वाराणसी (विसंकें). अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना नई दिल्ली एवं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, इतिहास विभाग और सामाजिक विज्ञान संकाय के संयुक्त तत्वावधान में इतिहास लेखन, इतिहास दृष्टि एवं इतिहास के स्रोत नामक विषय पर 20-21 अगस्त 2016 को दो दिवसीय राष्ट्रीय महिला इतिहासकार संगोष्ठी का आयोजन किया गया. जिसमें देश के उत्तर में जम्मू कश्मीर से लेकर दक्षिण में तमिलनाडु एवं पूर्व में असम से लेकर पश्चिम में राजस्थान, गुजरात एवं महाराष्ट्र तक की महिला इतिहासकारों ने हिस्सा लिया.
संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह की मुख्य अतिथि अपर सचिव (प्रथम) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एवं सोनीपत के महिला विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति प्रो. पंकज मित्तल ने अपने उद्बोधन में विदेशी इतिहासकारों द्वारा किये गये इतिहास लेखन को नकारते हुए इतिहास को पुनः लिखने पर बल दिया. उन्होंने भारतीय संस्कृति शाश्वत अवधारणा ‘‘यत्र नार्यस्तु पुज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’’ पर बल देते हुए महामना की बगिया में महिला इतिहासकार संगोष्ठी को नये युग के सृजन के नींव के पत्थर की संज्ञा दी. उन्होंने कहा कि भारत में महिलाएं आगे बढ़ रही हैं. इसका उदाहरण भारत की टॉप की शटलर पी.वी. सिंधू ने इतिहास रचते हुए बैडमिंटन सिंगल्स में रजत पदक एवं कुश्ती में साक्षी मलिक ने कांस्य पदक प्राप्त किया. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के शोध से समाज को लाभ पहुँचना चाहिए और समाज को जोड़ना भी चाहिए.
इसी उद्घाटन सत्र में अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रो. सतीश चन्द्र मित्तल ने राष्ट्र के निर्माण में इतिहास की भूमिका को ध्यान में रखते हुए भारतीय दृष्टि से इतिहास लेखन एवं प्राथमिक स्रोतों के अध्ययन पर जोर देते हुए इतिहास लेखन की बात की. विश्व के इतिहास में इस प्रकार का यह पहला सम्मेलन है. उन्होंने कहा कि महर्षि अरविन्द से लेकर निवेदिता तक ने कहा था कि भारत में विदेशी आक्रमणकारियों का इतिहास पढ़ाया जाता है. जबकि भारत में महाराणा प्रताप, शिवाजी, एवं राणासांगा आदि का इतिहास पढ़ाने की जरूरत है.
उद्घाटन सत्र के विशिष्ट अतिथि महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रो. पृथ्वीश नाग ने इतिहास को भूगोल के साथ जोड़कर इतिहास लेखन पर बल दिया. उन्होंने कहा कि जिला से लेकर स्थानीय स्तर तक के इतिहास को लिखने की जरूरत है. आज सूचना एवं प्रौद्योगिकी के विकास के कारण हमें सूचनाएं डिटेल में प्राप्त हो रही हैं. इस आधार पर जमीन के नीचे की जानकारी आसानी से प्राप्त कर सकते हैं.
उद्घाटन सत्र में आशीर्वचन देते हुए भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद् के चेयरमैन प्रो. वाई. सुदर्शन राव ने हमारे प्राचीन धर्म ग्रन्थों को ऐतिहासिक स्रोतों के रूप में देखने की आवश्यकता पर बल दिया और महिला इतिहासकार संगोष्ठी के इतिहास में एक नयी अलख जगाने के रूप में देखा. अध्यक्षीय उद्बोधन डॉ. के.पी. उपाध्याय, रजिस्ट्रार, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने दिया. विषय प्रस्तावना करते हुए इतिहास विभाग की अध्यक्ष एवं संगोष्ठी की समन्वयक प्रो. अरूणा सिन्हा ने कहा कि हम इतिहास में एक नवीन एवं मौलिक दृष्टि को लेते हुए सामान्यतः स्वीकृत शब्दावली, मुहावरों, अभिव्यक्तियों व साहित्य को खंगालना चाहते हैं. पिछले वर्षों में अंग्रेज शासकों के पुरोहित्व में जिस तरह का इतिहास लेखन किया गया, उसने न केवल भारत की एक झूठी छवि खड़ी की, बल्कि देश की आने वाली पीढ़ियों को भी अपने इतिहास एवं संस्कृति के बारे में दिग्भ्रमित किया. अतः इतिहास के तथ्यों के प्रति आदर भाव रखते हुए मालवीय जी के दृष्टि के अनुकूल काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में एक स्वदेशी इतिहास दृष्टि को विकसित करना आवश्यक है. यही इस संगोष्ठी का उद्देश्य है. इस अवसर पर शोध सारांश का विमोचन भी हुआ.