ईश प्रार्थना के साथ शुरू होता है दिन, भोजन के लिए दोने पत्तल भी स्वयं बनाते हैं
भोपाल (विसंकें). कोरोना माहमारी से बचाव के लिये लागू लॉकडाउन के कारण देश भर में मजदूर जहां-तहां अटके थे. अब सरकार द्वारा उन्हें वापस अपने घर पहुंचाने का क्रम शुरू गया है. लेकिन महामारी की आशंका के कारण उन्हें अपने ग्रामों के आसपास ही 14 दिनों के लिए क्वारेंटाइन में रखा गया है. इसी प्रकार विद्या भारती के प्रद्युम्न धोटे स्मृति जनजाति छात्रावास धाबा में भी क्वारेंटाइन केंद्र बनाया गया है, यह केंद्र बैतूल जिले के भैंसदेही विकास खंड के जनजाति ग्राम में स्थित है. भारत भारती शिक्षण संस्था द्वारा यहां 40 जनजाति विद्यार्थियों को निःशुल्क पढ़ाया जाता है. वर्तमान में छात्रावास रिक्त होने के कारण विद्या भारती ने भवन को प्रशासन को उपयोग (निःशुल्क) के लिये दिया है, जिसके तहत क्वारेंटाइन केंद्र बनाया गया है. छात्रावास के कर्मचारी श्रमिक यात्रियों की सेवा में दिनरात जुटे हैं.
केंद्र में श्रमिकों की दिनचर्या देखकर एकबार किसी को लगेगा कि यह कोई योग केन्द्र है. यहाँ प्रतिदिन दिनचर्या ईश प्रार्थना के साथ प्रारम्भ होती है. फिर छात्रावास के अधीक्षक रामनरेश दोहरे व विजय खातरकर द्वारा श्रमिकों को प्रतिदिन एक घण्टे योगासन और प्राणायाम का अभ्यास कराया जाता है. भोजन के समय सभी भोजन मन्त्र बोलते हैं.
इतना सब होते देख श्रमिकों के मन में आया कि संस्था हमारे लिए इतना कुछ कर रही है तो क्यों न वे भी संस्था की भलाई के कुछ काम करें और जुट गए, जिसको जो काम आता था उसको करने के लिए.
दो श्रमिकों ने आसपास से खजूर के पत्ते लाकर झाड़ू बनाना शुरू किया तो कुछ छात्रावास की पुताई में जुट गए. स्वयं के भोजन करने के लिए श्रमिक प्रतिदिन दोने पत्तल बनाते हैं, ताकि बर्तनों का कम से कम उपयोग हो और पानी भी कम खर्च हो. कुछ महिला श्रमिक छात्रावास परिसर में लगी हरी सब्जियों की निंदाई गुड़ाई में लग गईं.
मजदूरों से चर्चा करने पर उन्होंने बताया कि उन्हें दिन भर खाली बैठना अच्छा नहीं लगता और ये संस्था हमारी सेवा कर रही है तो बदले में हमें भी कुछ करना चाहिए. इसलिए दिन के खाली समय में छात्रावास परिसर के स्वच्छता और जो काम उन्हें आते हैं, उसे सेवा मानकर कर रहे हैं.
छात्रावास में भी श्रमिकों के भोजन व ठहरने की उत्तम व्यवस्था की गई है. जहाँ उन्हें पलंग और बिस्तर उपलब्ध कराए गए हैं. छात्रावास में आए उन्हें एक सप्ताह से अधिक का समय हो जाने पर सभी एक परिवार के अंग के रुप में हो गए हैं. सभी श्रमिक महाराष्ट्र प्रान्त से आए हैं व धाबा के आसपास के ग्रामों के निवासी हैं.