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भारत की पहचान है ज्ञान-परंपरा, भारत ने तर्क से जीती हैं लड़ाइयां

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भोपाल. चिंतनशील युवाओं के बौद्धिक समागम ‘यंग थिंकर्स कॉन्क्लेव’ में मध्यप्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल जी ने कहा कि भारत की पहचान उसकी ज्ञान-परंपरा है. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह देश महात्मा गांधी, भगवान बुद्ध और स्वामी विवेकानंद का है. इसकी नींव वसुधैव कुटुम्बकम पर रखी गई है. भारत में किसी भी समस्या का समाधान विचारों के मध्य संवाद से आता है.

दो दिवसीय यंग थिंकर्स कॉन्क्लेव का आयोजन यंग थिंकर्स फोरम और राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में किया जा रहा है. समामग में प्रदेशभर से लगभग 300 युवा हिस्सा ले रहे हैं. इस अवसर पर राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुनील कुमार और कॉन्क्लेव के सह संयोजक आशुतोष ठाकुर भी उपस्थित रहे.

यंग थिंकर्स कॉन्क्लेव के उद्घाटन समारोह की अध्यक्ष राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि अनुशासन युवाओं का सबसे बड़ा गुण है. युवाओं को धैर्य, संयम और साहस की शिक्षा लेनी चाहिए. इसके साथ ही उन्हें संगठनात्मक एवं बौद्धिक नेतृत्व के गुण को भी विकसित करना चाहिए. युवाओं को बौद्धिक रूप से मजबूत बनना चाहिए. यंग थिंकर्स कॉन्क्लेव की सराहना करते हुए कहा कि इस तरह के आयोजन में युवाओं को बहुत सीखने को मिलता है. यदि हमें दुनिया में आगे बढ़ना है, तो नये-नये प्रयोग करने पड़ेंगे.

उन्होंने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के वृत्तचित्र (डॉक्यूमेंट्री) ‘प्रेरणा’ की सराहना की. यह वृत्तचित्र खरगौन में संचालित आस्था ग्राम संस्था के कार्य को दिखाया गया है, जो सभी प्रकार के दिव्यांग बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए समर्पित है. उन्होंने कहा कि धर्मपाल जी की पुस्तक ‘द ब्यूटीफुल ट्री’ में यह बताया गया है कि 700 से अधिक जनसंख्या पर गाँव में एक पाठशाला थी. अंग्रेजों के सर्वे में यह तथ्य सामने आए हैं. यह पाठशाला समाजकेंद्रित थी. यहाँ पढ़ाने के लिए एक पंडित की नियुक्ति की जाती थी, जो सबको एक साथ पढ़ाते थे, लेकिन इसके बदले में किसी प्रकार का मानदेय नहीं लेते थे. उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति समाज स्वत: ही करता था. इन पाठशालाओं में ज्ञान के साथ-साथ संस्कार भी दिया जाता था. भारत को पूरी तरह जीतने के लिए अंग्रेजों ने इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया. शिक्षा में बदलाव स्वतंत्रता मिलते ही तत्काल हो जाना चाहिए था, लेकिन यह बीड़ा किसी ने नहीं उठाया. अब तक अंग्रेजों की बनाई व्यवस्था चली आ रही है. अब एक साथ बदलाव करना मुश्किल है. उन्होंने कहा कि जब तक हमारी सोच में बदलाव नहीं आएगा, हम यह नहीं जानेंगे कि सही क्या है और गलत क्या है? तब तक हम एक साथ बदलाव नहीं कर सकते. लेकिन, तब तक हमें छोटे-छोटे बदलाव करते रहना होगा.

यंग थिंकर्स कॉन्क्लेव के उद्घाटन सत्र के मुख्य वक्ता एवं विचारक प्रो. राकेश सिन्हा जी ने राष्ट्रीयता की संकल्पना के संबंध में कहा कि भारत की पहचान उसके भूगोल से नहीं, अपितु विचार से है. भारत एक विचार है. भारत की विशेषता है कि हमने सदैव तर्क के आधार पर ही अपनी लड़ाइयां जीती हैं. तर्क के आधार पर ही भारत का विचार दुनिया में आगे बढ़ा है. जब व्यक्ति का वर्तमान कमजोर होता है तो वह अपनी विरासत में अपनी छवि देखता है और अपनी कमजोरी को विरासत की समृद्धि में छिपा लेता है. हमारे वेद-उपनिषद में क्या कहा गया है, यह महत्वपूर्ण नहीं है. बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि हम आज क्या कह रहे हैं. हमें अपने भविष्य को बनाने के लिए अपने इतिहास का अध्ययन करना चाहिए. प्रो. सिन्हा ने इतिहास के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि इतिहास विस्मृत करने के लिए नहीं है, स्मृति के लिए होता है. अब तक ऐसा इतिहास पढ़ाया गया, जो हमें विस्मृति देता है. भारत के विभाजन की घटनाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि देश को सिर्फ 1947 में नहीं बाँटा गया, बल्कि भारत उसके पहले और बाद में भी विभाजित हुआ है. 1962 में हमने अपनी जमीन खोई. 1937 में बर्मा भारत से अलग हुआ. उन्होंने बताया कि हमारे इतिहास में यह जिक्र नहीं है कि बर्मा किस प्रकार भारत से अलग हुआ. बर्मा को अलग करने के लिए जब जनमत कराया गया, तब 51 प्रतिशत से अधिक लोगों ने कहा था कि वह भारत के साथ रहना चाहते हैं. भारतीय इतिहास को योजनापूर्वक धूल-धूसरित कर दिया गया है. जिस भारतीय को अपने इतिहास का सही ज्ञान नहीं है, वह भारत का निर्माण नहीं कर सकता. राष्ट्र को जानने के लिए सबसे पहले प्रत्येक भारतीय को यह जानना होगा कि वह कौन है? उन्होंने महात्मा गांधी का जिक्र करते हुए कहा कि गांधी जी ने कहा था कि अंग्रेजी की किताबों का अनुवाद करने वाले कभी भी भारत का निर्माण नहीं कर सकते. हमें अपनी ज्ञान-परंपरा में उपलब्ध शास्त्र पढ़ने होंगे और नये शास्त्र रचने होंगे.

उन्होंने कहा कि भारत का युवा नये और मौलिक विचार को प्राप्त करना चाहता है. न थकने वाला और न हारने वाला युवा ही भारत को आगे बढ़ा सकता है. भारत में जो भोग के उद्देश्य से आए, उन्होंने कभी इस देश को अपना नहीं माना. भारत ने भी उन्हें कभी स्वीकार नहीं किया. जो भारतीय बनकर आएगा, उसे हम स्वीकार करेंगे और जो अभारतीय बनकर आएगा, उसे बाहर कर देंगे. उन्होंने कहा कि भारत में ‘संगम’ का बहुत महत्व है. हम माँ गंगा या नर्मदा में स्नान से जो पुण्य मिलता है, उससे भी अधिक महत्व ‘संगम’ में स्नान का है. हमें ऐसे भारत का निर्माण करना है, जिसमें सामाजिक न्याय हो, समरसता और समानता हो. कार्यक्रम का संचालन अपूर्वा मुक्तिबोध ने किया और धन्यवाद ज्ञापन कॉन्क्लेव के संयोजक डॉ. संजीव शर्मा ने किया.

राष्ट्रीय पहचान ही सबसे बड़ी पहचान

‘ब्रेकिंग इंडिया’ विषय पर प्रख्यात लेखक अरविन्दन नीलकंदन ने कहा कि हमारी बाकि पहचान राष्ट्रीय पहचान से ऊपर नहीं होनी चाहिए. एक भारत के लिए राष्ट्रीय पहचान को प्राथमिकता देना आवश्यक है. भारत के सभी पंथों को एक साथ आना चाहिए, उन सबके हृदयों की धड़कन देश की एकता के लिए होनी चाहिए. पूर्व में सभी भारतीय भारत की अखण्डता के लिए प्रार्थना करते थे. भारत में महिलाओं की स्थिति के संबंध में कहा कि भारत में राजा की पत्नी के लिए ‘राजी’ की जगह ‘रानी’ शब्द का उपयोग किया जाता था. रानी का अर्थ है, जिसके पास राज्य करने का अधिकार हो. जबकि राजी शब्द सिर्फ राजा की पत्नी तक ही सीमित है. भारतीयों को बाँटने के लिए विभिन्न प्रयास हुए हैं. इनमें से एक प्रयास हर्बट रिसले ने किया. रिसले ने तो भारतीयों को नाक बनावट के आधार पर ही बाँट दिया. नीलकंदन ने कहा कि भारतीय इतिहास के कई उदाहरणों के माध्यम से युवाओं को असली भारत के बारे में जानकारी मिल सकती है. अंग्रेजों ने हमें भारतीय होने की जो परिभाषा दी है, वह वास्तविक नहीं हैं. असली भारतीयता तो हमारी संस्कृति और पंरपराओं में निहित है. अगर हमें भारतीयता के सही परिभाषा को जानना है तो हमें अपनी संस्कृति को पहचानना होगा.

अपनी भाषा में बात करने वाले देश अमीर

‘भारतीय शिक्षा में उपनिवेशवाद’ विषय पर चर्चा करते हुए प्रख्यात लेखक संक्रांत सानु ने कहा कि अंग्रेजी हमारे पिछड़ेपन की भाषा है. जब तक अंग्रेजी रहेगी, हम पिछड़े रहेंगे. जबकि आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस में चीन अमेरिका से आगे निकल गया है. चीन अपनी भाषा में कार्य करता है. हमारे देश में अंग्रेजी पढ़ने के बजाय अंग्रेजी थोपी जा रही है. जो देश अपनी भाषा में कार्य कर रहे हैं, वह तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. अंग्रेजी हमारे पिछड़ेपन की भाषा है. दुनिया में वह देश सबसे अमीर है, जो अपनी भाषा का प्रयोग करते हैं. इस सत्र की अध्यक्षता कर रहे माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय के कुलपति जगदीश उपासने जी ने कहा कि वर्तमान युवा पीढ़ी अपनी मातृभाषा से दूर हो रही है. जबकि मातृभाषा बोलने वाले बच्चे की बुद्धि अधिक तीव्रता से विकसित होती है. सोनम वांगचुक का उदाहरण देते हुए कहा कि वह पिछले 20 वर्षों से भारतीय शिक्षा पद्धति का उपयोग करते हुए युवाओं के विकास के लिए काम कर रहे हैं. भारतीय सरकारी स्कूल और अमेरिका के सरकारी स्कूलों में अंतर बताते हुए कहा कि अमेरिका में 95 प्रतिशत बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं, जबकि हमारे यहाँ ज्यादातर बच्चे निजी स्कूल में पढ़ते हैं.

सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने बांधा समां

कॉन्क्लेव में युवा प्रतिभाओं ने अपनी कला का प्रदर्शन भी किया. गीत-संगीत, नृत्य और अन्य विधाओं में अपनी प्रस्तुति से युवाओं ने सबका मन मोह लिया. सांस्कृतिक कार्यक्रमों में देश की सांस्कृतिक विविधता की झलक दिखाई दी.

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