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भारतीय भोजन से दूर होते हैं अनुवांशिक रोग, जर्मन यूनिवर्सिटी में दो साल के शोध से हुआ सिद्ध

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जिस तथ्य को सिद्ध करने में विश्व के वैज्ञानिकों को दो साल लग गए, औऱ करोड़ों रुपये खर्च करने पड़े. उस बात को हमारे पूर्वज दादा-परदादा हजारों साल से जानते हैं. इसका अर्थ यह हुआ कि हमारे पूर्वज, हमारी परंपराएं, खान-पान विज्ञान सम्मत है. हमारा देश अनपढ़-पिछड़ा नहीं, अपितु वैज्ञानिक परंपराओं का देश रहा है. दो साल के शोध में सामने आया है कि भारतीय भोजन (दाल-चावल व अन्य) से अनुवांशिक रोग भी दूर होते हैं.

जर्मनी की ल्यूबेक यूनिवर्सिटी के शोध में पता चला है कि भारतीय आहार अनुवांशिक बीमारियों को भी समाप्त कर सकता है. यह भी सामने आया है कि बीमारियों का मुख्य कारक केवल डीएनए में गडबड़ी नहीं है, बल्कि आहार उससे भी अधिक अहम है, जो बीमारी पैदा कर सकता है और उस पर लगाम भी लगा सकता है. यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रॉल्फ लुडविज के नेतृत्व में तीन वैज्ञानिकों द्वारा किया गया शोध ‘नेचर’ के ताजा अंक में प्रकाशित हुआ है. शोधकर्ताओं में रूस के डॉ. अर्तेम वोरोवयेव, इजराइल की डॉ. तान्या शेजिन और भारत के डॉ. यास्का गुप्ता शामिल हैं.

चूहों पर दो साल तक किए गए शोध में पाया गया कि पश्चिमी देशों के उच्च कैलोरी आहार आनुवांशिक माने जाने वाले रोगों को बढ़ाते हैं, जबकि भारतीय उपमहाद्वीप के लो कैलोरी आहार रोगों से बचाते हैं.

डॉ. गुप्ता ने एक समाचार पत्र से कहा कि अभी तक तमाम आनुवांशिक रोगों को केवल डीएनए के नजरिए से ही देखा जाता है, इस शोध में इसे आहार केंद्रित करके परखा गया. शोधकर्ताओं ने चूहों के उस समूह पर प्रयोग किया जो ल्यूपस नामक रोग से ग्रसित थे. ल्यूपस रोग का सीधा संबंध डीएनए से है. ल्यूपस ऑटोइम्यून रोग की श्रेणी में आता है और इसमें शरीर का प्रतिरोधक तंत्र अपने ही अंगों पर प्रहार करता है और शरीर के विभिन्न अंग व विभिन्न प्रणालियों जैसे जोड़ों, किडनी, दिल, फेफड़े, ब्रेन व ब्लड सेल को नष्ट करता है.

फास्टफूड आनुवांशिक रोगों को उभारते हैं 

इस शोध के नतीजे सीधे तौर पर बता रहे हैं कि पश्चिमी देशों में आहार में लिए जाने वाले पिज्जा, बर्गर जैसे फास्टफूड आनुवांशिक रोगों को उभारने और बढ़ाने में मददगार बनते हैं, जबकि भारत का शाकाहारी आहार- स्टार्च, सोयाबीन तेल, दाल-चावल, सब्जी और विशेषकर हल्दी का इस्तेमाल इन रोगों से शरीर की रक्षा करने में सक्षम है.

 

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