करंट टॉपिक्स

भारतीय पत्रकारिता के लिए आज नारद ही सही मायने में आदर्श – जगदीश उपासने जी

Spread the love

मेरठ (विसंकें). साहिबाबाद स्थित इन्द्रप्रस्थ इंजीनियरिंग कॉलेज में विश्व संवाद केंद्र वैशाली महानगर द्वारा नारद जयंती समारोह का आयोजन किया गया. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि ज़ी-न्यूज़ के संपादक (आउटपुट) रोहित सरदाना ने उपस्थित पत्रकारों व प्रबुद्धजनों को संबोधित करते हुए वर्तमान परिप्रेक्ष्य में मीडिया की बारीकियों से अवगत करवाया. उन्होंने कहा कि वर्तमान में पत्रकारिता मिशन से प्रोफेशन बन गयी है और अब इस प्रोफेशन में कॉरपोरेट कल्चर आने से पत्रकार तयशुदा ढांचे में अपनी लेखनी चलाता है. अब तो किसी भी खबर को छापने से पहले संपादक ही मालिक से पूछ लेते हैं – ‘ये खबर छापने से आपके व्यावसायिक हित प्रभावित तो नहीं होंगे.’ ‘लक्षित समूहों’ को ध्यान में रखकर खबरें लिखी और रची जा रही हैं. पत्रकारिता की इस स्थिति के लिए कॉरपोरेट कल्चर ही एकमात्र दोषी नहीं है. बल्कि पत्रकार बंधु भी कहीं न कहीं दोषी हैं. जिस उमंग के साथ वे पत्रकारिता में आए थे, उसे उन्होंने खो दिया. ‘समाज के लिए कुछ अलग’ और ‘कुछ अच्छा’ करने की इच्छा के साथ पत्रकारिता में आए युवा ने भी कॉरपोरेट कल्चर के साथ सामंजस्य बिठा लिया है.

कार्यक्रम के अध्यक्ष जगदीश उपासने जी ने कहा कि बहुत से संपादक-पत्रकार आज भी उसूलों के पक्के हैं. उनकी कलम बिकी नहीं है. लेकिन, ऐसे ‘नारद पत्रकारों’ की संख्या बेहद कम है. यह संख्या बढ़ सकती है. ऐसे पत्रकार नारद से सीख सकते हैं कि तमाम विपरीत परिस्थितियां होने के बाद भी कैसे प्रभावी ढंग से लोक कल्याण की बात कही जाए. पत्रकारिता का एक धर्म है – निष्पक्षता. आपकी लेखनी तब ही प्रभावी हो सकती है, जब आप निष्पक्ष होकर पत्रकारिता करें. पत्रकारिता में आप पक्ष नहीं बन सकते. हां, पक्ष बन सकते हो लेकिन केवल सत्य का पक्ष. भले ही नारद देवर्षि थे, लेकिन वे देवताओं के पक्ष में नहीं थे. वे प्राणी मात्र की चिंता करते थे. देवताओं की तरफ से भी कभी अन्याय होता दिखता तो राक्षसों को आगाह कर देते थे. नारद घटनाओं का सूक्ष्म विश्लेषण करते, प्रत्येक घटना को अलग-अलग दृष्टिकोण से देखते, इसके बाद निष्कर्ष निकाल कर सत्य की स्थापना के लिए संवाद सृजन करते हैं. आज की पत्रकारिता में इसकी बहुत आवश्यकता है. जल्दबाजी में घटना का सम्पूर्ण विश्लेषण न करने के कारण गलत समाचार जनता में चला जाता है. बाद में या तो खण्डन प्रकाशित करना पड़ता है या फिर जबरन गलत बात को सत्य सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है. आज के पत्रकारों को इस जल्दबाजी से ऊपर उठना होगा. कॉपी-पेस्ट कर्म से बचना होगा. आज पत्रकार ऑफिस में बैठकर, फोन पर ही खबर प्राप्त कर लेता है. इस तरह की टेबल न्यूज अकसर पत्रकार की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिह्न खड़ा कर देती है. नारद की तरह पत्रकार के पांव में भी चक्कर होना चाहिए. सकारात्मक और सृजनात्मक पत्रकारिता के पुरोधा देवर्षि नारद को आज की मीडिया अपना आदर्श मान ले और उनसे प्रेरणा ले तो अनेक विपरीत परिस्थितियों के बाद भी श्रेष्ठ पत्रकारिता संभव है. आदि पत्रकार देवर्षि नारद ऐसी पत्रकारिता की राह दिखाते हैं, जिसमें समाज के सभी वर्गों का कल्याण निहित है.

इस अवसर पर सोशल मीडिया के क्षेत्र में राष्ट्रवादी लेखन के माध्यम से विशिष्ट योगदान के लिए मुकेश झा जी को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया. कार्यक्रम में स्थानीय मीडिया, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और समाज के गणमान्यजन उपस्थित थे.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *