शिमला (विसंकें). उठो द्रौपदी शस्त्र उठा लो कविता के इस वाक्य को दोहराते हुए गुड़िया कांड पर भावुक होते हुए उच्चतम न्यायालय की अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा जी ने कहा कि जब रक्षक ही भक्षक हो जाए तो आत्म सम्मान की रक्षा के लिए महिलाओं को शस्त्र उठाने ही होंगे. मोनिका जी सोमवार को संविधान दिवस पर हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय शिमला में अधिवक्ता परिषद् द्वारा आयोजित एक संगोष्ठी में संबोधित कर रही थीं. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में प्रदेश उच्च न्यायालय के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश संजय करोल जी और मुख्य वक्ता के रूप में उच्चतम न्यायालय की अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा जी उपस्थित रहीं.
मोनिका जी ने कहा कि भारत का इतिहास बहुत गरिमापूर्ण रहा है. इसे भारत के लोगों को किसी फिल्म को देखकर तय नहीं करना चाहिए. भारत के बारे में जोधाबाई या पद्मावती फिल्में देखकर इसकी गरिमा को नहीं समझा जा सकता. भारत में वीरांगनाओं की लंबी फेहरिस्त रही है, जिन्होंने भारत के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है. उन्होंने संविधान में महिलाओं की स्थिति के बारे में कहा कि संविधान का निर्माण हुआ तो उस समय भारत में सदियों पुरानी दकियानूसी परम्पराएं विद्यमान थीं, जिसको मानकर महिलाओं को अधिकार प्रदान करने में मुश्किलें रही हैं. मुगलों के आने के बाद भारत में महिलाओं को घर की चारदीवारी तक सीमित कर दिया गया और उनके अधिकारों का हनन हुआ. उन्होंने तीन तलाक पर उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि महिलाएं अब जागरूक हो गयी हैं और वह बहुपत्नी और हलाला जैसी कुप्रथाओं के विरूद्ध भी जमकर आवाज बुलंद कर रही हैं. उन्होंने भारतीय प्राचीन संदर्भों से महिलाओं के उच्च सम्मान का जिक्र किया. पहले के समय में ज्ञान का प्रभार सरस्वती, गृह प्रभार लक्ष्मी और रक्षा का प्रभार काली माता ही संभालती थी और महिला और पुरूष में कोई भेदभाव नहीं होता था.
मुख्य अतिथि एवं उच्चतम न्यायालय के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश संजय करोल जी ने कहा कि आज भारत की रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री एक महिला है. इससे और अच्छे दिन महिलाओं के लिए क्या हो सकते हैं. प्राचीन भारतीय संस्कृति में महिलाओं के प्रति श्रद्धा और आदर जनमानस में रहा है. उन्होंने सीता राम, राधा कृष्ण का जिक्र करते हुए कहा कि महिलाओं के प्रति समर्पण भारतीय परम्परा की देन है. उन्होंने कहा कि भारत के संविधान का 14वां अनुच्छेद महिलाओं और पुरूषों को समानता का अधिकार देता है. इसके साथ ही संविधान सभा में उस समय रही महिला नेताओं ने राजनीतिक आधार पर आरक्षण के लिए मना कर दिया था, परंतु अब इसके लिए भी कवायद चल रही है. आज सबसे बड़ी आवश्यकता महिलाओं को अपने अधिकारों के बारे में जागरूक होने की है ताकि वह अपने अधिकारों को सही प्रकार से जान पाएं.