मुरैना (महाकौशल). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश भय्या जी जोशी ने कहा कि यह देश हिन्दुओं का है. इसके उत्थान एवं पतन का जिम्मेदार भी हिन्दू ही है. हिन्दू धर्म नहीं, अपितु जीवन पद्धति है. यदि हमें हमारी पहचान सौ करोड़ की रखनी है तो उसे एक रखने के लिए, हमें सब भेद मिटाकर पहचान भी एक रखनी होगी. सरकार्यवाह जी मुरैना स्थित पंचायती धर्मशाला में आयोजित समरसता बैठक को संबोधित कर रहे थे. बैठक में मुरैना, भिण्ड तथा दतिया जिले के सैकड़ों संघ कार्यकर्ता उपस्थित थे.
सुरेश भय्या जी जोशी ने कहा कि वेद और उपनिषदों में हिन्दू शब्द नहीं है. तो यह कहां से आया, इसकी जानकारी के लिए हमें सिंधु घाटी सभ्यता को जानना होगा. दरअसल सिंधु संस्कृति ही अपभ्रंश स्वरूप हिन्दू संस्कृति कहलाने लगी. प्राचीन काल से हम जानते हैं कि हिन्दू नाम की पूजा पद्धति नहीं है. यह तो जीवन पद्धति है. हमारे यहां मंदिर में जाने वाला और न जाने वाला भी हिन्दू है. हमारे यहां मन की पूजा को भी श्रेष्ठ माना गया है. कोई व्यक्ति चाहे जिस पथ पर जाए, साधक केन्द्र बिन्दु पर पहुंचेगा, यह मान्यता ही हिन्दू है. जो इस विचार को नहीं मानता, वह हिन्दू नहीं है. विश्व का हर छठा व्यक्ति हिन्दू है.
उन्होंने कहा कि जब नदी का प्रवाह रुकता है तो पानी सड़ने लगता है. दुर्भाग्य से हमारे समाज का जीवन भी थम सा गया है. दरअसल यह सब भारत पर हुए आक्रमणों की वजह से हुआ. संत, वीर, योद्धा, विधर्मियों से लड़ते तो रहे, लेकिन वे समाज के दोषों को दूर नहीं कर सके. हिन्दू समाज अगर सबल होता है तो अहिन्दुओं को डरने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हमारे रक्त में यह विशेषता है कि हमने कभी किसी को सताया नहीं है. यहां सब कुछ अच्छा है, तब भी हमारे यहां जातिरूपी दोष आ गया. आज भारत में 6 हजार जातियां एवं उपजातियां हैं. आज हम जाति बंधन में ज्यादा लीन हैं. डॉ. बाबा साहब आंबेडकर जी ने कहा था कि हिन्दू समाज बहुमंजिला भवन की तरह है, परंतु इसमें कोई सीढ़ी नहीं है, जो जिस जाति में जन्मा वह उसी जाति में रहेगा. हमारे मन में ऊंच-नीच की भावना घर कर गई है.
सरकार्यवाह जी ने कहा कि हम हिन्दू हैं तो ही एक अरब हैं. अन्यथा हम क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य, दलित में बंट जाएंगे तो हमारी संख्या बहुत कम हो जाएगी. आप हिन्दू हैं, इसलिए ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, दलित हो. हमको जाति अपने मां-बाप से मिली. हमको अपना नाम जाति से तो नहीं मिला. हमें भाषा मिली तो क्या जाति के हिसाब से मिली. हममें सबसे बड़ा दोष है कि कुछ जातियों को हमने अस्पृश्य मान लिया. जब मंदिर का देवता एक है तो मंदिर अलग क्यों, इस बात पर हमें विचार करना चाहिए. जिन ग्रंथों को हम आचरण में नहीं ला सकते वो ग्रंथ किस काम के हैं. यहां एक अन्य दोष है, वह जन्म के आधार पर जाति व जाति के आधार पर काम. उन्होंने एक घटना बताते हुए कहा कि महाराष्ट्र के एक गांव में दलितों को पानी भरने का अधिकार नहीं दिया गया. जिसका विरोध डॉ. भीमराव आंबेडकर जी ने किया. उन्होंने गांव वालों से कहा कि तर्क सहित बताओ दलितों को तालाब से पानी क्यों नहीं पीना चाहिए. डॉ. आंबेडकर जी के पास धर्म परिवर्तन के लिए मुस्लिम व ईसाई समाज के लोग पहुंचे, उन्हें कई प्रलोभन भी दिए. लेकिन वह जानते थे कि अगर उन्होंने इस्लाम व ईसाई धर्म ग्रहण किया तो हिन्दू समाज को बहुत बड़ी क्षति पहुंचेगी. इसलिए उन्होंने बौद्ध धर्म ग्रहण किया.
उन्होंने दलितों को मिल रहे आरक्षण पर मत स्पष्ट करते हुए कहा कि दलितों को आरक्षण क्यों नहीं मिलना चाहिए. सैकड़ों सालों तक हमारे पूर्वजों द्वारा की गई गलतियों का परिमार्जन है. इसलिए दलितों को समतुल्य लाने के लिए आरक्षण जरूरी है. मतांतरण, धर्मांतरण, लव जिहाद आदि से हिन्दू समाज कमजोर हो रहा है. भारत का समाज धर्म, सत्य, न्याय के साथ खड़ा रहता है. हिन्दू समन्वयवादी होता है. उन्होंने हिन्दू समाज से आह्वान किया कि समाज को दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, परिवार विखंडन, बलात्कार जैसी सामाजिक बुराईयों को मिटाने के लिए आगे आना चाहिए. इससे पहले सरकार्यवाह जी ने संघ के नब्बे वर्ष पूरे होने पर प्रकाशित पाञ्चजन्य के विशेषांक का लोकार्पण किया तथा कार्यक्रम में उपस्थित संत समाज का माल्यार्पण कर स्वागत किया.