अनुच्छेद 370 हटाने के बाद जम्मू कश्मीर में ऐतिहासिक भूलों को सुधारने की प्रक्रिया जारी है. जम्मू कश्मीर प्रशासन ने साल 2020 के लिए हॉली-डे कैलेंडर (अवकाश की सूची) जारी किया, जिसमें सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए शेख अब्दुल्ला के जन्मदिन यानि 05 दिसंबर और 13 जुलाई के दिन अवकाश को रद्द कर दिया है तथा 26 अक्तूबर को अधिमिलन दिवस के रूप में मनाने के लिए अवकाश की घोषणा की है. 26 अक्तूबर 1947 के दिन ही जम्मू कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने अधिमिलन पत्र पर हस्ताक्षर किये थे. जम्मू कश्मीर के लोग दशकों से इसकी मांग करते आ रहे थे.
13 जुलाई का इतिहास
13 जुलाई का दिन जम्मू कश्मीर में ब्लैक-डे के रूप में मनाया जाता था. जबकि अलगाववादी इस दिन को Martyrs’ day के रूप में मनाते थे. दरअसल 13 जुलाई 1931 की तारीख वो काला अध्याय है, जिस दिन जम्मू कश्मीर के इतिहास में सांप्रदायिक दंगों की शुरूआत हुई थी. ये वो दिन था, जब जम्मू कश्मीर के आधुनिक इतिहास में अलगाववाद, आतंकवाद और सांप्रदायिकता के बीज बोए गए थे.
13 जुलाई 1931 को महाराजा हरि सिंह के डोगरा राज के विरोध में शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में दंगाईयों की एक भीड़ ने पहले श्रीनगर जेल से एक कट्टरपंथी अब्दुल कादिर पठान को छुड़वाने के लिए जेल के दरवाज़े तोड़ने की कोशिश की. इस दौरान सुरक्षा में तैनात सिपाहियों पर जमकर पत्थरबाज़ी हुई… हिंसक भीड़ जब काबू से बाहर हुई तो पुलिस प्रशासन को गोलियां चलानी पड़ी. जिसमें 22 दंगाई मारे गए.
लेकिन दंगा थमा नहीं, बल्कि भड़क गया. पुलिस प्रशासन की कार्रवाई के बाद दंगाईयों की भीड़ ने श्रीनगर में चुन-चुनकर कश्मीरी हिन्दुओं पर हमले किये. हिन्दुओं की दुकानों व घरों में लूटपाट हुई, तोड़फोड़ की गई. पूरी जानकारी अंग्रेजों द्वारा गठित बरजोर दलाल कमेटी की रिपोर्ट में उपलब्ध है.
बाद में इन्हीं दंगाईयों को रोकने की कोशिश में पुलिस प्रशासन की कार्रवाई में मारे गए लोगों को शहीदों का दर्जा देकर पिछले 70 साल से जम्मू कश्मीर में एक सांप्रदायिक एजेंडा Martyrs’ Day मनाया जाता रहा है. जबकि जम्मू कश्मीर में ज्यादातर लोग इसको ब्लैक डे के रूप में मनाते हैं. जिस दिन महाराजा हरि सिंह के खिलाफ सांप्रदायिक ताकतों ने हिंसा के सहारे पूरे श्रीनगर को दंगों की आग में झोंक दिया था. वो आग जो आज तक नहीं बुझ पायी. सरकार ने अलगाववाद और सांप्रदायिकता के प्रतीक इस दिन की छुट्टी रद्द कर बड़ी भूल-सुधार की है.
05 दिसंबर का इतिहास
पिछले 70 साल से शेख अब्दुल्ला को जम्मू कश्मीर के आधुनिक संस्थापक के तौर पर प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाता रहा है, इसी प्रयास के तहत उनके जन्मदिन 05 दिसंबर को ठीक ऐसे ही मनाया जाता था, जैसे देश में महात्मा गांधी के जन्मदिन 02 अक्तूबर को मनाया जाता है. हालांकि सच ये है कि जम्मू कश्मीर में अलगाववाद के बीज शेख अब्दुल्ला ने ही बोए थे. उनके देशविरोधी बयानों के चलते ही तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू ने अब्दुल्ला को 09 अगस्त 1953 को गिरफ्तार कर जेल में डाला था. ऐसे शख्स के जन्मदिन को राजकीय अवकाश घोषित करना जम्मू कश्मीर के साथ बड़ा छल था.
26 अक्तूबर का इतिहास
26 अक्तूबर 1947 को जम्मू कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ अधिमिलन पत्र पर हस्ताक्षर किये थे. अधिमिलन के नियमों के अनुसार प्रिंससी स्टेट्स के सिर्फ राजा य़ा नवाब को ये अधिकार था, कि वो अपने राज्य का भविष्य तय करे कि उसे किस देश का हिस्सा बनना है, भारत का या पाकिस्तान का. अंग्रेजी कूटनीति औऱ जिन्ना की तमाम कोशिशों, छल-प्रपंचों के बावजूद महाराज हरि सिंह ने भारत को चुना. उनके एक हस्ताक्षर के चलते ही यूनाइटेड नेशन्स ने भी माना कि अविभाज्य जम्मू कश्मीर सिर्फ और सिर्फ भारत का संवैधानिक राज्य है. इसी अधिमिलन पत्र को अंतिम मानते हुए यूएन ने पाकिस्तान को पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू कश्मीर से अपनी सेनाएं वापिस लेने को कहा था. लेकिन ब्रिटेन औऱ अमेरिका की शह पर पाकिस्तान ने यूएन की भी एक नहीं सुनी, और इस तरह जम्मू कश्मीर का आधे से ज्यादा हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला गया.
लेकिन अलगाववादी शक्तियां ऐसे महत्वपूर्ण दिन प्रोपगैंडा चलाती थीं और साबित करने की कोशिश करती थीं कि अधिमिलन पूर्ण नहीं था. इस दिन अवकाश घोषित करने से जम्मू कश्मीर में राष्ट्रीय ताकतों को बड़ा संबल मिलेगा.