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महिलाओं को पारिवारिक दायित्व निभाते हुए राष्ट्रनिर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए

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नई दिल्ली. परिवार, समाज और राष्ट्र में सामंजस्य बिठाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति का जीवन राष्ट्रीय विचारों से ओतप्रोत होना चाहिए. व्यक्ति नश्वर है, राष्ट्र चिरंतन है. जो व्यक्ति राष्ट्र को श्रेष्ठ समझेगा, वही स्वयं को राष्ट्र का स्तर बढ़ाने का साधन मात्र समझेगा क्योंकि व्यक्ति नहीं, बल्कि संगठन और राष्ट्र सर्वोपरि हैं. राष्ट्र सेविका समिति की अखिल भारतीय सह कार्यवाहिका चित्रा ताई जोशी दिल्ली में वैचारिक सामंजस्य – एक चुनौती विषय पर आयोजित गोष्ठी में संबोधित कर रही थीं.

यह कार्यक्रम राष्ट्र सेविका समिति की संस्थापक स्वर्गीय लक्ष्मीबाई केलकर जी की 114वीं जयंती के अवसर पर समिति के दिल्ली प्रांत के प्रबुद्ध वर्ग मेधाविनी सिंधु सृजन ने आयोजित किया था. लक्ष्मीबाई केलकर को सम्मान से मौसीजी भी कहते हैं.

कार्यक्रम की अध्यक्षता बिंदु डालमिया जी, अध्यक्ष, राष्ट्रीय विषय समावेशन समिति, नीति आयोग ने की. उन्होंने कहा कि पिछली शताब्दी के तीसरे दशक में लक्ष्मीबाई केलकर ने भारतीय महिलाओं के लिए जिन आदर्शों को आधार मानकर महिलाओं के संगठन (राष्ट्र सेविका समिति) की स्थापना की, वे आज भी समाज के आधारभूत अंग हैं. मौसी जी का मानना था कि राष्ट्र के निर्माण में महिलाओं की अहम भूमिका है. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण का उल्लेख भी किया, जिसमें उन्होंने मौसी जी के उस विचार का पुरजोर समर्थन किया था कि महिलाओं को पारिवारिक दायित्व निभाते हुए राष्ट्रनिर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए.

लक्ष्मीबाई केलकर का जन्म 6 जुलाई 1905, आषाढ़ शुक्ल दशमी शक 1827 को नागपुर में हुआ. उनके बचपन का नाम कमल था. लेकिन एडवोकेट पुरुषोत्तम राव से विवाह के पश्चात उन्हें लक्ष्मीबाई नाम मिला. उनके पिता भास्करराव दाते और मां यशोदाबाई थीं. पिता सरकारी सेवा में थे. यशोदाबाई जागरूक महिला थीं और देश और समाज की घटनाओं से भली भांति परिचित रहती थीं. तब लोकमान्य तिलक के अखबार केसरी को खरीदना या पढ़ना देशद्रोह के समान माना जाता था, लेकिन यशोदाबाई न केवल केसरी खरीदती थीं, अपितु आसपास की महिलाओं को एकत्र कर उसका सामूहिक पारायण भी करती थीं. अपनी मां से मिले संस्कारों और व्यक्तिगत अनुभवों ने लक्ष्मीबाई को सिखाया कि भारत के लिए राजनीतिक आजादी तो आवश्यक है ही, लेकिन साथ ही महिलाओं का सशक्तिकरण, जागरण और स्वालंबन भी आवश्यक है.

लक्ष्मीबाई के बेटे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य थे. उनके माध्यम से वो संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के संपर्क में आईं और उनकी प्रेरणा से उन्होंने 25 अक्तूबर, 1936 को विजयदशमी के दिन राष्ट्र सेविका समिति की नींव रखी. समिति के माध्यम से उन्होंने भारतीय नारी को अपना जीवन स्वपरिवार के साथ राष्ट्रधर्म के लिए समर्पित करने की प्रेरणा दी. उन्होंने जो पौधा रोपा था वो आज वट वृक्ष बन चुका है.

आज राष्ट्र सेविका समिति भारत का सबसे बड़ा महिला संगठन है. देशभर में समिति की 3 लाख से अधिक सेविकाएं और 584 जिलों में 4,350 नियमित शाखाएं हैं. समिति 855 से अधिक सेवाकार्य कर रही है. इनमें छात्रावास, निःशुल्क चिकित्सा केंद्र, लघु उद्योग से जुड़े स्वयं सहायता समूह, रूग्णोपयोगी साहित्य केंद्र, संस्कार केंद्र, निःशुल्क ट्यूशन कक्षाएं आदि शामिल हैं. समिति के सक्रिय बौद्धिक और धार्मिक विभाग हैं, जिनकी गतिविधियां वर्ष भर चलती हैं. समिति सामाजिक व राष्ट्रीय विषयों पर 25 से अधिक प्रदर्शनी लगा चुकी है.

समिति देश के पिछड़े और अभावग्रस्त वनवासी क्षेत्रों में विशेष रूप से कार्य कर रही है. वो नक्सलवाद और आतंकवाद से ग्रस्त क्षेत्रों की बच्चियों के लिए अनेक छात्रावास चला रही है, जहां उनके निःशुल्क आवास और पढ़ाई की व्यवस्था की जाती है. इन छात्रावासों की अनेक लड़कियां उच्च शिक्षा प्राप्त कर स्वाबलंबी बन चुकी हैं.

वर्ष 1953 में समिति ने सेविका प्रकाशन आरंभ किया जो विभिन्न भाषाओं में सामाजिक-राष्ट्रीय साहित्य प्रकाशित करता है. वर्ष 1965 से प्रतिवर्ष नववर्ष प्रतिपदा पर दिनदर्शिका का प्रकाशन होता है.

चाहे प्राकृतिक आपदा हो या देश पर हमला, समिति सदा ही सेवा, बचाव और सहायता कार्य में आगे रही है.

मेधाविनी सिंधु सृजन समिति की प्रबुद्ध महिलाओं का समूह है, जिसमें वकील, कलाकार, लेखक, पत्रकार आदि शामिल हैं. ये समय-समय पर राष्ट्रहित के विषयों पर सेमीनार और संगोष्ठी आदि आयोजित करता है और सेविकाओं को ज्वलंत विषयों की जानकारी और विश्लेषण उपलब्ध करवाता है.

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