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दुर्गम पहाड़ियों, कंदराओं एवं गुफा में तपस्रयारत संतों तक पहुंची राशन सामग्री

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जंगलों में भी कोई भूखा ना रहे, इसकी भी चिंता

चित्रकूट. कोरोना महामारी को लेकर लॉकडाउन का असर चित्रकूट की उन दुर्गम पहाड़ियों, कंदराओं तथा गुफाओं में रहकर तप साधना में लीन रहने वाले संतों पर भी देखा जा रहा है, जो घने जंगलों में रहकर अध्यात्म की अलख जगा रहे हैं.

जंगलों में भी कोई भूखा ना रहे, इसकी चिंता करते हुए दीनदयाल शोध संस्थान द्वारा पिछले कई दिनों से चित्रकूट क्षेत्र के दूरदराज जंगलों की खोह-कंदरों में अपना आश्रम बनाकर प्रभु साधना में लीन ऐसे तपस्वी साधु संतों को राशन सामग्री मुहैया कराई जा रही है, जो आम आदमी की पहुंच से काफी दूर है.

ये संत दुनिया की मोह माया से विरक्त होकर चित्रकूट की महिमा के उपासक बने हैं. इनकी तपस्या, साधना, योग और विभिन्न कठिन आध्यात्मिक प्रयासों के कारण चित्रकूट क्षेत्र ब्रह्मांडीय चेतना के लिए प्रेरणा का एक जीवंत केंद्र बना हुआ है.

दीनदयाल शोध संस्थान के संगठन सचिव अभय महाजन कार्यकर्ताओं की टीम के साथ चित्रकूट के जंगलों में स्थित आश्रमों में सभी संतों को राशन सामग्री उपलब्ध करा रहे हैं. प्राचीन बांके सिद्ध आश्रम में रहने वाले तपी संतों को भी राशन पहुंचाने का काम किया. यह आश्रम चित्रकूट से करीब 8 किलोमीटर दूर देवांगना हवाई अड्डा के आगे पहाड़ों के बीचों-बीच चट्टानों से बनी गुफा में है.

इसी तरह हनुमान धारा से लगभग 5 से 7 किलोमीटर पैदल रास्ता तय करके बंदरचूही के घने जंगलों में रहने वाले संतों को भी खाने-पीने की सामग्री का इंतजाम किया गया.

चित्रकूट क्षेत्र में ऐसे कई दुर्गम स्थान हैं, जहां पर संत अपना डेरा डाल कर साधना में लीन रहते हैं. वहां पर भी राशन पहुंचाने का काम जारी है. साधु-संतों के अलावा रास्ते में मिलने वाले गरीब परिवारों को भी राशन मुहैया कराया जा रहा है.

इसके अलावा कोरोना महामारी से मुक्ति के लिए, राष्ट्र की खुशहाली, ऐश्वर्य, शांति व सुरक्षा के संकल्प के साथ भारत रत्न नानाजी देशमुख की आवास सियाराम कुटीर चित्रकूट में पिछले कई दिनों से चल रहे महामृत्युंजय मंत्र के सवा लाख जप का अनुष्ठान आज हवन पूजन के साथ संपन्न हुआ.

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