600 कन्याओं का सामूहिक पूजन, हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा मेला – 2016
भुवनेश्वर (विसंकें). भारतीय समाज आधुनिकता के नाम पर पाश्चात्य संस्कृति को अपनाने की होड़ में अपनी प्राचीन परंपरा एवं संस्कृति को भूलता जा रहा है. यहां तक कि लोग अपने जन्मदाता को भूल रहे हैं और उन्हें बुढ़ापे में दर दर की ठोकरें खाने को छोड़ दे रहे हैं. जन्म लेने से पहले ही गर्भ में ही कन्याओं की हत्या की जा रही है. पेड़ पौधों की बेरोक टोक कटाई कर पर्यावरण को असंतुलित बनाया जा रहा है. आजीवन शक्ति प्रदान करने वाली गौ माता को कसाइयों के हाथ बेच दिया जा रहा है. ऐसे में इनिशिएटिव फॉर मोरल एंड कल्चरल ट्रेनिंग फाउंडेशन (आइएमसीटीएफ) के तत्वाधान में स्थानीय बरमुंडा मैदान में हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा मेला के माध्यम से महिला एवं कन्या सम्मान, कन्या पूजन, वृक्ष की पूजा, गौ माता का पूजन, वैतरणी पूजन का सामूहिक आयोजन कर भारतीय समाज को अपनी परंपरा व संस्कृति को याद दिलाने का अनूठा प्रयास किया गया है.
कार्यकारी अध्यक्ष मुरली मनोहर शर्मा बताया कि हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा मेले में 600 कन्याओं के सामूहिक पूजन के साथ वृक्ष, गौ माता, वैतरणी का पूजन किया गया. ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में पहली बार इस तरह का प्रयास किया गया है, जो आगामी दिनों में जारी रहेगा. समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र कार्यवाह प्रदीप जोशी जी ने कहा कि भारतीय परंपरा में नारी का स्थान सर्वोपरि है. महिलाएं भारतीय समाज एवं संस्कृति की मुख्य केंद्र हैं. ऐसे में पारंपरिक मूल्यबोध के जरिए ही भारत में कन्या एवं महिलाओं को सुरक्षित रखा जा सकता है. भारतवर्ष के सभी भाग में कन्या पूजन की परंपरा है, मगर पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के चलते यह परंपरा विलुप्त होती जा रही है. ऐसे में हमें मिलकर इस परंपरा को पुन:जीवित करना होगा और भारत को एक शक्तिशाली सर्वगुण संपन्न देश बनाना होगा. इस परंपरा से भारत की पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक स्थिति मजबूत होगी.
इस अवसर पर उपस्थित डॉ. कविता रथ, प्रो. प्रतिभा मंजरी रथ ने कन्या पूजन के संदर्भ अपने विचार रखे. आशीर्वचन सभा में स्वामी शंकरानंद गिरी, स्वामी असीमा नंद सरस्वती, स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती महाराज ने उपदेश उपस्थित श्रोताओं को दिया. समारोह में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम खासकर सामूहिक छऊ नृत्य ने उपस्थित लोगों का दिल जीत लिया.