पानीपत (विसंकें). विवेकानंद की साधना, एकांत, संस्कार व अध्ययन वैश्विक पटल पर उन्हें पहचान दिलाता है. धरती पर जब तक जीवन रहेगा, उनकी विचारधाराएं लोगों को ऊर्जा देती रहेंगी. एसडी पीजी महाविद्यालय में बृहस्पतिवार को देश के विकास में स्वामी विवेकानंद की प्रासंगिकता और सामाजिक समरसता विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग प्रचारक नरेन्द्र कुमार संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि अपनी संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृति रही है. कभी भी जाति व्यवस्था नहीं रही, बल्कि वर्ण व्यवस्था थी. भारत में अनेक महापुरुष हुए, जिन्होंने सामाजिक समरसता के उदाहरण प्रस्तुत किये. भगवान श्रीराम ने भीलनी के जूठे बेर खाकर तथा केवट को गले लगाकर उसी प्रकार डॉ. भीमराव आंबेडकर जी ने भी हिन्दू धर्म में से जात पात को मिटाने का प्रयास किया.
विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बहन निवेदिता ने कहा कि स्वामी जी का राष्ट्र के प्रति दृष्टिकोण व उनकी शिक्षाएं मानवीय व्यवहार में लाई जानी आवश्यक हैं. इससे प्रत्येक क्षेत्र में पूर्ण विकास संभव होगा. सामाजिक व राष्ट्रीय सुदृढ़ता स्थापित होगी. सफलता का अंतर व्यक्ति के चरित्र से होता है. राष्ट्र विकास के लिए राष्ट्रीय पद्धति से विकास होगा. अनुकरण करने से विकास का पहिया आगे नहीं बढ़ेगा. सीखना है, लेकिन भारतीय पद्धति के अनुसार. जब तक देशवासियों में आत्मीयता नहीं आएगी, देश विकास नहीं कर सकता. हर राष्ट्र का प्राण होता है, भारत का प्राण धर्म में है. धर्म चला गया तो देश नहीं रहेगा. विविधता को एक साथ रखने की जीवन पद्धति इस राष्ट्र की है. समय व ऊर्जा राष्ट्र के विकास में लगाएं. स्वयं के बारे में सोचने से राष्ट्र का विकास नहीं हो सकता. विकास जो वंचित रह गए, उसे कुछ समय दें. देशभर में एक संकल्प लेकर स्वामी विवेकानंद जी ने समुद्र के बीच में बैठ कर साधना की. हिलोरे लेती लहरें उन्हें डिगा नहीं सकी. मन में स्वामी जी का विचार आते ही रोमांच व ऊर्जा का संचार होने लगता है. वर्तमान में भी उठो जागो का संदेश युवाओं में लोकप्रिय है.