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दत्तोपंत जी ने कहा था, भारत का विकास का मॉडल 10,000 साल से चलायमान है और आगे भी चलेगा – सतीश कुमार जी

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दत्तोपंत जी मानना था, भारत के विकास का मॉडल समृद्धि युक्त व्यवस्था का घोतक था

जोधपुर.  स्वदेशी जागरण मंच जोधपुर द्वारा 05 जनवरी को कार्यकर्ता सम्मेलन का आयोजन महालक्ष्मी बालिका विद्यालय में किया गया.

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता स्वदेशी जागरण मंच के अखिल भारतीय विचार विभाग प्रमुख व राजस्थान मध्य प्रदेश व उत्तर क्षेत्र के संगठक सतीश कुमार जी ने कहा कि यह वर्ष स्वदेशी जागरण मंच के सभी कार्यकर्ताओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह वर्ष स्वदेशी जागरण मंच के संस्थापक श्रद्धेय दत्तोपंत ठेंगड़ी जी के जन्मशताब्दी वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है. दत्तोपंत जी का सम्पूर्ण जीवन राष्ट्र चिन्तन तथा भारत भूमि को गौरवान्वित करने में बीता. भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ, पर्यावरण मंच, स्वदेशी जागरण मंच सहित अनेक संगठनों के संस्थापक श्रद्धेय दतोपन्त जी एक महापुरुष थे. उन्होंने आज से 50 साल पूर्व, जिस समय पूंजीवाद व वामपंथी विचारधारा का बोलबाला था, इसमें व्याप्त कमियों और दुष्परिणामों को पहचान लिया था. उन्होंने पश्चिम व वाम विचारों का भारतीय परिपेक्ष्य में सरलीकरण किया और उसे भारत के मजदूरों और किसानों को समझाया. 71 वर्ष की आयु में उन्होंने संपूर्ण दुनिया में फैली बहुराष्ट्रीय कंपनियों को ललकारा और उनका मुकाबला करने के लिए स्वदेशी जागरण मंच की स्थापना की. जिस प्रकार गांधी जी ने चरखे के उपयोग को आजादी का हथियार बनाया, उसी प्रकार दत्तोपंत जी ने पर्चों के माध्यम से देश की जनता को विदेशी और स्वदेशी उत्पादों का परिचय कराया और देश में एक नई क्रांति का सूत्रपात किया. पश्चिम के अंधाधुंध उपभोग व शोषण की संस्कृति को उन्होंने अच्छी तरह पहचाना और भारत के संदर्भ में अपना भारतीय दर्शन प्रस्तुत किया.

आज संपूर्ण विश्व में आर्थिक असमानता और गरीबी ने पैर पसार लिए हैं. विश्व की 360 करोड़ की आबादी के पास उपलब्ध संपदा और विश्व के 20 सबसे अमीर व्यक्तियों के पास संपदा का जोड़ बराबर है. आप देखेंगे कि भारत में अभी भी गरीबी मिटी नहीं है, लेकिन पिछले एक वर्ष में देश के सबसे अमीर आदमी की संपदा में 18 बिलियन डॉलर की वृद्धि हो गई है. पश्चिम के विकास के मॉडल ने बेरोजगारी पर्यावरण विनाश और आर्थिक असंतुलन को जन्म दिया. पश्चिम के अंधाधुंध आधुनिकीकरण के मॉडल ने सारे जंगल खत्म कर दिए, सारे पहाड़ उड़ा दिए, सारी खानें खोद दीं और आज की तारीख में वह अंतरिक्ष को भी खोदने के लिए तैयारी कर रहा है. इसी मॉडल के परिणामस्वरूप पूरे विश्व में सामाजिक भेदभाव का जन्म हुआ है, जिसकी परिणिति आज संपूर्ण समाज आतंकवाद के रूप में झेल रहा है. इन सब समस्याओं के समाधान के रूप में दत्तोपन्त जी कहते थे कि पूंजीवादी मॉडल 65 साल और वामपंथी मॉडल 74 साल चला, लेकिन भारत का विकास का मॉडल पिछले 10,000 साल से चलायमान है और आगे भी चलेगा.

दत्तोपन्त जी का मानना था कि भारत के विकास का मॉडल समृद्धि युक्त व्यवस्था का घोतक था, जिसकी 6 सबसे बड़ी विशेषताएं थी. पहला, भारत का मॉडल समृद्धि युक्त अर्थव्यवस्था थी, हर घर में चाहे वह अमीर हो या गरीब कुछ मात्रा में सोना और चांदी पाया जाता था, जबकि पश्चिम में हर व्यक्ति के दस दस क्रेडिट कार्ड की किश्तें. दूसरा, भारत की विकास की अवधारणा पूर्ण रोजगार की गारंटी देती थी, हमारे संस्कृत शब्दकोश में बेरोजगारी शब्द के लिए कोई शब्द ही नहीं है.

तीसरा, भारत का विकास मॉडल पर्यावरण हितैषी था, जहां वस्तुओं का दोहन होता था शोषण नहीं. जैसे पीपल और तुलसी की पूजा पेड़ से फल लेना, गाय का दूध दुहना, जबकि पश्चिम में हर चीज को काटा व नष्ट किया जाता है.

चौथा, भारत की अर्थव्यवस्था ग्राम आधारित अर्थव्यवस्था थी. जिसमें हर इकाई अपने आप में आत्मनिर्भर थी और समाज के प्रत्येक वर्ग का ग्राम के विकास में योगदान रहता था, परिणामस्वरूप प्रत्येक व्यक्ति के पास जीवन के सभी साधन उपलब्ध रहते थे.

भारत के विकास मॉडल की पांचवीं सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि यह व्यवस्था विकेंद्रीकृत थी, पश्चिम के मास प्रोडक्शन के विचार के विपरीत यह विकेंद्रीकृत व्यवस्था प्रोडक्शन बाय मासेज पर आधारित थी, परिणामस्वरूप संपूर्ण समाज को योगदान करने का मौका मिलता था. भारत के विकास के मॉडल की छठी सबसे बड़ी विशेषता थी कि यह व्यवस्था जीवन मूल्यों पर आधारित थी, जहां पर धर्म नैतिकता व उच्च मूल्यों का हर स्तर पर पालन वह पोषण होता था.

कार्यक्रम के अंत में प्रान्त संयोजक अनिल वर्मा ने नए दायित्वों की घोषणा की, सभी उपस्थित नागरिक बंधु-भगिनी का आभार व्यक्त किया. कार्यक्रम के दौरान मंच पर राष्ट्रीय स्वयंमसेवक संघ के जोधपुर प्रांत कार्यवाह श्याम मनोहर जी, स्वदेशी जागरण मंच के क्षेत्रीय संयोजक डॉ. धर्मेंद्र दुबे व अन्य गणमान्यजन उपस्थित थे.

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