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तबलीगी जमात के खिलाफ मुस्लिम समाज से ही उठने लगीं आवाजें

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डॉ. नीलम महेंद्रा

कोरोना के खिलाफ अपनी लड़ाई में भारत धीरे धीरे लेकिन मजबूती के साथ आगे बढ़ रहा है. स्वास्थ्य मंत्रालय के ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि देश में कोरोना मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी की गति कम हुई है. लेकिन इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि कोरोना से लड़ाई के दौरान निजामुद्दीन में तबलीगी जमात का मरकज़ कमजोर कड़ी साबित हुआ. और शायद इसी वजह से यह संगठन, जिसके नाम और गतिविधियों से अब तक देश के अधिकतर लोग अनजान थे, आज उसका नाम और उसकी करतूतें देश की सुरक्षा एजेंसियों से लेकर आम आदमी की जुबां पर हैं. लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं निकाला जाए कि तबलीगी जमात के अस्तित्व से दुनिया अनजान थी. विश्व के अनेक देशों की खुफिया एजेंसियों की नज़र काफी पहले से इन पर थी. इस पर काफी पहले से ही विभिन्न देशों में आतंकवादी गतिविधियों में परोक्ष रूप से शामिल होने के आरोप लगते रहे हैं. इस पर अल कायदा, हरकत उल मुजाहिद्दीन, तालिबान जैसे आतंकवादी संगठनों के लिए युवाओं को भर्ती करने के आरोप हैं.

अमरीकी जासूसी एजेंसी स्ट्रेटफॉर ने जब  9/11 के हमले की जांच की तो इस जांच की आंच तबलीगी जमात तक भी पहुंची थी. आश्चर्य की बात है कि विभिन्न आतंकवादी संगठनों को परोक्ष रूप से मदद करने के आरोपों के बावजूद इस जमात की जड़ें विश्व के लगभग 150 देशों तक फैली हैं. लेकिन उससे भी बड़ा आश्चर्य यह है कि सऊदी अरब और ईरान जैसे मुस्लिम मुल्कों में इसे प्रतिबंधित किए जाने के बावजूद भारत में इसकी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगना तो दूर की बात है, बल्कि भारत की राजधानी दिल्ली के भीतर भारत सरकार की नाक के नीचे ही इसका अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय है. जब तक कानूनी रूप से यह सिद्ध नहीं हो जाता कि तबलीगी जमात के आतंकवादियों से किसी प्रकार के संबंध हैं या नहीं, यह विवाद का विषय हो सकता है. लेकिन कोरोना संकट के काल में तबलीगी जमात के लोगों के विवादित आचरण पर तो किसी प्रकार की असहमति का प्रश्न ही नहीं उठता. चाहे वो सरकार के दिशा निर्देशों की धज्जियाँ उड़ाना हो, या स्वास्थ्य कर्मियों के साथ दुर्व्यवहार हो, पुलिस कर्मियों पर पथराव और हिंसा का तांडव हो या फिर जगह जगह थूकना अथवा ऐसे क्रिया कलाप करना, जिससे यह बीमारी फैले. वैसे तबलीगी जमात के मौलाना साद का वीडियो सामने आने के बाद तबलीगी जमात के लोगों के इस आचरण पर ज्यादा आश्चर्य करने का औचित्य नहीं रह जाता.

लेकिन, अब देश के मुस्लिम समाज के भीतर से ही जमात के विरोध में आवाजें उठने लगीं. बाबरी मस्जिद के पक्षकार रहे इकबाल अंसारी ने तबलीगी जमात की गतिविधियों के चलते उन पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करने की मांग की. शिया वक़्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिज़्वी का कहना है कि, “यह दुनिया की सबसे खतरनाक जमात है. यह मुसलमानों का ऐसा समूह है जो पूरी दुनिया में इस्लाम के प्रचार के नाम पर मुसलमान युवाओं को कट्टरपंथी बनाता है.”

इसी प्रकार अल्पसंख्यक कल्याण राज्यमंत्री मोहसिन रज़ा ने भी तबलीगी जमात पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए कहा कि जमात ने देशविरोधी मानसिकता का प्रदर्शन किया है. जबकि बरेली की दरगाह आला हजरत ने सरकार से तबलीगी जमात पर कानूनी कार्यवाही करने की मांग की. शिया धर्म गुरु भी तबलीगी जमात पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं. इतना ही नहीं फ़िल्म उद्योग से जुड़े विभिन्न मुस्लिम चेहरे जैसे अब्बास टायरवाला और सलमान खान भी जमातियों के खिलाफ खुलकर बोल रहे हैं और देश के हर मुसलमान को घर पर ही नमाज़ पढ़ने के साथ सोशल डिस्टेंसिंग के दिशा निर्देशों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित भी कर रहे हैं. अब रमजान के महीने और तबलीगी जमात के इतिहास को देखते हुए पूर्व कांग्रेस नेता मौलाना आजाद के पौत्र फिरोज़ बख़्त अहमद (मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्विद्यालय के कुलाधिपति) ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर लॉकडाउन को 24 मई तक बढ़ाने की मांग करते हुए देश भर में मुसलमानों द्वारा स्वास्थ्य एवं पुलिस कर्मियों के साथ किए गए दुर्व्यवहार के लिए क्षमा भी मांगी.

इससे स्पष्ट है कि तबलीगी जमात इस देश के मुसलमान की पहचान नहीं है. क्योंकि तबलीगी जमात का आतंकवाद कनेक्शन है या नहीं, यह तो समय ही बताएगा. लेकिन इतना तो साफ है कि कट्टरता को बढ़ावा देना उसका मकसद जरूर है. और जहाँ कट्टरता आती है, वहाँ उदारता का आसमान छोटा हो जाता है, ज्ञान और विज्ञान के सभी दरवाजे बंद हो जाते हैं. सोच के साथ पहचान भी संकुचित हो जाती है. क्योंकि सोच ही विचार बनाती है, यह विचार ही शब्दों का रूप लेते हैं, यह शब्द हमारा व्यवहार बनते हैं, हमारी आदतें बनती हैं. यही आदतें हमारा चरित्र बनाती हैं और अंत में यही चरित्र हमारी नियति. अतः यह समझना जरूरी है कि तबलीगी जमात ने अपनी यह पहचान देशविरोधी गतिविधियों वाले चरित्र से स्वयं बनाई है और यह पहचान इस देश के हर मुसलमान की कदापि नहीं हो सकती. इस देश के मुसलमान की पहचान तो अशफाक उल्ला खान, अब्दुल हमीद, अब्दुल कलाम आजाद, बिस्मिल्लाह खान जैसे नाम हैं. इसलिए आज जब भारत आगे बढ़ रहा है और 21वीं सदी की बातें कर रहा है, वहां कट्टरता और संकीर्णता की कोई जगह नहीं हो सकती. आज मुस्लिम समाज ही नहीं, देश को भी आवश्यकता है ऐसे पढ़े लिखे युवा मुस्लिम नेतृत्व की देश की संस्कृति को अपना माने, इस देश के पूर्वजों को अपना माने.

कौन लोग हैं जो बात नहीं मान रहे

डॉक्टर और नर्सेज आपकी जान बचाने आये और आप उन पर पत्थर बरसाएं, यह गलत है, सम्मान कीजिये डॉक्टर्स, नर्सेज, पुलिस, बैंक कर्मचारियों का,आप की ड्यूटी सिर्फ इतनी है कि सिर्फ घर पर रहें… अभिनेता सलमान खानवो लोग इस बात का जवाब दो, जो लोग सरकार की बात नहीं सुन रहे. नेगेटिव सोच रहे हो या पॉजिटिव. अगर आपके एक्शन सही होते तो अभी तक ये लॉकडाउन खत्म हो गया होता, कोरोना वायरस भी. – अभिनेता सलमान खान

Posted by Vishwa Samvad Kendra Bharat on Wednesday, April 15, 2020

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