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दुनिया चाहती है कि आपदा के बाद नेपाल फिर खड़ा हो – सह सरकार्यवाह जी

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सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय जीनेपाल में आए भूकम्प के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहसरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले राहत कार्यों का मार्गदर्शन करने नेपाल गए थे. उन्होंने पीडि़तों के दु:ख-दर्द को साझा किया, उनकी आवश्यकताओं की जानकारी ली और हिन्दू स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं द्वारा किए जा रहे राहत कार्यों में हाथ बंटाया. नेपाल से दिल्ली लौटने पर साप्ताहिक पाञ्चजन्य ने उनसे बात की, प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश-

कहा जा रहा है कि भूकंपग्रस्त नेपाल को फिर से खड़ा होने में काफी समय लगेगा. कैसा, कितना नुकसान वहां हुआ है?

नेपाल में 80 वर्ष पहले भी ऐसा ही भूकंप आया था. नेपाल में बराबर इस तरह के भूकंप आते रहते हैं. कभी यह महसूस होता है और कभी नहीं भी होता है. यहां तक कि एक कमरे में रह रहे दो व्यक्तियों में से एक को भूकंप का एहसास हो सकता है और दूसरे को नहीं. भूकंप के बारे में पूर्वानुमान लगाना कठिन है, कुछ लोग अफवाह फैला सकते हैं. इस बार भी यही हुआ. नेपाल के छह जिले भूकंप से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. जानमाल का भारी नुकसान हुआ है. अनुमान लगाया जा रहा है कि 10-15 हजार के बीच लोग मारे गए हैं. बड़ी संख्या में जानवर भी हताहत हुए हैं. यदि रात में भूकंप आया होता तो पता नहीं और कितना नुकसान होता. विपत्ति भारी है, किन्तु फिर भी इसे भगवान की कृपा ही कहेंगे कि भूकंप दिन में आया और काफी लोगों की जान बच गई.

भूकंप के दूसरे दिन ही सोशल मीडिया में एक समाचार चला कि पीडि़तों की मदद के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 20 हजार स्वयंसेवक नेपाल गए. क्या यह सही था?

नहीं, वह गलत समाचार था. इसका खंडन अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख और स्वयं मैंने भी किया है. बात यह हुई थी कि किसी प्रांत के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने कहा था कि आवश्यकता पड़ने पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 20 हजार स्वयंसेवक नेपाल जाकर राहत कार्य कर सकते हैं, लेकिन किसी ने सोशल मीडिया में इसको गलत ढंग से लिया और प्रचारित कर दिया कि संघ के 20 हजार स्वयंसेवक भूकंप पीडि़तों की मदद के लिए नेपाल गए. नेपाल में जो स्थिति है, उसमें वहां से लोग भारत आ रहे हैं. ऐसे में हजारों लोगों को भारत से नेपाल भेजना मुश्किल था और यह व्यावहारिक भी नहीं था. सारे रास्ते खराब हो गए हैं. गाड़ियां वहां जा नहीं सकती हैं. लोग पैदल जाएंगे तो कितने दिन में पहुंचेंगे. इसलिए सोशल मीडिया में ऐसी बात होनी ही नहीं चाहिए थी.

नेपाल के संदर्भ में भूकंप पीडि़तों के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ किस तरह का काम कर रहा है?

नेपाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कोई राहत कार्य तो नहीं कर रहा है, पर भारत सरकार को वहां की अनेक कठिनाइयों से अवगत करा रहा है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत में काम करता है और नेपाल में संघ की प्रेरणा से हिन्दू स्वयंसेवक संघ काम करता है. भूकंप आने के कुछ ही घंटे बाद हिन्दू स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता राहत और बचाव कार्य में जुट गए थे. उनके साथ प्राज्ञिक विद्यार्थी परिषद (नेपाल), विश्व हिन्दू परिषद (नेपाल), एकल विद्यालय फाउण्डेशन, जनजाति कल्याण आश्रम, राष्ट्रीय श्रमिक संघ जैसे संगठनों के कार्यकर्ता भी कार्य कर रहे हैं. वे सभी नेपाल के कार्यकर्ता हैं और नेपाल के ही नागरिक हैं. जब तक मैं वहां था, तब तक हिन्दू स्वयंसेवक संघ और अन्य संगठनों के एक हजार से भी अधिक कार्यकर्ता राहत और बचाव कार्य में लगे थे. अब तो उनकी संख्या बढ़ गई होगी. उन कार्यकर्ताओं ने काठमांडू और अन्य जगहों पर भी पानी की बोतलें और खाने की चीजें उपलब्ध कराईं. इसके साथ ही कार्यकर्ताओं ने पीडि़तों के परिवार वालों को मिलाने में सहयोग किया. कार्यकर्ताओं ने ‘हेल्पलाईन’ शुरू कर भारत और नेपाल के लोगों के बीच बातचीत कराने में मदद की. जैसे – किसी के परिजन नेपाल में हैं, उनका क्या हाल है, कहां हैं, इन सबकी जानकारी देने में हमारे कार्यकर्ताओं ने बड़ी भूमिका निभाई. यही नहीं मृत लोगों का अंतिम संस्कार कराया, घायलों को अस्पताल पहुंचाया आदि. बाहर के जो लोग वहां मारे गए, उनके शवों को उनके घर तक पहुंचाने में भी कार्यकर्ताओं ने कड़ी मेहनत की. जैसे – गुवाहाटी की सात महिलाएं एक होटल में भूकंप का शिकार हो गई थीं. उनके शवों को गुवाहाटी पहुंचाने के लिए कार्यकर्ताओं ने काम किया. इन कार्यकर्ताओं के अतिरिक्त भारत के अनेक संगठन भी राहत कार्य कर रहे हैं, जैसे – पतंजलि योगपीठ, आर्ट ऑफ लिविंग आदि.

आखिर वह क्या है, जो संघ के स्वयंसेवकों को किसी आपदा के समय राहत कार्य करने की प्रेरणा देता है?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की यह परंपरा रही है कि किसी भी आपदा या घटना के समय उसके स्वयंसेवक राहत और बचाव कार्य में जुट जाते हैं. यही हमारी संस्कृति है. यह इस बात को भी प्रमाणित करता है कि संघ के प्रति स्वयंसेवकों में कितना विश्वास है.

एक ओर कुछ संगठन भूकंप पीडि़तों की मदद कर रहे हैं, तो दूसरी ओर कुछ देश और कुछ संगठन ‘बीफ मसाला’ और बाइबिल की प्रतियां भेज रहे हैं. इसको आप किस नजरिए से देखते हैं?

कुछ लोगों को संकट में भी स्वार्थ साधने की आदत होती है. कन्नड़ में एक कहावत है. इसका सारांश है – ‘आपकी दाढ़ी में आग लगी है, उससे मैं जरा बीड़ी जला लेता हूं.’ कुछ ऐसे ही तत्वों ने नेपाल के दु:खी नागरिकों के साथ गलत व्यवहार किया है. भारत में भी कई बार इस तरह के मामले देखने को मिले हैं. मैं नेपाल सरकार से आग्रह करता हूं कि वह इन मामलों की जांच कराए. यह भी जांच होनी चाहिए कि नेपाल में मौजूद किन तत्वों की शह पर ‘बीफ मसाला’ और बाइबिल की प्रतियां नेपाल पहुंचीं. साथ ही नेपाल के नागरिकों से निवेदन है कि वे इन मामलों में सजग और सतर्क रहें. ऐसे तत्वों को सजगता से ही दूर किया जा सकता है.

भारत में संघ की प्रेरणा से चलने वाले अनेक संगठनों ने लोगों से अपील की है कि वे नेपाल के भूकंप पीडि़तों की मदद के लिए आगे आएं. अब तक किस तरह की मदद भारत से नेपाल पहुंची है?

नेपाल सरकार के मुख्य सचिव ने हमसे कहा कि तत्काल 5 लाख तिरपाल चाहिए. इसके बाद सरकार और स्वयंसेवी संगठनों ने मिलकर 25 हजार तिरपाल भेजे हैं. सामग्री को नेपाल पहुंचाना एक मुश्किल काम है. सड़कें खराब हो गई हैं, ऊपर से ट्रक वाले मनमाना पैसा मांग रहे हैं. वे परिस्थिति का लाभ उठाना चाहते हैं. विमान की भी एक सीमा होती है. फिर भी कार्यकर्ता लगे हैं. जितनी मदद पहुंच जाए, उतना ही अच्छा रहेगा. वहां मलबे के नीचे दबे शवों से बदबू उठ रही है. इसके लिए ब्लीचिंग पाउडर की जरूरत है. हमने भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय को बताया तो उसने 2 ट्रक ब्लीचिंग पाउडर भेजा है. घायलों को ऑक्सीजन सिलेण्डर की जरूरत है, लेकिन नेपाल में इतने सिलेण्डर नहीं हैं और वहां इतने सिलेण्डर तैयार किए भी नहीं जा सकते हैं. इसलिए हमने इसकी जानकारी भारत सरकार को दी है. भारत के नागरिक भी हमें हर तरह की मदद देने को तैयार हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि मदद सामग्री नेपाल कैसे पहुंचाई जाए ? इसलिए हम पीडि़तों के लिए जितना काम करना चाहते हैं, उतना कर नहीं पा रहे हैं.

क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने नेपाल के भूकंप पीडि़तों के पुनर्वास की कोई योजना बनाई है?

हमने विचार तो किया है. इस तरह की आपदा का सामना तीन स्तर पर किया जाता है. पहला – बचाव, दूसरा – राहत और तीसरा – पुनर्वास. इन मुद्दों को लेकर मैंने पिछले दिनों प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और विदेश मंत्री से भेंट की है और उन सबसे चर्चा की है कि किस तरह भारत सरकार और अन्य स्वयंसेवी संगठन भूकंप पीडि़तों के पुनर्वास में मदद कर सकते हैं. नेपाल के भूकंप पीडि़तों की मदद के पीछे हमारा न तो कोई राजनीतिक एजेण्डा है, न ही धार्मिक. हमारा एक ही एजेण्डा है – मानवता की सेवा करना. नेपाल के प्रधानमंत्री और मुख्य सचिव से भी हमारी बात हुई है. वे भी चाहते हैं कि भारत पुनर्वास में मदद करे. दुनिया के अनेक देश भी पुनर्वास कार्य में हाथ बंटाना चाहते हैं. इसलिए पहले नेपाल सरकार एक रूपरेखा तैयार करे कि किस प्रकार नेपाल के स्वयंसेवी संगठनों, विदेशी स्वयंसेवी संगठनों और विदेशी सरकारों की सहायता से पुनर्वास का काम पूरा किया जाए. यह नेपाल सरकार से हमारी अपील है. हम तो वहां के अनाथ बच्चों, उनकी शिक्षा, किसानों आदि के लिए कार्य करना चाहते हैं. हम त्रिस्तरीय कार्य करना चाहते हैं. अनाथ बच्चों के लिए छात्रावास खोलना चाहते हैं, जो मकान गिर गए हैं, उनको बनवाना चाहते हैं और जो मंदिर ढह गए हैं, उनका पुनर्निर्माण करना चाहते हैं. भारत सरकार भी मदद करने के लिए तैयार है. दुनिया चाहती है कि नेपाल एक बार फिर से खड़ा हो.

नेपाल में भारत सरकार ने जो राहत कार्य किया है, उसकी बड़ी तारीफ हो रही है. इससे पहले युद्धग्रस्त यमन से भी भारत सरकार ने हजारों भारतीयों को निकाला था, जिनमें अनेक विदेशी भी थे. नेपाल में भारत सरकार के कार्य को आप किस रूप में देखते हैं?

राहत के मामलों में भारत सरकार के कार्य सराहनीय रहे हैं. दुनिया के सामने भारत की छवि बन रही है कि वह दूर-दराज के क्षेत्रों में भी राहत कार्य करने में सक्षम है. भारत के लोगों को भी लगने लगा है कि दुनिया में कहीं भी कुछ हो, वहां जाकर हम राहत कार्य कर सकते हैं. इसके लिए खुद प्रधानमंत्री प्रयत्नशील रहते हैं. आज आपदा प्रबंधन के मामले में भारत सरकार एक ताकत के रूप में उभरी है, यह हमारे लिए गर्व का विषय है.

भारतीय सेना ने जिस तरह नेपाल में राहत कार्य किया उसको लेकर कुछ तत्वों ने यह दुष्प्रचारित करने की कोशिश की कि भारत नेपाल में दखल दे रहा है. इस संबंध में आपका क्या कहना है?

यह कोई नई बात नहीं है. भारत को लेकर नेपाल में ऐसे दुष्प्रचार काफी समय से हो रहे हैं. नेपाल के सार्वजनिक जीवन में, राजनीतिक क्षेत्र में, नौकरशाही में, मीडिया में भारत विरोधी तत्वों को पोषित करने का लगातार प्रयास होता रहा है. चीन और भारत, दो बड़े देशों के बीच नेपाल ‘बफर स्टेट’ है. नेपाल की संप्रभुता और स्वतंत्रता पर कोई आंच न आने देते हुए भारत उसके साथ खड़ा रहे. अब तक भारत की नीति तो यही रही है. यही नीति आगे भी रहनी चाहिए. भारत और नेपाल के संबंध तो रामायण और महाभारत काल से हैं. भारत और नेपाल के सम्बंध गंगा के साथ, मिट्टी के साथ, बुद्ध के साथ, हिमालय के साथ और पशुपतिनाथ के साथ हैं. हम मानते हैं कि नेपाल और भारत एक ही परिवार के दो भाई हैं. इसलिए हमें नेपाल में कूटनीति और ईमानदारी के साथ भारत विरोधी माहौल को समाप्त करने की जरूरत है. हालांकि जब से भारत में सत्ता बदली है, तब से नेपाल में भी बदलाव आया है. उनमें भारत को लेकर एक सकारात्मक भाव पैदा हुआ है. यह भी सत्य है कि संकट की घड़ी में नेपाल के लोग भारत की ओर ही आते हैं, चीन नहीं जाते हैं, क्योंकि उन्हें भारत अपना लगता है. इसलिए भारत को भी यह ध्यान रखना होगा कि नेपाल के लोग सुखी रहें, समृद्ध हों. भारत को नेपाल के संबंध में सदैव सहयोगात्मक रवैया रखना होगा.­

साभार – पाञ्चजन्य

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