नई दिल्ली. राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह के बलिदान दिवस के अवसर पर आयोजित संगोष्ठी में जम्मू कश्मीर में मौजूदा संवैधानिक विसंगतियों पर चर्चा की गयी. कार्यक्रम का आयोजन लाजपत नगर स्थित मीरपुर बलिदान भवन में किया गया. संगोष्ठी के मुख्य वक्ता एवं सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता दिलीप दुबे जी ने कहा कि भारत के संविधान ने हर नागरिक को मौलिक अधिकार दिये हैं जो इसकी प्रस्तावना में निहित हैं, जिसे संसद भी नहीं बदल सकती. लेकिन देश के अभिन्न राज्य जम्मू-कश्मीर में कुछ ऐसे प्रावधान लागू किये गये जो भारतीय संविधान की भावना से मेल नहीं खाते. इसके कारण यहां के कुछ वर्ग उन प्रावधानों से वंचित हैं, जिनका लाभ देश के अन्य नागरिक उठा रहे हैं.
राज्य के संदर्भ में प्रभावी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 35ए के संवैधानिक पक्ष पर चर्चा करते हुए दिलीप जी ने कहा कि यह अनुच्छेद एक संवैधानिक संशोधन था. इसे 1954 में राष्ट्रपति की स्वीकृति मिली, लेकिन इसकी जानकारी संसद को नहीं दी गयी थी, जिसे संविधान में संशोधन करने का अधिकार है. यह एक संवैधानिक विसंगति है, जिसकी पीड़ित जम्मू-कश्मीर की अधिकांश जनसंख्या है. उनके अनुसार संवैधानिक विसंगतियां यहां इस कदर प्रभावी हैं कि अनुच्छेद 35ए के कारण राज्य में रह रहे पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थी, बाल्मीकी, गोरखा सहित लाखों लोग अपने मूलभूत अधिकारों से वंचित हैं. छह दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद भी ये न तो सरकारी नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं और न ही इनके बच्चे यहां व्यावसायिक शिक्षा में दाखिला ले सकते हैं.
इससे पूर्व विषय प्रवेश करते हुए अनिल गुप्ता जी ने कहा कि जम्मू-कश्मीर का गैर स्थायी निवासी (नॉन पीआरसी) लोकसभा में तो वोट दे सकता है, लेकिन स्थानीय निकाय चुनाव में वोट नहीं दे सकता. राज्य का गैर स्थायी नागरिक प्रधानमंत्री तक बन सकता है, लेकिन ग्राम पंचायत का सरपंच नहीं बन सकता. इतना ही नहीं इस प्रावधान में वह आईएएस और आईपीएस अधिकारी तो बन सकता है, लेकिन राज्य के सरकारी महकमे में चपरासी नहीं बन सकता. जम्मू काश्मीर पीपल्स फोरम के संयोजक महेन्द्र मेहता के अनुसार जम्मू-कश्मीर किसी भी अन्य राज्य की तरह भारतीय संघ का अभिन्न अंग है. वहां का प्रत्येक निवासी भारतीय नागरिक है और उसे वे सभी अधिकार हासिल हैं जो भारत के किसी भी नागरिक को हैं. संविधान का कोई भी प्रावधान उसे मौलिक अधिकार प्राप्त करने से रोक नहीं सकता. लेकिन कुछ संवैधानिक विसंगतियों की वजह से राज्य में पश्चिमी पाकिस्तान से आये शरणार्थी, बाल्मीकी, गोरखा सहित महिलाओं को उनके मौलिक अधिकार नहीं मिल रहे. जिसका संवैधानिक हल खोजा जाना समय की मांग है.
दिल्ली विश्वविद्यालय की प्राध्यापक डॉ. संगीता त्यागी ने कविता पाठ के माध्यम से शिक्षा के परिसरों में बढ़ रही राष्ट्रविरोधी गतिविधियों पर तीखे प्रहार किये. कार्यक्रम में उच्च न्यायालय के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश अनिल देव सिंह जी, विनोद कुमार गुप्ता तथा प्रमोद कोहली, जम्मू काश्मीर के पूर्व मुख्य सचिव अशोक कुमार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दिल्ली के प्रांत सहसंघचालक आलोक कुमार जी, डॉ. सुदेश रतन तथा स्वदेश पाल गुप्ता सहित सैकडों गणमान्य नागरिक उपस्थित थे.