भोपाल (विसंकें). संघ की अखिल भारतीय बैठक में शिक्षा, स्वास्थ्य और समरसता पर जोर दिया गया है. देश में महंगी होती शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने गहरी चिंता जताई है. सरकार से शिक्षा के व्यापारीकरण पर अंकुश लगाने के लिए नियामक आयोग को प्रभावी बनाने की भी मांग की है. बैठक में स्वास्थ्य एवं सुदृढ़ भारत के निर्माण की दृष्टि से देश के समक्ष खड़ी तीन महत्वपूर्ण चुनौतियों पर मंथन कर प्रस्ताव पारित किए गए हैं, जिनके माध्यम से समाज,सरकार, स्वयंसेवी संस्थाओं एवं स्वयंसेवकों से मिलकर सकारात्मक पहल का आह्वान किया गया है. वहीं बैठक में स्वयंसेवकों के गणवेश में परिवर्तन को लेकर भी मोहर लगी है. राजस्थान के नागौर में तीन दिनों तक चली राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के समापन के बाद वापिस आए संघ के मध्यभारत प्रांत सह कार्यवाह यशवंत इंदापुरकर ने पत्रकारों के बीच चर्चा करते हुए विस्तार से इस बैठक के बारे में बताया.
उन्होंने कहा कि संघ का देश में चिकित्सा सुविधाओं को लेकर स्पष्ट मानना है कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में नवीन आविष्कार होने के बाद भी स्वास्थ्य सेवाएं महंगी हो रही हैं. ऐसे में निरंतर स्वास्थ्य सेवाएं कम आय वर्ग के लोगों की पहुंच से दूर होती जा रही हैं. देश के प्रत्येक नागरिक को सस्ती, सुलभ और परिणामकारी स्वास्थ्य सेवा मिले, ऐसे प्रयास करने की आज सामूहिक जरूरत है. इसी प्रकार शिक्षा पर आए प्रस्ताव में सरकार और समाज से संघ ने अपेक्षा की है कि शिक्षा का निजीकरण होने से यह महंगी होती जा रही है. गुणवत्तायुक्त शिक्षा सर्वसामान्य को सुलभ हो इस पर सरकार और समाज को पहल करनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि संघ के तृतीय सरसंघचालक बालासाहब देवरस का यह जन्मशताब्दी वर्ष है. इसलिए वर्ष भर इसे समरसता वर्ष के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया है. देश में जातिगत आधार पर भेदभाव हो रहा है, जो हिन्दू समाज के मूल चिंतन में नहीं है. जातिगत विषमता दूर हो यह भी हमारा ध्येय है. सामाजिक समरसता केवल भाषण बाजी तक ही सीमित नहीं रहे, यह आचरण में भी आए और समाज व्यापी बने. इसके लिए संघ अपने प्रारंभकाल से ही निरंतर कार्य कर रहा है.
मध्य प्रदेश में बढ़ीं 362 शाखाएं
विश्वसंवाद केंद्र स्थित सभागार में यशवंत जी ने बताया कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में संघ का तेजी से विस्तार हो रहा है. संघ को लेकर दुष्प्रचार करने वालों के मुंह बंद हुए हैं, इसका प्रमाण शाखाओं और स्वयंसेवकों की संख्या में हुई वृद्धि है. देशभर 56 हजार 858 शाखाएं अभी लग रही हैं. इससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि युवाओं का किस तेजी से संघ की शाखाओं में आने की प्रेरणा हुई है. मध्य प्रदेश में भी शाखाओं की संख्या में 362 की बढ़ोतरी हुई है, यहां शाखाओं की संख्या 6,680 तक पहुंच चुकी है. संघ की मध्यभारत इकाई में भी शाखाएं बढ़कर 1439 हो गई है, जो गत वर्ष की तुलना में 113 अधिक हैं. उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष 83 संघ शिक्षा वर्गों में 40 वर्ष के कम आयु के 22 हजार 500 से अधिक युवाओं ने 20 दिन का समय देकर संघ का प्रशिक्षण प्राप्त किया है.
एक सवाल के जवाब में कहा कि सरकार के कारण संघ कार्य नहीं बढ़ा है. यह सतत चलने वाली प्रक्रिया है. समाज के बीच में संघ की स्वीकार्यता बढ़ी है. पिछले वर्ष घर से दूर रहकर संघ कार्य करने वाले 14500 कार्यकर्ताओं की संख्या रही है, ऐसे में संघ कार्य में परिणाम आना स्वभाविक है.
गणवेश में परिवर्तन पर कहा कि अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने सर्वसम्मति से यह परिवर्तन स्वीकार किया है. संघ जड़वादी नहीं, समय के साथ चलने वाला संगठन है. इसलिए यहां वक्त के साथ परिवर्तन होते रहते हैं. पहले संघ का सेना जैसा गणवेश था. इसके बाद गणेवेश में बदलाव करते हुए खाकी के स्थान पर सफेद कमीज, लॉन्ग बूट की बजाय सामान्य काले जूते शामिल किए गए. 2010 में जैन संतों के सुझाव के बाद चमड़े की बेल्ट के स्थान पर दूसरी बेल्ट को शामिल किया गया.
यशवंत जी ने संघ द्वारा मध्यप्रदेश के कुछ हिस्सों में सामाजिक समरसता के लिए किए गए एक अभिनव प्रयोग की भी चर्चा की, जिसमें उन्होंने बताया कि इसका मकसद समाज के सभी वर्गो में एक मंदिर, पानी का एक स्रोत और एक श्मशानघाट का भाव जगाना था, ताकि भेदभाव का माहौल दूर हो सके. इस काम में 1300 कार्यकर्ता लगे थे, जिन्होंने 9,600 गांवों का दौरा किया. इस दौरान उनके सामने कई ग्रामों में सामाजिक समरसता के साथ भेदभाव का मामला भी देखने में आया.