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पैरवी की फीस नहीं लेते एचएस फुल्का, कैबिनेट दर्जे का पद त्याग दिया था

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नई दिल्ली. दिल्ली उच्च न्यायालय ने 1984 में सिक्खों के नरसंहार के मामले में कांग्रेस के पूर्व सांसद सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा सुनाई. न्यायालय के आदेशानुसार सज्जन कुमार को 31 दिसंबर तक आत्म समर्पण करना है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी न्यायालय के फैसले का स्वागत किया है. उन्होंने अपने ट्विट में कहा कि आखिर न्याय मिल गया.

सज्जन कुमार को सजा की दहलीज तक पहुंचाने में अधिवक्ता एचएस फुल्का की भी अहम भूमिका रही है. उन्होंने सज्जन कुमार को सजा दिलाने और न्यायालय में केस लड़ने के लिए पंजाब में कैबिनेट मंत्री का दर्जा छोड़ दिया था, तथा वह मामले में पैरवी की फीस भी नहीं लेते.

फुल्का इस केस में पहले से ही जुड़े थे. केस के प्रति फुल्का की संजीदगी को इसी से समझा जा सकता है कि पंजाब विधानसभा चुनाव के बाद वह नेता विपक्ष बने थे. क्योंकि आम आदमी पार्टी राज्य में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बनी थी और उन्हें सदन में विपक्ष का नेता बनाया गया था. लेकिन उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया था. आम आदमी पार्टी ने राज्य में 20 सीटों पर जीत दर्ज की थी.

एक सफल अधिवक्ता फुल्का को एक ऐसे वकील के तौर पर जाना जाता है, अगर वह जान लें कि उनका क्लाइंट गलत है तो वह उसका केस नहीं लेते हैं. फुल्का और मनजिंदर सिंह सिरसा ने सज्जन कुमार को दोषी ठहराए जाने के बाद दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर जश्न मनाया. फुल्का ने 2014 में आम आदमी पार्टी के टिकट से लोकसभा चुनाव भी लड़ा था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. फुल्का पिछले करीब 30 साल से लगातार एडवोकेट के तौर पर सिक्खों का पक्ष रखते आ रहे हैं और उन्होंने इसके लिए कोई फीस भी नहीं ली है.

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