जगदलपुर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार जी ने कहा कि आतंकवाद और नक्सलवाद में कई समानताएं होने के बावजूद दोनों की तुलना नहीं की जा सकती. आतंकी जहां धर्म को आधार बनाकर देश को खण्डित करना चाहते हैं, वहीं देश में फैले नक्सली अपने एजेंडे को लेकर भ्रमित हैं. वे देश में अराजकता का स्थायी माहौल पैदा कर सत्ता पर काबिज होने का स्वप्न देख रहे हैं, जो कभी पूरा नहीं होने वाला है. आतंकवाद और नक्सलवाद के पीछे विदेशी ताकतें हैं, जो देश को मजबूत होते नहीं देखना चाहती. इंद्रेश जी जगदलपुर में पत्रकारों से चर्चा कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि वे जम्मू-कश्मीर में बतौर संघ के प्रचारक काम कर चुके हैं, इसलिये उन्होंने आतंकवाद को बड़ी नजदीकी से देखा है. वहां के आतंकी धर्म को आधार बनाकर दूसरे धर्मों के लोगों पर निशाना साधते हैं. इतना ही नहीं, आतंकवादी देशविरोधी कार्य कर देश की एकता और अखण्डता को खण्डित करने का हमेशा प्रयास करते रहे हैं और आज भी कर रहे हैं. संघ को लगातार बदनाम करने की साजिशें चल रही हैं. कुछ लोग व संगठन लगातार यह दुष्प्रचार करते रहते हैं कि संघ कट्टर हिन्दूवादी संगठन है, जो गैर हिन्दुओं का विरोधी है. उन्होंने इस दुष्प्रचार का खण्डन करते हुए कहा कि संघ के लिये देश सर्वप्रथम है. संघ की देशभक्ति पर कोई सवाल नहीं उठा सकता. संघ हमेशा सभी धर्मों का सम्मान करता है. वे देश के कई क्षेत्रों का भ्रमण करते रहते हैं, इस दौरान मस्जिद व गिरिजाघरों में भी जाकर मौलवी, पादरी सहित हजारों की संख्या में धर्मगुरूओं से भेंटकर उनसे चर्चा भी कर चुके हैं. संघ के साथ कई मानवतावादी व राष्ट्रभक्त संगठन मिलकर काम कर रहे हैं.
पत्रकारों से चर्चा के दौरान इंद्रेश कुमार जी ने कहा कि देश में तीन प्रकार के बुद्धिजीवी हैं. इनमें एक सेक्यूलर हैं, जो आतंकवाद का समर्थन करते हैं. वहीं दूसरे लेफ्टिस्ट हैं, जो नक्सलवाद के समर्थक माने जाते हैं. इसके अलावा देश में बुद्धिजीवियों का एक बड़ा वर्ग नेशनलिस्ट है, जो भारत देश की अखण्डता के लिये कार्य करते हैं और प्राण-प्रण से जुटे हुए हैं. बंदूक के आंदोलन में कुछ राजनीतिक दल व नेता निजहित साधने को आतंकवाद और नक्सलवाद का समर्थन करते हैं.
एक प्रश्न के उत्तर उन्होंने कहा कि संघ ने हमेशा ही सभी धर्मों का सम्मान किया है. संविधान ने अपना धर्म बदलने की स्वतंत्रता दी है, लेकिन लोभ और लालच देकर धर्मांतरण कराया जाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है. व्यक्ति को अपना धर्म चुनने का अधिकार है, लेकिन दबाव डालकर या लालच देकर किसी का धर्मांतरण नहीं कराया जाना चाहिये.
बिहार चुनाव के दौरान सरसंघचालक जी तथा पिछले दिनों अ.भा. प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य जी के कथित आरक्षण खत्म करने के बयान पर कहा कि संघ की इस मुद्दे पर स्पष्ट विचारधारा है. यह संविधान द्वारा प्रदान किया गया अधिकार है, जिसका संघ सम्मान करता है. संविधान के मुताबिक देश में लागू आरक्षण को बरकरार रखा जाएगा. जिन्हें आरक्षण मिलना है, उन्हें निश्चित रूप से आरक्षण मिलता रहेगा. दोनों ही समय बयानों को अपने हिसाब से तोड़ा-मरोड़ा गया. आदिवासी अंचलों में कला और संस्कृति प्रचूर है, जिसे विकसित किया जाना चाहिये. जनजातीयों की संस्कृति, परम्परा, कला का संरक्षण और विकास नितांत जरूरी है. आर्टिजन को विकसित करने के साथ इनका संरक्षण करने को केंद्रों की शुरूआत की जानी चाहिये. जनजातीयों को प्रकृति पूजन का वरदान मिला हुआ है, जहां रहने वाले लोग आज भी समृद्धशाली ग्रामीण भारत की पहचान हैं.
उन्होंने जेएनयू के मुद्दे पर कहा कि कथित सेक्लुयर व कम्युनिजम के लोगों की वर्षों से चली आ रही गलत नीतियों का पर्दाफाश हो गया है. माओवादी के खिलाफ संघर्ष कर रही अग्नि संस्था के एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने आए इंद्रेश कुमार जी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि बेला भाटिया सामाजिक कार्यकर्ता नहीं बल्कि स्वयंभू मानव अधिकार कार्यकर्ता हैं. भले ही शासन-प्रशासन उन्हें परिस्थितिवश सामाजिक कार्यकर्ता मानतें हो लेकिन बेला ने वास्तव में सामाजिक उत्थान के लिए कोई कार्य नहीं किया है. उन्होंने अपने अनुभव के आधार पर बताया कि बस्तर जैसे क्षेत्रों में इसाई मिशनरी धर्मांतरण को बढ़ावा दे रही हैं, जिसके कारण उनकी चर्च तो फल फूल रही है, लेकिन धर्मांतरित लोगों का किसी प्रकार का आर्थिक विकास नहीं हो रहा है. उन्होंने इसाई मिशनरी से पूछा कि उन्होंने राष्ट्रहित के लिये क्या किया है, उसे सार्वजनिक करें.