वामपंथियों की हिंसा की कहानी
सामाजिक कार्यकर्ता गोदूताई परुलेकर ने साहूकारों के अन्याय से त्रस्त जनजातियों को साहूकारों के परेशानी से बाहर निकालकर अपनी जमीन का हक़ प्राप्त करने के उद्देश से तलासरी में सीपीएम पार्टी को प्रवेश दिया. परन्तु, उनका वह उद्देश्य पीछे रह गया. और सीपीएम के नेताओं ने इन जनजातियों के भोलेपन का फायदा उठाना शुरू कर दिया. उनका अज्ञान दूर करना दूर ही रह गया, अपितु उनको समाज से तोड़ने का ही काम किया. जो सीपीएम पार्टी को नहीं मानता, उसे यहाँ पर नहीं रहने दिया जाएगा, खेती नहीं करनी दी जाएगी, ऐसा प्रचार किया गया. वनवासी कल्याण केंद्र से शिक्षा प्राप्त विद्यार्थी जब अपने गाँव में जाकर शिक्षा का प्रसार करता है, शिक्षा का महत्व अपने जनजाति बन्धुओं को समझाता है तो सीपीएम के कार्यकर्ताओं द्वारा उस युवा के साथ मारपीट की जाती है, ऐसी घटनाएं अक्सर सामने आती रहती हैं. उसे धमकाना, कभी उनके घरों में तोड़ फोड़ की घटनाएं भी होती हैं.
1990 में सीपीएम के हाथों से दो गांवों को महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री स्व. चिंतामन वनगा जी ने बचाया. तब सीपीएम के कार्यकर्ताओं ने उन गावों पर हमला किया और लोगों के घर तोड़ दिए. ३००-३५० लोग बेघर हो गए. तक़रीबन ३५०० बकरियां, गाय, भैस आदि जानवर मार डाले गए. खेती करने वाले २०० बैलों को वार करके उन्हें जख्मी कर दिया. इसके बाद वे कार्यकर्ता स्वयं पुलिस थाने गए और गांव वालों के खिलाफ शिकायत कर दी. वनवासी कल्याण केंद्र से सम्बंधित ५०-६० लोगों के घर पूरी तरह से ध्वस्त किये गए. सीपीएम द्वारा फैलीयी इस दहशत के कारण जनजातियों के विकास में बाधा आती रही है.
जो सीपीएम की नहीं सुनेगा, उसे और उसके घर को समूल नष्ट करना, यही इस पार्टी की नीति रही है. स्थानीय सीपीएम कैडर को अन्य स्थानों पर प्रशिक्षित किया जाता है. गाँव में विकास की किसी नई योजना पर कार्य हो रहा हो तो उसमें बाधा उत्पन्न करना, शिक्षक, डॉक्टर या कोई सरकारी अधिकारी गाँव में आए तो उसके बारे में गलतफहमी फैलाना, यह सब इनका कार्य रहता है. स्थानीय नेता विनोद निकोले भी ऐसे ही कार्यकर्ताओं में से है. समाज में पैदा किये भ्रम के कारण ही जनजाति समाज के लोग बाहर से आने वाले लोगों पर हमला करते हैं, उनका विरोध करते हैं. पालघर में संतों की हत्या भी इसी षड्यंत्र का भाग है.
वामपंथी ऐसी घिनौनी मानसिकता एवं कृति के लिए कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करते हैं. सीपीएम के माध्यम से हर छह महीने में प्रशिक्षण वर्ग का आयोजन किया जाता है. 1992 में भी इसी मानसिकता के कारण सीपीएम के गुंडों ने विहिप द्वारा संचालित वनवासी विकास केंद्र पर हमला किया था. इन प्रकल्पों से जुड़े अनेक कार्यकर्ताओं पर भी हमला हुआ. क्षेत्र के विकास के लिए संचालित सेवा प्रकल्पों में कार्य करने वाले, भगवा वस्त्र धारण किये, भगवा ध्वज उठाने वाले का विरोध व उन पर हिंसा वामपंथियों की वृत्ति रही है. इसी माओवादी वृत्ति के कारण 16 अप्रैल, 2020 को हिन्दू साधुओं की घिनौने तरीके से हत्या की गयी.
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