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पालघर हत्याकांड – ३

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साधुओं की हत्या केवल गलतफहमी के कारण नहीं?

पालघर जिले के गढ़चिंचले गाँव में 16 अप्रैल को दो साधुओं की बर्बर हत्या कर दी गई थी. घटना से कुछ दिन पूर्व से गाँव में अनेक अफवाहें चल रही थीं. चोर आते हैं, कुछ लोग बच्चों को उठाकर ले जा रहे हैं, किडनी निकालने वाली एक टोली घूम रही है, ऐसी अफवाहें गाँव में चार-पांच दिन से फैल रही थीं. इन अफवाहों के कारण पालघर जिले के अनेक लोग रात को जाग रहे थे. इसी दौरान दोनों संत अपनी गाड़ी से जा रहे थे, और भीड़ ने निर्ममता से उनकी हत्या कर दी. पर, क्या वास्तव में यह घटना गलतफहमी के कारण हुई?

सन् 2000 में ‘आदिवासी हिन्दू नहीं’ ऐसा एक नारा इस क्षेत्र में लगाया जा रहा था. जनजाति समाज का एक सम्मलेन हुआ था. कष्टकरी संगठन के बड़े नेता कालूराम तोताड़े ने यह नारा सम्मेलन में दिया था. जिसके पश्चात इसका (जनजाति समाज हिन्दू नहीं है) प्रचार अधिक जोर शोर से होने लगा. पालघर के दहाणु, वाडा आदि इलाकों में आदिवासी एकता परिषद, कष्टकरी संगठन, माओवादी संगठन संगठनों का प्रभाव भी बढञता गया. जनजातियों के नाम पर उनके अधिकार, उनका आरक्षण जैसे मुद्दों को लेकर अपनी जमीन तैयार की है.

कुछ दिनों पश्चात हम हिन्दू नहीं, राम हमारे देवता नहीं, हमारी संस्कृति अलग है, इस प्रकार के विचार का प्रचार इस क्षेत्र में होने लगा. इसी के कारण हिन्दू धर्म के बारे में द्वेषमूलक भावना जनजाति युवाओं के मन में उत्पन्न होती है. हिन्दू धर्म को लेकर किया गया मिथ्या प्रचार, इस घटना के पीछे का मूल हो सकता है.

सोशल मीडिया के माध्यम से क्षेत्र में लंबे समय से हिन्दू धर्म के विरोध में दुष्प्रचार चल रहा है. आज भी यहां का युवा अच्छी तरह से शिक्षित नहीं है. जिस कारण राष्ट्र घातक, द्वेषमूलक विचारों के जाल में फंस जाता है. वर्तमान में क्षेत्र के युवाओं में एक प्रचार यह भी किया जा रहा है कि सरकार जनजातियों का आरक्षण छीनने वाली है. अगर आपके हिन्दू होने की जानकारी सरकार को हुई तो जनजातीय आरक्षण समाप्त हो जाएगा. यही कारण है कि अनेक जनजाति लोग अपने पूजाघर में हिन्दू देवी देवताओं की पूजा करने से डरते है. यह संगठन जनजाति समाज के भोलेपन का लाभ उठाकर भ्रम फैलाने की रणनीति पर काम करते हैं. भोलेभाले लोगों में शिक्षित लोग भ्रम को प्रचारित करते हैं, शहरी वामपंथी जनजाति युवाओं को अपने विचारों से प्रभावित करते है. माओवादी विचारों से प्रभावित कुछ घटक इस परिसर में हिन्दू विरोधी और राष्ट्रविरोधी विचारों का प्रसार कर रहे हैं.

जनजातियों के विकास के लिए लागू पेसा एक्ट में कहा है कि जनजाति समाज यहाँ का मूलनिवासी है. समाज विघटक ताकतों ने इस सन्दर्भ का उपयोग जनजातियों को हिन्दू समाज से दूर करने के लिए किया. मूलनिवासी बताकर जनजातियों को भड़काया और यहां पर पुलिस, सरकारी अधिकारी, शिक्षक नहीं आ सके. जिन ऋषि-मुनि, साधु-संतों के प्रति जनजातियों का असीम आदर था, आज उनके मन में साधु संतों के प्रति द्वेष की भावना आ गई है. इसी कारण साधु संतों पर हमले की घटनाएं होती हैं. पालघर की घटना के पीछे की वजह केवल अफवाह या गलतफहमी नहीं, बल्कि समाज विघातक ताकतों का षड्यंत्र है.

और ऐसा नहीं है कि केवल पालघर में यह षड्यंत्र चल रहा हो, देशभर में वनवासी क्षेत्रों में समाज विघटक शक्तियां भ्रम फैलाने में लगी हैं.

महाराष्ट्र-गुजरात सीमा पर पालघर जिले के दहानू तालुका में कुछ आदिवासी बहुल गाँवों ने साइनबोर्ड लगा रखे हैं, जो यह घोषणा करते हैं कि संसद या राज्य विधानसभा द्वारा बनाए गए कानून लागू नहीं होते हैं. सार्वजनिक स्थानों पर लगाए जाने वाले लाल साइन बोर्ड का शीर्षक है – “भारतीय संविधान के अनुच्छेद 244 का हवाला देते हुए पांचवीं अनुसूची में पहचाने गए आदिवासी बहुल क्षेत्रों के प्रशासन और नियंत्रण से संबंधित साइन बोर्ड बाहरी लोगों को चेतावनी देते हैं कि वे एक अनुसूचित क्षेत्र में हैं.”

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