पालघर के गढ़चिंचले में जूना अखाड़ा के दो संतों व उनके चालक की नृशंस हत्या कर दी गई थी. तब से लेकर अब तक घटना को लेकर काफी कुछ कहा जा चुका है. राजनीति भी होती रही, सामान्य घटना बताकर दबाने का प्रयास भी किया गया. लेकिन वास्तव में यह कोई सामान्य घटना नहीं है, इसके पीछे एक पूरी कड़ी है, जिसे समझना होगा…..महाएमटीबी की ग्राउंड रिपोर्ट को आधार बनाते हुए एक श्रृंखला शुरू कर रहे हैं……
मुंबई. गुरूवार, 16 अप्रैल को महंत कल्पवृक्ष गिरी जी और महंत सुशिल गिरी जी की महाराष्ट्र के पालघर जिले में हत्या हुई थी. गढ़चिंचले गांव में 400-500 लोगों की भीड़ ने पथराव एवं लाठियों से हमला कर दोनों महंतों एवं उनके वाहन चालक निलेश तेलगड़े की नृशंस हत्या कर दी थी. और यह जघन्य हत्याकांड पुलिस टीम के समक्ष हुआ था. भीड़ ने संतों के पैसे व आभूषण भी लूट लिए थे. घटना से संबंधित कुछ वीडियो रविवार, 19 अप्रैल को वायरल हुए तो घटना का खुलासा हुआ, इससे पहले तक घटना को एक तरह से दबा दिया गया था. घटना की जानकारी सामने आने के बाद देशभर में आक्रोश पैदा हो गया.
घटना की जानकारी सामने आने के पश्चात महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने अपने वक्तव्य में कहा था कि गढ़चिंचले गाँव में जाने के लिए अच्छी सड़क नहीं है. जबकि वास्तविकता यह है कि पालघर से एक अच्छी सड़क गढ़चिंचले गाँव से ही आगे दादरा नगर हवेली तक जाती है. दोनों संत इस मार्ग से ही गुजर रहे थे. क्षेत्र में कुछ दिनों से (विशेषकर लॉकडाउन के दौरान) अनेक अफवाहें फैलाई गई थीं, जैसे साधुओं के रूप में बच्चे चोर, लूटेरे आएंगे या किडनी चोर आदि घूम रहे हैं.
यहां पर संविधान, फौजदारी कानून लागू नहीं है, गांव के आस पास ऐसे बोर्ड लगे हैं. इस बारे में गांव के एक स्थानीय निवासी (नरेश मराड) बताते हैं कि साधुओं की हत्या केवल अफवाहों के कारण नहीं हुई. इन जनजातियों के मन में हिन्दू धर्म के प्रति जो गलत फहमियां फैलाई गयी है, जो द्वेष मन में भर दिया गया है, उसी के कारण यह घटनाएं हो रही हैं. क्षेत्र में पिछले कई वर्षों से काम कर रही आदिवासी एकता परिषद, कष्टकरी संगठन, के कार्यकर्ता समाज में ऐसी अफवाहें फैला रहे हैं. इसके फलस्वरूप गांव में दो साल पहले महालक्ष्मी माता की ‘साडीचोळी’ पारंपरिक यात्रा को विरोध हुआ, वारकरी संप्रदाय- जो महाराष्ट्र की विशेषता है; उस संप्रदाय के अखंड हरिनाम सप्ताह का भी एक बार विरोध हुआ था. ईवीएम के विरोध में भी यहां की दीवारों पर पोस्ट लगाए गए हैं.
इस क्षेत्र में विनोद निकोले जैसे कुछ नेता वामपंथी विचारों का प्रसार करते आए हैं. अगर कोई डॉक्टर परिसर में आए तो यह तुम्हें मारने आया है, कोई अधिकारी विकास योजना लेकर आए तो यह हमारी जमीन छिनने वाला है, ऐसा अपप्रचार किया जाता है. ‘आप लूटपाट करो, हम देख लेंगे’ ऐसा प्रोत्साहन युवाओं को दिया जाता है. यह भड़काना सिर्फ विकास योजनओं तक सीमित नहीं. जनजातियों को अपनी मूल संस्कृति से दूर करने का काम भी वामपंथियों द्वारा किया जाता है.
जनजाति समाज यह भारत का आदिम समाज है. जनजाति संस्कृति और मूल भारतीय संस्कृति में अनेक समानताएं दिखाई देती हैं. ‘अथ नाचू काय तथ नाचू, धरतरी माझी माय र तिला पाय कसा मी लावू र?’… ऐसी प्रार्थना नृत्य के पूर्व की जाती है. ‘समुद्र वसने देवी’ यह प्रार्थना हम रोज सुबह धरती को पैर लगाने से पहले करते है. धरती को माता मानना यहाँ की सभ्यता है. इस संस्कृत श्लोक का ही यह एक स्थानिक रूप है. यह केवल एक उदाहरण है. ऐसी अनेक परंपराएं दिखाई देती हैं. यहाँ दशहरे के दिन धूमधाम से रावण दहन किया जाता है. हिन्दू परंपराओं को मानने वाले जनजाति समाज में आज रावण की पूजा हो रही है. ऐसे विद्रोही विचारों के बीज जनजाति के युवकों में बोए जा रहे हैं. उसे हिन्दू विरोधी करना, हिन्दू धर्म के प्रति विद्वेष उनके मन में भरना, यह कार्य इन संगठनों द्वारा किये जा रहे हैं. ऐसे विचारों के कारण ही साधुओं की हत्या जैसी घटना क्षेत्र में हुई.
Ground Report – MahaMTB
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