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बिहार में सिर उठाती कट्टरपंथी ताकतें

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देश के अन्य राज्यों की तरह बिहार में भी जिहादी तत्व सिर उठाने लगे हैं. वे हिन्दू पर्व-त्यौहारों पर हिन्दुओं को निशाना बनाते हैं और हिंसा का बहाना ढूंढते हैं. बिहार में इस साल विजयादशमी से लेकर छठ तक ऐसी कई घटनाएं दर्ज की गईं. प्रदेश में कई स्थानों पर गणेश और लक्ष्मी की प्रतिमाओं को छठ पूजा के बाद विसर्जित किया जाता है.

छठ के बाद 4 नवंबर की रात को पटना सिटी के आलमगंज स्थित बबुआगंज में प्रतिमा विसर्जन को लेकर हिंसक झड़प हुई. इसकी शुरुआत डीजे पर गाना बजाने को लेकर हुई. दरअसल, एक जुलूस प्रतिमा विसर्जन के लिए जा रहा था. आलमगंज की सकरी गली इलाके के पास कुछ मुसलमानों ने डीजे पर फरमाइशी गाना बजाने की मांग की जो अश्लील था. जुलूस में शामिल लोगों ने गाना बजाने से मना किया और उन्हें समझाकर आगे बढ़ गए. जुलूस अभी कुछ आगे ही बढ़ा था कि मजहबी उन्मादियों ने अचानक पथराव शुरू कर दिया. स्थानीय लोगों का कहना था कि पूर्व वार्ड पार्षद शगुफ्ता जबीं उर्फ सुगन के इशारे पर पथराव किया गया. कट्टरपंथी मुसलमानों ने जुलूस में शामिल लोगों के साथ मारपीट भी की. उन्होंने बीच-बचाव करने आए स्थानीय लोगों को भी पीट दिया. इसके बाद स्थिति बिगड़ गई. पथराव के बीच हवाई फायरिंग भी होने लगी तो भगदड़ मच गई. घरों के दरवाजे और दुकानों के शटर धड़ाधड़ गिरने लगे. घटना के बाद प्रशासन हरकत में आया. लेकिन उपद्रवियों ने पुलिस की जिप्सी भी जला दी. इस हिंसा में 12 से अधिक लोग घायल हो गए. हालात को नियंत्रण में करने के लिए पुलिस ने फ्लैग मार्च किया. साथ ही, प्रतिमा विसर्जन में शामिल कात्यायनी क्लब के तीन सदस्यों और ट्रैक्टर चालक को हिरासत में ले लिया और रातभर रखा. पर, प्रशासन की एकतरफा कार्रवाई से आक्रोशित सैकड़ों लोगों ने हाजीपुर से पटना को जोड़ने वाले गांधी सेतु के पास गायघाट में सड़क को जाम कर दिया. हालात को बेकाबू होते देख पुलिस ने पीआर बॉण्ड भरवाने के बाद चारों को छोड़ दिया. शांति बहाली के लिए प्रशासन को एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ा. फ्लैग मार्च के साथ आलमगंज, गुड़ की मंडी, गायघाट, सुल्तानगंज, चौधरी टोला, पत्थर की मस्जिद क्षेत्र, शाहगंज, महेंद्रू आदि इलाकों के सम्मानित बुजुर्गों की मदद से प्रशासन किसी तरह हालात को सामान्य करने में सफल रहा. उधर, 5 नवंबर को फतुहा थानाक्षेत्र में भी प्रतिमा विसर्जन को लेकर हिंसा हुई. पुलिस ने जब उपद्रवियों को खदेड़ा तो उन्होंने पुराने राष्ट्रीय राजमार्ग को जाम कर दिया.

इसी साल, दुर्गा पूजा के दौरान जहानाबाद में हालात काफी बिगड़ गए थे. विजयादशमी के दिन सुबह 6 बजे अस्पताल गेट के पास दुर्गापूजा पंडाल में किसी ने मांस का टुकड़ा फेंक दिया. लोगों ने शीर्ष प्रशासनिक अधिकारियों के अलावा राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी इसकी शिकायत की. घटना के एक दिन बाद प्रतिमा का विसर्जन होना था. लोगों को आशंका थी कि विसर्जन के दौरान शरारती तत्व किसी अप्रिय घटना को अंजाम दे सकते हैं. द्वादशी के दिन बड़ी देवी ठाकुरबाड़ी स्थित दुर्गा प्रतिमा को विसर्जन के लिए ले जाया जा रहा था. पीछे पांच अन्य स्थानों की भी प्रतिमाएं थीं. विसर्जन यात्रा सुबह करीब 7 बजे जब पंचमहला मुहल्ले के पास कच्ची मस्जिद के निकट पहुंची तो पथराव शुरू हो गया और प्रतिमा क्षतिग्रस्त हो गई. यात्रा में शामिल लोगों की ओर से भी स्वाभाविक रूप से प्रतिक्रिया हुई. दो दिन तक हालात बेकाबू रहे, लेकिन जल्द ही स्थिति को नियंत्रण में ले लिया गया. प्रशासन के साथ तत्काल बैठक हुई, जिसमें हिन्दू पक्ष ने पत्थरबाजों की तत्काल गिरफ्तारी की मांग की. घटना के बाद से जहानाबाद के मुकेश कुमार भारद्वाज अभी तक तनाव में हैं. बातचीत में इस साल हुई घटना को याद करते ही उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आती हैं. पुलिस की कार्रवाई के डर से उन्हें कई दिन घर से बाहर रहना पड़ा. तनाव को समाप्त करने की उनकी कोशिशें उलटे उन्हीं पर भारी पड़ीं.

यह पहला अवसर नहीं था, जब जहानाबाद में दुर्गा पूजा के अवसर पर इस तरह की घटना हुई. बीते तीन साल से विजयादशमी पर साम्प्रदायिक तनाव पैदा किया जा रहा है. वर्ष 2015 में भी जहानाबाद में 63 लोगों के विरुद्ध मामला दर्ज किया गया था. इनमें अधिकांश के विरुद्ध पुलिस के पास कोई सबूत भी नहीं थे. इसे देखते हुए लोगों को आशंका थी कि पुलिस कहीं इस बार भी बहुसंख्यक समाज के लोगों को झूठे मामलों में न फंसा दे. प्रशासन ने हस्तक्षेप कर किसी तरह से प्रतिमा विसर्जन तो करवा दिया, लेकिन हमेशा की तरह आरोपियों के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं हुई. उलटे 11 अक्तूबर को शहर के जाफरगंज मुहल्ले में मजहबी उन्मादियों ने महादलित समाज का उत्पीड़न शुरू कर दिया. इसके कारण 50-60 हिन्दू परिवार सबकुछ छोड़कर अपने रिश्तेदारों के यहां चले गए. कई परिवारों ने तो जहानाबाद स्थित देवी मंदिर में शरण ली. आलम यह था कि गृह सचिव आमिर सुबहानी की मौजूदगी में कट्टर मजहबी तत्वों ने महादलित समाज के लोगों को निशाना बनाया. इससे स्थानीय लोगों में आक्रोश था. शांति स्थापित करने की तमाम कोशिशें विफल साबित हुईं. इसी बीच, एक 22 वर्षीय युवक विष्णु कुमार की गोली मारकर हत्या कर दी गई. इसके बाद गोरक्षणी, पंचमहला, प्यारी मुहल्ला, आंबेडकर नगर, जाफरगंज, सोइया घाट आदि जगहों पर जमकर रोड़ेबाजी हुई. हालांकि प्रशासन ने रात से ही शहर में इंटरनेट सेवा पर पाबंदी के साथ धारा 144 लगा दी थी. अगले दिन सुरक्षाबलों ने फ्लैग मार्च भी किया. विष्णु की हत्या की सूचना मिलते ही लोग आक्रोशित हो गए. उधर, पारंपरिक हथियारों से लैस जाफरगंज के मुसलमान सड़कों पर उतर आए. हिंसा में कुछ दुकानें भी क्षतिग्रस्त हो गईं. दुर्गा पूजा के बाद लक्ष्मी पूजा के दौरान भी राज्य में कई स्थानों पर साम्प्रदायिक हिंसा हुई.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार 2017 में देश में 58,729 साम्प्रदायिक दंगे हुए, जिनमें 11,698 दंगे केवल बिहार में हुए. इस वर्ष देश में 723 साम्प्रदायिक दंगे हुए, जिसमें बिहार में हुए 163 दंगे भी शामिल हैं. पड़ोसी राज्य झारखंड में 2016 में साम्प्रदायिक हिंसा की 176 घटनाएं हुई थीं, जो 2017 में घटकर 66 रह गईं. वहीं बिहार में 2016 में साम्प्रदायिक हिंसा की 139 घटनाएं हुईं, जो 2017 के मुकाबले 24 कम थीं. समाजशास्त्री डॉ. गिरीश गौरव इस स्थिति के लिए प्रशासन की मानसिकता को दोषी मानते हैं. वे कहते हैं कि 2005 से 2010 के दौरान लोगों में प्रशासन व कानून-व्यवस्था के प्रति विश्वास जमा था जो बाद के वर्षों में खत्म हो गया. अब लोगों का प्रशासन से विश्वास उठता दिखता है. उनके मन में अपनी सुरक्षा को लेकर संशय रहता है. ऐसी स्थिति में प्रशासन के समक्ष यही चुनौती है कि वह कैसे लोगों का विश्वास बहाल करे.

संजीव कुमार

 

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