ईश्वर की प्रसन्नता ही मुनष्य जीवन का लक्ष्य होना चाहिए – धनप्रकाश जी
शतायु हुए वरिष्ठ प्रचारक धनप्रकाश जी, 101वें वर्ष में किया प्रवेश
जयपुर (विसंकें). जीवन के सौ वर्ष पूर्ण कर अपने 101वें वर्ष में प्रवेश करने वाले संघ के वरिष्ठ प्रचारक धनप्रकाश त्यागी जी का शतायु सम्मान समारोह जयपुर में आयोजित किया गया. कार्यक्रम का आयोजन मा. धनप्रकाश त्यागी शतायु सम्मान समारोह समिति ने किया. कार्यक्रम में संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं के साथ संतों ने उनके स्वस्थ और दीर्घ जीवन की कामना करते हुए उन्हें अमृत कलश प्रदान किया.
धनप्रकाश जी ने उपस्थित सभी का धन्यवाद दिया. उन्होंने कहा कि मेरी तकदीर में ऐसा कैसे बना यह समझ से परे है. अपने मजदूर संघ के कार्य अनुभव के बारे में बताया कि यदि हम किसी मजदूर का साथ सत्य से देंगे तो वह आपका साथ सदैव देगा. हर किसी को फायदा उठाने की चेष्टा रहती है. ईश्वर की प्रसन्नता ही मुनष्य जीवन का लक्ष्य होना चाहिए. धर्म प्रधान व्यक्ति मन में संकल्प ले कि झूठ नहीं बोलेंगे तो सच से शक्ति मिलती है.
धनप्रकाश जी के शतायु समारोह में सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी जी ने कहा कि आज का दिवस वास्तव में ऐसा है, जिसके बारे में कोई बात रखना वास्तव में कल्पना है. धनप्रकाश जी के जीवन के संस्मरण हमारे जीवन का अंग बनें. धनप्रकाश जी संघ जीवन में सौ वर्ष पूर्ण करने वाले पहले प्रचारक हैं. आज का दिन संघ के इतिहास में प्रचारक के जीवन के सौ साल होने का पहला क्षण है. मनुष्य सदैव दीर्घ आयु रहना चाहता है. उन्होंने कहा कि जीवन सार्थक होना चाहिए. सार्थकता का महत्व होना चाहिए. धनप्रकाश जी का प्रेरणादायी जीवन सफलता और सार्थकता का साक्षात उदाहरण है. यह मूलगामी चिंतक है. संघ जो चित्र समाज के सामने रखता है, उसका चित्र जीवन में दिखता है. धनप्रकाश जी का जीवन दीप के समान है. दीप से दीप जलते रहे.
धनप्रकाश जी देश के वरिष्ठतम प्रचारक हैं, जिन्होनें संघ के सभी पूज्य सरसंघचालकों के साथ कार्य किया. संघ में प्रचारक का जीवन पूर्ण रूप से राष्ट्र को समर्पित रहता है. वह अपने अध्ययन के पश्चात देश और समाज के कार्य में अनेक प्रकार की कठिनाईयों को हसंते हसंते स्वीकार कर लगे रहते हैं. धनप्रकाश जी भी उसी कड़ी की अग्र पंक्ति में रहे हैं. धनप्रकाश जी का जन्म 10 जनवरी 1918 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिला स्थित महेपुरा गांव में हुआ. सन् 1942 में दिल्ली से संघ का प्राथमिक शिक्षा वर्ग, 1943 में प्रथम वर्ष, 1944 में द्वितीय वर्ष तथा 47 में संघ शिक्षा का तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण लिया था. केन्द्र सरकार में नौकरी त्याग कर अपना पूरा जीवन संघ को दे दिया.

त्यागी जी ने वर्ष 1943 में दिल्ली में विस्तारक बने. सहारनपुर नगर, अलीगढ़ नगर, अम्बाला, हिसार, गुरूग्राम, शिमला एवं होशियारपुर में संघ के विभिन्न दायित्वों को निर्वाह किया. संघ पर लगे प्रथम प्रतिबन्ध के समय धनप्रकाश जेल में भी रहे. सन् 1965 से 1971 तक जयपुर विभाग प्रचारक के रूप में जिम्मेदारी रही. राजस्थान में भारतीय मजदूर संघ के विस्तार में धनप्रकाश जी की बड़ी भूमिका रही है. कठिन चुनौतियों और प्रतिकूलताओं के बीच उन्होंने अपने जीवन का लंबा समय भामसं के काम को खड़ा करने और उसके दृढ़ीकरण में लगाया है. इसके बाद सेवा भारती, विद्याभारती की जिम्मेदारी भी उन पर रही. सेवा भारती का कार्य करते हुए धनप्रकाश जी ने ऐसे कार्यकर्ताओं को सेवा कार्य के लिये प्रेरित किया, जिन्होंने अपना जीवन सेवा कार्यों के लिए समर्पित कर दिया. जिनमें जयपुर की विमला कुमावत ऐसा ही उदाहरण हैं, जिन्होंने अपना जीवन ऐसे असहाय बालकों के लिये लगा रखा है जिनका कोई सहारा तक नहीं था.
कार्यक्रम की भूमिका क्षेत्र प्रचारक दुर्गादास जी ने रखी, उन्होंने कहा कि यह ध्येयनिष्ठ जीवन का सम्मान है. जैसी व्यवस्था होती है, वह उसी में अपना काम कर लेते हैं. आज भी धनप्रकाश जी अपना स्वयं का कार्य खुद ही करते हैं. नियमित शाखा और व्यायाम आज भी उनकी दिनचर्या का भाग है. आज भी मात्र देश और ध्येय के लिए ही लगे रहते हैं.
कार्यक्रम के लिए भोपाल से आए संघ के वरिष्ठ प्रचारक ओम प्रकाश अग्धी जी ने कहा कि धनप्रकाश त्यागी स्वयं की निर्मित प्रतिमूर्ति है. आज हम सम्मान करने के लिए यहां उपस्थित हैं. उनके गुणों को हम अपने जीवन में लाएं, जिससे हम भी राष्ट्र कार्य में लगे रहें.
मदनलाल जी ने कहा कि दूसरे की पीड़ा का अनुभव और कार्यकर्ता की चिन्ता कैसे होती है, यह उनके जीवन से सीखा जा सकता है. विमला कुमावत जी ने कहा कि जीवन बदलने की प्रेरणा उनकी ही देन है. धनप्रकाश जी ने मुझे सुगंधित पुष्प का रूप दिया. राजस्थान क्षेत्र कार्यकारीणी सदस्य और संघ के वरिष्ठ प्रचारक राजेन्द्र प्रसाद जी ने कहा कि जो दूसरो से अपेक्षा होती है, वह स्वयं धनप्रकाश जी करते है. नियमित शाखा का सूत्र वह प्रत्येक स्वयंसवेक को जीवन में उतारने के लिए प्रेरित करते हैं. विभिन्न क्षेत्रों में बड़ी सहजता से कठिनाईयों का सामना करते हुए कार्य किया. जिस क्षेत्र में भी कार्य किया, उसमें संघ के स्वयंसेवकत्व को हमेशा आगे रखा.
रेवासापीठ के डॉ. राघवाचार्य वेदान्ती जी ने कहा कि प्रचारक जीवन का उदाहरण धनप्रकाश जी ने दिया है. श्रेष्ठता का प्रचार होना चाहिए. हम कैसे हमारा जीवन कैसा है, इस सत्य को हर कोई सबके सामने उदगार नहीं करते. धनप्रकाश जी सत्य की प्रतिमूर्ति है. जिस प्रकार कष्ट के निवारण के लिए सत्यवादी हरीशचन्द्र का नाम लिया जाता है. उसी प्रकार यदि धनप्रकाश जी का नाम भी लिया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. कार्यक्रम में धनप्रकाश जी के जीवन पर लिखी पुस्तक ध्येय पथिक धनप्रकाश त्यागी नामक पुस्तक का विमोचन भी हुआ. भारत माता के चित्र के सम्मुख 101 दीपों का प्रज्ज्वलन किया गया.