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भारत के युवाओं में देश के हालात बदलने की क्षमता है – अजीत महापात्रा जी

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गोरखपुर (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह सेवा प्रमुख अजीत महापात्रा जी ने 15 जनवरी को गोरखपुर विश्वविद्यालय के दीक्षा भवन में युवा भारती द्वारा आयोजित गोष्ठी सेवा, समरसता और युवा में मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित किया.

उन्होंने कहा कि युवा देश के बारे में सोचें. गरीब होना क्या गुनाह है? सबकी सेवा करने वाला समाज का सबसे वंचित वर्ग सर्वाधिक उपेक्षित क्यों है? इतना विकसित होने के बावजूद आज भी देश के 27.2 करोड़ लोग दो वक्त की रोटी को क्यों मोहताज हैं ? मेरा युवाओं से सवाल है कि क्या वे देश के वर्तमान, भविष्य और समाज के वंचित तबके के बारे में भी सोचते हैं? ऐसा सोचना ही आपके ज्ञान और पढ़ाई की सार्थकता होगी. आप असंभव को संभव बना सकते हैं. इसके लिए संकल्प लेना होगा. विद्या बेचने की नहीं, दान की वस्तु है. हमारी परंपरा ने भी विद्या को सबसे बड़ा दान माना है. समाज के सबसे वंचित वर्ग के पात्रों में इसका दान करें. वे आपको देवता मान लेंगे. इससे बड़ा सम्मान और सुख कोई और नहीं. यदि युवा इसके बारे में विचार करेगा तो निश्चित रूप से आपकी संवेदनाएं जगेंगी, परेशान करेंगी और आप युवाजन इसके समाधान के बारे में अवश्य सोचेंगे, और युवा यदि इन समस्याओं को दूर करने का प्रयास करेंगे तो इस वंचित उपेक्षित समाज की स्थिति में बदलाव के साथ साथ देश की तस्वीर भी जरूर बदलेगी.

उन्होंने कहा कि हर साल करीब तीन करोड़ युवा ऊंचे पदों पर तैनाती पाते हैं. करीब 10 करोड़ कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर खुद के बारे में सोचते हैं. विवेकानंद ने कहा था कि मुझे अगर 100 सेवा भावी समर्पित युवा मिल जाएं तो मैं देश की तकदीर बदल सकता हूँ. वह बात आज भी उतनी ही प्रासंगिक है. उन्होंने गरीब किसान और उसके बेटे के संवाद का उदाहरण देते हुए बताया कि यदि लाभ और हानि की परवाह किये बिना कपास उगाने वाला वह किसान कपास उगाना छोड़ दे तो लोगों को पहनने को वस्त्र नहीं मिलेंगे, इसलिए वह किसान सामाजिक समरसता हेतु कपास उगाता है.

भगिनी निवेदिता और एक अमरीकी व्यवसायी के प्रसंग का उदाहरण देते हुए उन्होंने दरिद्र नारायण की सेवा हेतु समर्पण का अत्यन्त ही मार्मिक ढंग से वर्णन किया, कि किस प्रकार से उपेक्षा, तिरस्कार और गाल पर थप्पड़ खाने के पश्चात भी भगिनी निवेदिता ने दीन दुखियों की सेवा का संकल्प नही छोड़ा, न हिम्मत हारी और अंततः उस कठोर ह्रदय उद्योगपति का भी ह्रदय परिवर्तन करने में सफल हुई. उन्होंने कहा यदि देश के 18 प्रतिशत सामर्थ्यवान युवा भी सेवा का संकल्प लें तो देश में कोई गरीब नहीं रहेगा. रामकृष्ण परमहंस जी का प्रसंग और हैदराबाद (भाग्यनगर) की एक घटना का उदहारण देते हुए युवाओं को सेवा के प्रति प्रोत्साहित किया.

कार्यक्रम के अध्यक्ष गोरखपुर विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर श्रीप्रकाश मणि ने युवाओं से सोच बदलने और संकल्प लेने की अपील की. कार्यक्रम में डॉ. राजेश चंद्र गुप्त ने अतिथि परिचय करवाया, तत्पश्चात मुख्य अतिथि व अन्य द्वारा भारत माता के चित्र पर पुष्पार्चन, दीप प्रज्ज्वलन से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ. मुख्य अतिथि द्वारा गोरखपुर विश्वविद्यालय की वर्तमान महामंत्री ऋचा चौधिरी को सम्मानित किया गया. विषय प्रवर्तन के दौरान डॉ. राजेश गुप्ता और डॉ. रविप्रकाश ने कहा कि नर के जरिये नि:स्वार्थ भाव से नारायण सेवा ही सेवा भारती का मिशन है. सब समान होंगे तो देश महान होगा, इसके पीछे की सोच है. कार्यक्रम का संचालन उग्रसेन सोनकर ने किया. अविरल शर्मा के सेवा गीत, विश्वनाथ अग्रहरि के देश भक्ति के गीतों और रामानंद यादव के बिरहा को सबने सराहा. युवा भारती के प्रांत संयोजक कुलदीप मौर्य ने आभार जताया.

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