॉरियर्स के ऊपर थूक रहा था.

देश के संसाधनों के ऊपर अधिकार के दावे करना और देश के प्रति अपने कर्त्तव्य का पालन करना, यह वो दो धुरियाँ हैं जो किसी समाज के तौर पर आपकी पहचान बनता है. बीते साल हमने देश भर में धरने और प्रदर्शन देखे, ट्विटर के हैशटैग और सड़कों पर लगे स्पीकर्स से चीख-चीख कर देश में अपने हिस्से की बात कर रहे थे, अधिकारों की बात कर रहे थे. लेकिन जब वक़्त जिम्मेदारी का आया तो इन्होंने क्या किया? इसी सवाल का जवाब हम तलाशने की कोशिश करेंगे –

देश या धर्म

कोरोना महामारी को ध्यान में रखते हुए सऊदी अरब जैसे मुस्लिम देश ने भी सामूहिक नमाज पर प्रतिबन्ध लगा दिया. मिस्र, तुर्की, ओमान, कतर, सऊदी अरब, संयुक्‍त अरब अमीरात जैसे देशों ने ईद के दिन भी कड़े प्रतिबन्ध जारी रखे. तुर्की  के राष्ट्रपति रेसेप तैयप ने देश में ईद की छुट्टियों के दौरान 23 से 26 मई तक चार दिन का राष्ट्रव्यापी कर्फ्यू लगाया. सऊदी अरब के सरकारी टीवी चैनल पर देश के इस्लामी मामलों के मंत्री अब्दुल लतीफ़ अल-शेख़ ने मस्जिदों में नमाज़ नहीं पढ़े जाने के निर्देश दिए. सऊदी अरब के मक्का और मदीना में लोगों को केवल भोजन और दवा खरीदने के लिए अपने घरों को छोड़ने की अनुमति मिली और नागरिकों ने सरकार के इन निर्देशों का पालन भी किया. मुस्लिम देशों में सरकार और समाज ने धर्म से ऊपर देश को रखा. सरकार ने बीमारी से लड़ने के लिए लॉकडाउन को लागू किया और लोगों ने भी निर्देशों का पालन किया. धर्म का नाम लेकर जिद नहीं की.

लेकिन इसके विपरीत भारत में क्या हुआ? जहां मुस्लिम समाज के चंद लोगों ने खूब उत्पात मचाया, देश के प्रयासों को विफल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और यह सब किया धर्म का नाम लेकर. महत्वपूर्ण यह कि इस स्थिति में मुस्लिम धर्मगुरुओं का रवैया कैसा रहा? अपने पर मुस्लिम समाज के नेता या अगुआ का तमगा लगाकर घूमने वालों का रवैया क्या रहा? सेकुलर जमात का रवैया क्या रहा? किसी ने इन उत्पातों को रोकने के लिए गंभीरता के साथ प्रयास किया. कोई धर्मगुरु मैदान में उतरकर समझाने के लिए या उत्पात को रोकने के लिए सामने नही आया.

एडवोकेट शाहिद अली सिद्दीकी जैसे लोग सामूहिक नमाज की अनुमति के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट चले गए. देश के कई हिस्सों में ईद से पहले खरीदारी के लिए बड़ी भीड़ रास्तों पर निकली. शारीरिक दूरी के नियमों की धज्जियाँ उड़ाई गयीं और रोकने का प्रयास करने पर पुलिस वालों पर पत्थर बरसाए गए. यहां तक कि संक्रमितों के उपचार करने वाली टीमों, स्वास्थ्य विभाग की टीमों पर जानलेवा हमले हुए.

कोरोना वारियर्स पर हमले

बिहार के मोतिहारी में लॉकडाउन के दौरान पुलिसवालों की टीम सिसहनी गांव का दौरा करने पहुंची. तो कुछ युवक सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाते मिले. पुलिस ने इन्हें समझाना चाहा, तो गलती मानने की बजाय ये लोग हमले पर उतारू हो गए. हाथों में डंडा लिए भीड़ इकट्ठी हो गई और पुलिसवालों को ही खदेड़ने लगी.

मध्यप्रदेश के मंडला में कुछ ऐसे ही हालात का सामना ममता रजक और उनकी टीम को भी करना पड़ा. मोहद गांव में ममता अपनी टीम के साथ गांववालों की स्क्रीनिंग के लिए पुहंची, तो एक शख्स ने विवाद शुरू कर दिया. पहले तो उसने टीम को गांव में घुसने से रोका और फिर मारपीट शुरू कर दी. इंदौर में भी पुलिसकर्मियों और डॉक्टर्स पर जानलेवा हमला किया गया.

उत्तर प्रदेश के कानपुर में स्वास्थ्यकर्मियों और पुलिसवालों पर कुछ लोगों ने हमला कर दिया. मेडिकल और पुलिस टीम कानपुर के जुगियाना मोहल्ले में कोरोना पॉजिटिव लोगों को लेने गई थी. तभी करीब 50-60 लोगों ने इस टीम पर हमला कर दिया.

यह चंद उदाहरण हैं. ऐसी ही घटनाएं पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, झारखण्ड, राजस्थान, गुजरात, पंजाब सहित देश के लगभग हर राज्य से आई और हर घटना में एक चीज समान थी. वो थे हमला करने वाले और उनके मस्तिष्क में भरा गया जहर. स्थितियां इस कदर नियंत्रण से बाहर थीं कि राज्यों को कोरोना वारियर्स की रक्षा के लिए रासुका का सहारा लेना पड़ा.

देश भर में कोरोना फैलने की वजह बने

देश में कोरोना वायरस का सबसे पहला विस्तार तबलीगी जमात के कारण हुआ. मरकज में शामिल हुए लोगों ने कोरोना को देश के कोने कोने तक पहुँचाया. तबलीगी जमात में भाग लेने वाले लोग स्वयं सामने के बजाय देशभर की विभिन्न मस्जिदों में जाकर छिपकर बैठ गए. इनमें सैकड़ों विदेशी भी शामिल थे. पुलिस द्वारा ढूंढ निकालने के पश्चात और कोरोना संक्रमित पाए जाने पर स्वास्थ्य कर्मियों ने उपचार शुरू किया तो कोई नर्स के सामने कपड़े उतार कर खड़ा हो गया, तो कुछ लोगों ने हंगामा किया क्योंकि खाने में चिकन नहीं मिल रहा था. तो कहीं डॉक्टरों पर थूकने की घटनाएं हुईं.

इंदौर के कुछ हिस्सों से ऐसी भी खबरें आईं कि कोरोना संक्रमितों का इलाज घरों में किया जा रहा है. न जाने इस दौरान कितने लोगों में संक्रमण फैला और कितनों ने अपने प्राण त्याग दिए.

ऐसे व्यवहार के बाद मैं यह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हूँ कि उन लोगों को अधिकार मांगने का हक है जो देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाते. सिर्फ बोल देने भर से देशभक्त हो जाएं ये संभव नहीं है, देशभक्ति की परीक्षा मुश्किल समय में होती है, जब देश को जरूरत हो तो आपकी भूमिका क्या रहती है, यह सिद्ध करता है कि आप देश के साथ हैं या खिलाफ. स्पष्ट है कि कोरोना संकट की इस मुश्किल घड़ी में एक वर्ग अपनी जिम्मेदारी निभाने में नाकाम रहा है.

 

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