उदयपुर (विसंके). भारतीय सामाजिक जीवन में एक ही संस्कृति की सनातन परंपरा प्राचीन काल से रही है, जहाँ अभिजात्य संस्कृति के मूल में आदिवासी चेतना गतिमान रही है. जनजाति संस्कृति में वे सभी संस्कार आज तक विद्यमान हैं. हमारी गौत्र परंपरा सूर्य और चन्द्रमा की उपासना वनस्पति की पूजा, ये सभी हिन्दू धर्म को ही पुष्ट करते हैं. केन्द्रीय जनजाति विकास मंत्री जुएंल ओरावं ने संस्कृति समन्वय, सामाजिक अध्ययन एवं शोध केन्द्र, उदयपुर की चातुर्मासिक शोध पत्रिका ’संस्कृति समन्वय‘ के विमोचन समारोह में संबोधित किया.
ओरावं ने कहा कि जनजाति विभाग स्वयंसेवी संगठनों की भूमिका का पुनर्निरीक्षण कर रहा है तथा वास्तविक रूप से समाज और राष्ट्र के हित में सकारात्मक कार्य करने वाले संगठनों को ही विभाग अनुदान प्रदान करेगा. इस हेतु राष्ट्रीय स्तर पर निरीक्षण समिति का गठन किया जाएगा.
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता संस्कृति समन्वय के राष्ट्रीय संरक्षक रामप्रसाद ने स्वयंसेवी संगठनों की वैधानिक स्थिति, भारत में उनकी गतिविधियों के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सेवा के नाम पर मतांतर करवा कर वो राष्ट्र की जनसांख्यकीय असंतुलन को पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं. यह भारत के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र है, जिसके पीछे बड़़ी शक्तियाँ कार्य कर रही है. उन्होंने पूर्वोत्तर राज्यों का उदाहरण देते हुये कहा कि वहां मिशनरीज गतिविधियों के कारण बड़े पैमाने पर राष्ट्र विरोधी गतिविधियों का बढ़ना चिन्ताजनक है.
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि भाजपा जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रमेश चन्द्र मीणा ने मेव मीणा संस्कृति का उदाहरण देते हुए जनजाति संस्कृति का संरक्षण करने की बात कही. संस्कृति समन्वय के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. जेपी शर्मा ने जनजाति क्षेत्र में स्थापित उदयपुर शोध केन्द्र की उपयोगिता पर प्रकाश डाला.
कार्यक्रम के अध्यक्ष उदयपुर सांसद अर्जुनलाल मीणा ने कहा कि आज के समय में उदयपुर जैसे जनजाति बहुल क्षेत्र में इस प्रकार के अनुसंधान केन्द्र जनजाति समाज को निश्चित नवीन दिशाबोध प्रदान करेगा. जनजाति और उनसे जुड़े समस्त संस्कार भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर है.
उदयपुर केन्द्र के सचिव डॉ आशीष सिसोदिया ने उदयपुर केन्द्र की गतिविधियों पर विचार रखे. कार्यक्रम का संचालन बालूदान बारहठ ने किया तथा धन्यवाद डॉ सूरज राव ने दिया.