रायपुर (विसंकें). राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच द्वारा रायपुर, छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया. जिसका विषय था ‘‘ दक्षिण छत्तीसगढ़ की समस्या और समाधान ’’ संगोष्ठी के मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य इन्द्रेश कुमार जी थे. उन्होंने कहा कि नक्सलवाद कभी भी हिंसा से समाप्त नहीं होगा. हमारे भारत देश की संस्कृति में हम सभी के लिये प्रार्थना करते हैं ‘‘ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयः सर्वे भद्राणि पष्यन्तु मा कष्चित दुःखभाग्भवेत्. यह हमारी संस्कृति है .उस प्रार्थना में हम नक्सलवादियों को, आतंकवादियों को और आततायियों को अलग नहीं करते, हम उनके सुख की कामना भी करते हैं. लेकिन उनका सुख है क्या ? हमें तो पता है कि उनका सुख और उनका हित किसमें है. उन्हें , नक्सलियों को नहीं पता है, वे भ्रमित हैं. नक्सलियों के लिये कहा कि वे अपने कार्यो का मूल्यांकन करें . जैसे – 20 – 25 सालों से चल रहे नक्सल आंदोलन ने उन्हें, उनके बच्चों को, उनके परिवार को, उनके समाज को क्या दिया ?, आपके युवाओं को, महिलाओं को, पुरुषों को कितना रोजगार दिया ?, कितने लोगों ने समाज सेवा के क्षेत्र में कार्य किया और आगे आये ?, कितने लोगों ने सड़कें बनाना सीखा ? हां तोड़ना जरुर सीखा, कितने बच्चों और बड़ों को शिक्षित किया, सुसंस्कृत किया ?, पूरे नक्सलियों की माओवादियों की कितनी उपलब्धि है – शिक्षा के क्षेत्र में, स्वास्थ्य के क्षेत्र में, समाज के क्षेत्र में, विज्ञान के क्षेत्र में या फिर किसी भी प्रकार के विकास के क्षेत्र में ?, कितने लोगों को भूखमरी, गरीबी और बीमारियों से बचाया या उनके लिये कुछ अच्छे कार्य किये ?, कितने लोगों को जीवन दिया ?, कितने गांव बसाये ? कितनी बिजली लगाई ? कितनी पानी के नल या बोर खुदवाये ?
इन्द्रेश जी ने कहा कि इसी प्रकार के अनेक प्रश्नों से नक्सिलियों को अपना मूल्यांकन करना चाहिये. इन प्रश्नों का उत्तर ही नक्सल समस्या का समाधान है. नक्सलियों को विकास का रास्ता, सुधार का रास्ता, भाईचारे का रास्ता, शिक्षा का रास्ता, सर्वे भवन्तु सुखिनः का रास्ता अपनाना चाहिये और इसमें हम उनके साथ हैं. अगर वो नहीं अपनाना चाहते तो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष साहस के साथ हमें उनके सामने खड़ा होना चाहिये. उन्हें जीवन मूल्यों से परिचित कराना चाहिये. उन्होंने कहा कि संस्कृति किसी समाज के लिये और संस्कार किसी व्यक्ति के लिये सबसे महत्वपूर्ण होते हैं. अमेरिका में 32 प्रतिशत नाबालिग कन्याएं गर्भवती हो जाती हैं. अमेरिका ने इसे नेचुरल सेक्स कह कर क्राईम से ही निकाल दिया. वैसे ही चीन ने भ्रूण हत्या को क्राईम से निकाल दिया. हमारे देश ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा दिया.
उन्होंने संस्कार कितने महत्वपूर्ण होते हैं, उसका एक उदाहरण दिया – एक कार्यक्रम के आयोजकों ने अपने कार्यक्रम में लोगों को ड्रायफ्रूट के पैकेट बांटे, जिसे खोलते समय नीचे गिर गये ड्रायफ्रूट लोगों ने नहीं उठाये, मिट्टी में मिल गये फेंक दिये गये. एक दूसरे कार्यक्रम में भी आयोजकों ने ड्रायफ्रूट बांटे, लेकिन ये कह कर कि यह भगवान का प्रसाद है, लोगों ने पैकेट खोले ड्रायफ्रूट गिरे भी, लेकिन लोगों ने भगवान से माफी मांगते हुए ड्रायफ्रूट उठाया और फिर उसे साफ कर खा लिया. यह सिर्फ भारत में होता है. कहने का तात्पर्य यह है कि सारा खेल समझ का है, भावों का है. नक्सलियों को भ्रमित किया गया है. वे अपने कार्यों का मूल्यांकन करें. हिंसा और हथियार किसी भी प्रकार से किसी समस्या या मांग का हल नहीं निकाल सकते. हथियार कभी भी शिक्षा, विकास और स्वास्थ्य का पर्याय नहीं है. वह सिर्फ मृत्यु का पर्याय है. अपने आंदोलन को मानवता के लिये बनायें, जीवन मूल्य कहां हैं ? इस पर विचार करें. फिर देखिये नक्सलवाद कैसे खत्म हो जाता है.