क्या जनजातियों का अपना धर्म नहीं?

राज्यपाल को संबोधित एक पत्र
मुंबई (विसंकें). अप्रैल में महाराष्ट्र के वनवासी क्षेत्र में हिन्दू साधुओं की निर्मम हत्या की गयी. इस क्षेत्र में सदियों से जनजाति समाज का वास है. पिछले कुछ वर्षो में इस क्षेत्र में वामपंथियों का प्रभाव बढ़ा है. जनजातियों के मन में अपने ही धर्म के प्रति जहर घोलने का कार्य वामपंथी कर रहे हैं. जनजातियों का अपना धर्म ही नहीं, ऐसा अपप्रचार इस क्षेत्र में किया जा रहा.
वास्तव में ऐसा कहा जाता है कि धर्म और संस्कृति की जितनी मनःपूर्वक रक्षा जनजाति समाज ने की है, शायद ही भारत के किसी अन्य समाज ने की होगी. जनजाति समाज की अपनी विशेष संस्कृति है. अपनी सभ्यता-परंपराएं हैं. खान पान के अपने नियम हैं. अन्य हिन्दुओं की तुलना में जनजातियों ने अपने हिन्दू धर्म की निष्ठापूर्वक रक्षा की है. उनकी जीवनपद्धति में हिंदुत्व प्रतीत होता है. इसके कुछ उदाहरण देखते हैं…..
जनजाति समुदाय में विवाह समारोह बड़े उत्साह और विधिपूर्वक मनाया जाता है. ‘राम राम’ नाम की प्रथा के बिना यह समारोह पूर्ण नहीं होता. ‘गौरी-गणपति’ नृत्य में जगह जगह पर राम-लक्ष्मण, शंकरमहादेव, गंगा-गौरी आदि देवताओं के दर्शन होते हैं. जनजाति समाज के घरों में राम-लक्ष्मण जी की पूजा होती है. इन लोगों में बालकों के नाम रामा(राम), लक्ष्या (लक्ष्मण), लखमी (लक्ष्मी), गंगी (गंगा), के नाम पर रखे जाते है. अगर कोई नि:संतान हो तो भगवान का व्रत किया जाता है, और बाद में बच्चे का नाम नवश्या (व्रत=मराठी में नवस) रखा जाता है. चैत्र मास में जन्मे बालक का नाम ‘चैत्या’ रखा जाता है. इस तरह से जनजाति समाज में हिंदुत्व के अनेक उदाहरण दिखाई देते हैं.
असल में जनजाति समाज जो पर्व या उत्सव मनाते हैं, वे हिन्दू धर्म के ही उत्सव है. हिन्दू समाज में जिस संस्कृति का पालन ब्राह्मण करता है, उसी संस्कृति का पालन जनजाति समाज भी करता है. सभी समुदायों के पर्व, उत्सव एक ही हैं. सभी उदाहरण देखने के पश्चात यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि जनजाति समाज निष्ठावान हिन्दू है, अपनी परम्पराओं का पालन करता है, किसी के दबाव में न आते हुए अपने धर्म का अभिमान रखता है.
फिर भी वामपंथी विचारों के लोग ‘जनजाति हिन्दू नहीं हैं’ ऐसा प्रचार कर रहे हैं. आज समाज माध्यमों को फायदा उठाते हुए वे अपनी बात युवाओं को समझा रहे है. जिस प्रकार खेती करने के लिए जमीन तैयार की जाती है. उसी प्रकार जनजाति हिन्दू नहीं, इस विचार का प्रसार किया जा रहा है. यह विचार दृढ़ हो जाए तो कुछ दिनों बाद स्वयं जनजाति भी इसे ही सच मानने लगेंगे और फिर बाहर से आये हुए अन्य धर्मी को अपना धर्म यहां पर प्रस्थापित करना और भी आसान हो जाएगा, यह कारण इन सब प्रयासों का मूल है. जनजाति हिन्दू नहीं, इस विचार का प्रसार धर्मान्तरण के लिए अनुकूल जमीन तैयार करने का एक सहज मार्ग है.
जनजाति हिन्दू नहीं है, ऐसा विचार युवाओं के मन में भरने के लिए व्हाट्सअप जैसे माध्यमों का उपयोग किया जा रहा है. पारंपरिक विचारों से अलग लगने वाले ये विद्रोही विचार अनेकांश युवाओं को आकर्षित कर रहे हैं. जनजाति युवाओं के मन में राम आपके देवता नहीं, बल्कि रावण हमारे देवता हैं. जिनका विवाह समारोह राम से ही शुरू होता है, उनके लिए यह विचार नया था. लेकिन आज युवा विजयादशमी के अवसर पर रावण दहन का विरोध कर रहे हैं. इस परंपरा को विरोध करने वाला पत्र सरकारी कार्यालयों में दिया गया, जिसमें कहा गया कि रावण हमारे देवता हैं और उसका दहन नहीं किया जाना चाहिए. यह विचार आज पूरे पालघर जिले में फ़ैल चुका है.
गणेश चतुर्थी का पर्व महाराष्ट्र के जनजाति समुदाय में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. परन्तु हिन्दू धर्मं का विरोध करने के लिए, जनजाति को हिन्दू धर्म से तोड़ने के लिए यह पर्व हमारा नहीं है, ऐसा विचार युवाओं के सामने रखा जा रहा है. गणपति हिन्दुओं के देवता हैं. हम हिन्दू नहीं जनजाति हैं, और यहाँ के ग्रामदेवता ‘हिरवा देव’ हैं. ये बात सच है कि हिरवा देव यह जनजाति बांधवों के स्थानीय ग्रामदेवता हैं. परंतु ‘हिरवा देव’ का वार्षिक पर्व केवल दशहरे के दिन मनाया जाता है. दशहरे के दिन हिरवा देव का पर्व और रावण दहन यह दोनों जनजाति विशेष परम्परा है. गणेशोत्सव का विरोध करने के लिए हिरवा देव का महत्त्व बढ़ाना और गणेश चतुर्थी के दिन हिरवा देव की पूजा करने पर मजबूर करना, यह जनजातियों की परंपरा के खिलाफ है. लेकिन, इस षड्यंत्र को न समझने वाले युवा आज इस विचार का पालन करते दिखाई देते हैं. ऐसी घटनाओं का आधार लेकर, उदाहरण देकर व्हाट्सएप के माध्यम से अन्य युवाओं को प्रोत्साहित करने का कार्य भी किया जा रहा है. और जनजाति समाज को भ्रमित किया जा रहा है.
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