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धर्म का मतलब केवल पूजा नहीं है – डॉ. मोहन भागवत जी

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धर्म संपूर्ण सृष्टि को जोड़कर रखता है, जीवन सहित सृष्टि की उन्नति करता है – डॉ. मोहन भागवत जी

जमशेदपुर (विसंकें). 68वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर बिष्टुपुर स्थित गुजराती सनातन समाज में राष्ट्रध्वज को सलामी देने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि राष्ट्र ध्वज के बीच में जो नीले रंग का चक्र है, वह धर्म चक्र है. धर्म का मतलब केवल पूजा नहीं है. सारे जीवन की जिससे धारणा होती है, वह धर्म है. जो संपूर्ण सृष्टि को जोड़कर रखता है, बिखरने नहीं देता और जीवन सहित सृष्टि की उन्नति करता है, वही धर्म है. स्वामी विवेकानंद ने कहा था, जब तक भारत में धर्म है, इसका कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता. यदि दुर्भाग्यवश धर्म का लोप हो गया तो इसे बचाने की ताकत भी किसी में नहीं है.

उन्होंने कहा कि हम प्रतिवर्ष 15 अगस्त और 26 जनवरी को कहीं न कहीं तिरंगा फहराते हैं. राष्ट्रगान गाते हैं और चले जाते हैं. लेकिन मात्र कार्यक्रम संपन्न कर हम रूक गए तो यह पढ़े-लिखे लोगों के लिए ठीक नहीं होगा. जब हम प्रबुद्ध हैं तो इसे आचरण में भी उतारना होगा. यह दिन स्वतंत्रता के बाद हम गणराज्य बने, इसे स्मरण करने का दिवस है. देश के लोग मिलकर देश चलाते हैं, केवल सरकार नहीं चलाती. प्रजातंत्र में सरकार देश को वैसे ही चलाती है, जैसा समाज चाहता है. हम ही वो समाज हैं, इसलिए हमको इस देश के बारे में सोचना है. हम झंडा वंदन करते हैं. राष्ट्र ध्वज को भी सोच-समझकर बनाया गया है. यह सार्वभौम व संप्रभुता का प्रतीक है. केसरिया रंग त्याग को बताता है. देश सिर्फ स्वतंत्र होकर ही नहीं चलता. अनेक लोगों ने इसे स्वतंत्र करवाने के लिए बलिदान किया. इसलिए अपना पल-पल ऐसे जीना है कि उनका बलिदान सार्थक हो. त्याग के साथ ज्ञान का प्रकाश भी चाहिए. इस देश के लिए राष्ट्र ध्वज का जो संदेश है, जब हम ऐसा जीवन जीने को संकल्पबद्ध होते हैं, तो जीवन पवित्र बन जाता है. अंतर-बाह्य शुचिता आती है. प्रत्येक व्यक्ति का जीवन ऐसा हो, तो देश में समृद्धि आएगी. समृद्धि का प्रतीक लक्ष्मी है, जिसका रंग हरा है. हरा रंग लक्ष्मी ही नहीं, प्रकृति का भी परिचायक है. मन में गरीबी न आए, वह भी लक्ष्मी है, सिर्फ धन नहीं. मन को भी लक्ष्मी मिले, लोभ न हो. ध्वज के तीनों रंग कर्म, त्याग व समर्पण के प्रतीक हैं.

सरसंघचालक जी ने कहा कि जन गण मन..भारत भाग्य विधाता से हम देश के लिए प्रार्थना करते हैं. अपने देश के भूगोल का स्मरण करते हैं. आदत से ही कृति होती है. आज के दिन हम पीछे मुड़कर विचार करें. फिर अपने जीवन को इस देश के योग्य बनाने का प्रयास करें और यह काम यहां से निकलते ही प्रारंभ कर देंसमारोह के दौरान उत्तर-पूर्व क्षेत्र के संघचालक सिद्धनाथ सिंह जी, महानगर संघचालक वी. नटराजन जी भी मंचस्थ थे. दर्शक दीर्घा में करीब 200 कॉलेज छात्रों के अलावा संघ के करीब 125 उत्तर पूर्व क्षेत्र के प्रचारक भी उपस्थित थे.

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