नई दिल्ली (इंविसंकें). नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर फ्रंट के तत्वाधान में दिल्ली विश्वविद्यालय के श्री गुरु तेग बहादुर खालसा कॉलेज सभागार में मकर संक्रांति वार्षिक मिलनोत्सव का आयोजन किया गया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी जी ने इस अवसर पर “वर्तमान परिदृश्य में शिक्षकों की भूमिका” विषय पर व्याख्यान दिया.
उन्होंने कहा कि समय से ही सभी चीजें चलती हैं, इसलिए काल को मापने और उसकी गणना के आधार पर हमारे पूर्वजों ने अनेक परम्पराएं आरम्भ कीं. काल गणना की हमारी परंपरा में मकर संक्रांति का सबसे अधिक महत्व इसलिए है क्योंकि सूर्य उत्तर की और बढ़ने से दिन में प्रकाश की मात्रा बढ़ जाती है और अंधकार कम होने लगता है. प्रकाश को अपने यहाँ पुण्य और अन्धकार को बुराई माना गया है. भारत की परंपरा में दिशा देने का काम शिक्षक करता है. आज जो देश के सामने अलगाव, जातियों के संघर्ष जैसी समाज के विघटन की समस्याएँ खड़ी हैं, समाज को उससे निकालना शिक्षकों के सामने एक चुनौती है.
सुरेश सोनी जी ने कहा कि भारत में दो तरह के लोग हैं. एक वो जिनकी जड़ें अभी तक यूरोप से जुड़ी हुई हैं और दूसरे वो जिनकी जड़ें भारत में ही हैं. ब्रिटिशर्स जानते थे कि भारतीयों को शस्त्र के बल पर अधिक दिन गुलाम बनाए नहीं रखा जा सकता और उन्हें एक दिन यहाँ से जाना पड़ेगा. इसलिए आधुनिक शिक्षा प्रणाली के नाम पर उन्होंने भारतीयों की प्रज्ञा पर हमला करके सबसे पहले उनके स्वाभिमान को भंग किया. भविष्य के लिए ऐसी व्यवस्था स्थापित की, जिसमें हम अपना स्व-गौरव भूलते चले गए. जिसका परिणाम यह हुआ कि हम समाज के लिए सही गलत का विवेक भूलते गए, बात किसने कही है इसको महत्व दिया जा रहा है, बात सही है या नहीं इस बारे में विचार पूर्वक निर्णय नहीं लिया जाता. यदि भिन्न विचारधारा का व्यक्ति सही बात बताता है तो उस पर अम्ल करने में कोई बुराई नहीं है, दूसरी और सम विचारधारा का कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति भी यदि गलत बात बताता है तो उस बात का विरोध करने का साहस हमें दिखाना चाहिए.
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि सृष्टि के आरम्भ काल में मनुष्य पशुओं के सामान नग्न विचरण करते हुए उनकी तरह सभी कार्य करता था, जैसे-जैसे बुद्धि विकसित होती गयी पत्तों से शरीर को ढकने लगा, फिर खाल से बदन को छिपाने लगा, और विकसित हुआ तो वस्त्र पहनने लगा. पश्चिम का आधुनिकता के नाम पर अंधानुकरण, वस्त्रों को कम करते समय हमें सोचना होगा कि हम किस ओर जा रहे हैं. हमारा प्रेम से कोई विरोध नहीं है, सृष्टि प्रेम द्वारा ही आगे चलती है, मनुष्य और पशु पक्षी सभी सृष्टि को आगे बढ़ने के लिए प्रेम करते हैं. किन्तु मनुष्य पशु जीवन के उस स्तर से हजारों साल पूर्व ही काफी आगे निकल चुका है, पशु स्वछन्द प्रेम करने में किसी मर्यादा से नहीं बंधे हैं. किन्तु मनुष्य में लज्जा भाव और सोचने समझने का विवेक विकसित हुआ है. अब वलेंटाइन-डे के नाम पर जब हिन्दू संगठनों के लोग ऐसे स्वछन्द अमर्यादित व्यवहार को रोकते हैं तो उन्हें पिछड़ा हुआ, रूढ़िवादी कहा जाता है, और इस तरह की पशु प्रवृत्ति को आधुनिकता.
सह सरकार्यवाह जी ने कहा कि मकर संक्रांति सकारात्मक ऊर्जा की वृद्धि का पर्व है. उन्होंने शिक्षकों का आह्वान किया कि इस पर्व पर संकल्प करें कि ऐसे प्रज्ञावान विवेकशील विद्यार्थी तैयार करेंगे जो भारत का भविष्य सुरक्षित रख सकें.