मेरठ. महर्षि अरविन्द क्रांतिकारी होने के साथ-साथ प्रखर राष्ट्रवादी पत्रकार, लेखक, कवि व योगी भी थे. उनके देश के प्रति समर्पण ने अनेक युवाओं को प्रेरित किया. भारत माता एवं अखण्ड भारत की संकल्पना उनके मन में बसी थी. यह बात महर्षि अरविन्द की जयंती के उपलक्ष्य में विश्व संवाद केन्द्र द्वारा आयोजित एक पत्रकार संगोष्ठी में मुख्य वक्ता अजय मित्तल ने कही.
उन्होंने कहा कि महर्षि को सात वर्ष की उम्र में उनके पिता ने इंग्लैण्ड पढ़ने के लिये भेज दिया था. वहाँ पर उन्होंने 18 वर्ष की आयु में ही आईसीएस की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली. इतनी प्रतिभा के धनी महर्षि अरविन्द कई भाषाओं का ज्ञान भी रखते थे. जिनमें मुख्य रूप से अंग्रेजी, जर्मन, फ्रैंच, ग्रीक एवं इटेलियन भाषाओं के साथ-साथ कुछ भारतीय भाषाओं का भी ज्ञान था.
श्री मित्तल ने कहा कि सुभाष चन्द्र बोस के व्यक्तित्व पर अरविन्द का बहुत प्रभाव देखा जाता था. 1896 से लेकर 1905 तक उन्होंने बड़ौदा रियासत में राजस्व अधिकारी से लेकर बड़ौदा कॉलेज फ्रैंच अध्यापक और उपाचार्य रहने तक रियासत की सेना में क्रांतिकारियों को प्रशिक्षण भी दिया. नेशनल लॉ कॉलेज की स्थापना में भी इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा. मात्र 75 मासिक पर इन्होंने नेशनल कॉलेज में अध्यापन का कार्य किया तथा इसके प्रधानाचार्य भी रहे. महर्षि अरविन्द ने वन्दे मातरम् का सम्पादन भी किया तथा दिव्य जीवन, द मदर, लेट्स ऑन योगा, सावित्री, योग जैसी पुस्तकें भी लिखीं.
गोष्ठी में वरिष्ठ पत्रकार रामगोपाल, कलम पुत्र पत्रिका के सम्पादक चरण सिंह स्वामी आदि पत्रकारों ने भी अपने विचार रखे. कार्यक्रम की अध्यक्षता अशोक अग्रवाल तथा संचालन डॉ. प्रशान्त ने किया. कार्यक्रम में मुख्य रूप से सुरेन्द्र सिंह, पंकुल शर्मा, शीलेन्द्र चौहान, डॉ. सुनील कुमार मिश्रा, मितेन्द्र, अनुज, नवीन आदि गणमान्य पत्रकार उपस्थित थे.