शिवा पंचकरण
धर्मशाला.
6 मई तेलंगाना में असदुद्दीन ओवेसी की पार्टी AIMIM [आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुलमुस्लिमीन] के कार्यकर्ता शकील अहमद द्वारा एक 16 साल की नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म किया गया था. हैदराबाद मालकपेट विधानसभा के इसी इलाके से AIMIM के अहमद बिन अब्दुल्लाह विधायक हैं. शकील अहमद कमला नगर इलाके में पीड़िता का पड़ोसी भी है. दुष्कर्म के बाद शकील खान ने नाबालिग लड़की को डरा धमका कर ये बात किसी को भी ना बताने के लिए कहा था. लेकिन पीड़िता ने सारी बात अपने परिवार को बताई, जिनके द्वारा ये सारी सूचना नजदीकी पुलिस स्टेशन पर दी गयी. पीड़िता अपने माता-पिता को बचपन में ही खो चुकी है और वर्तमान में अपने दादा-दादी के साथ रहती है. उसका एक भाई भी है जो अलग शहर में रहता है. पीड़िता ने बताया AIMIM का कार्यकर्ता शकील खान उसे सामूहिक बलात्कार करने की धमकी भी देता था. सारे मामले का संज्ञान लेते हुए पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है. हैदराबाद ईस्ट जोन के डीसीपी M.Ramesh ने शकील का नाम बताये बिना ट्वीट किया है.
AIMIM के एक और विधायक अहमद बलाला ने तो शकील को अपनी पार्टी का कार्यकर्ता मानने से ही इनकार कर दिया. ट्विटर पर ऑल्ट न्यूज़ का लोगो लगाये एक फेक पोस्ट को रिट्वीट करते हुए उन्होंने कहा कि शकील का उनकी पार्टी से कोई सम्बन्ध नहीं है, जबकि ऑल्ट न्यूज़ ने ऐसे किसी भी तरह के फैक्ट चेक या खबर चलाने से इनकार कर दिया है.
इस काण्ड से मीडिया की भूमिका एक बार फिर कटघरे में आ गयी है. आतंकवादी या यूँ कहें शिक्षक रियाज़ नायकू की पसंद-नापसंद और उसकी कलाकारी की चर्चा करते हुए न थकने वाले सभी बड़े-बड़े मीडिया हाउस इस घटना पर खामोश हैं. दलित लोगों की चिंता करने वाले तथाकथित दलित आन्दोलनकारी भी इस घटना पर खामोश हैं. महिला हितों के लिए लड़ने वालों तक शायद इस बात की अभी जानकारी नहीं पहुंची है या शायद वह जामिया यूनिवर्सिटी की माहूर परवेज़, जिनके द्वारा भारतीय सेना का अपमान किया गया था, उसके अधिकारों के लिए इतना लड़ रही है कि पूरे देश में महिलाओं के साथ क्या हो रहा है, उसे उसकी जानकारी नहीं है. बात-बात पर इस्तीफे मांगने वाले बड़े-बड़े सेक्युलर नेता इस घटना पर पूरी तरह खामोश हैं और इस घटना को दबाने का प्रयत्न कर रहे हैं.
प्रतीत हो रहा है की भीम-मीम की एकता पर इस घटना ने एक बार फिर प्रश्न चिंह लगाया है. आखिर इस दुष्कर्म पर ख़ामोशी का कारण क्या है? संभव है कि इसके द्वारा न ही वोट बैंक में कोई बढ़ोतरी हो सकती है और ना ही कोई स्वार्थ पूरा हो सकता है. इसीलिए सभी सेक्युलर लोग इस घटना की लीपा-पोती में जुटे हुए हैं. मानवाधिकार और संविधान को बचाने वाले लोग क्या जल्द ही इसके लिए आन्दोलन करेंगे? ट्विटर, फेसबुक आदि इसी इंतज़ार में हैं कि कब 2-2 रूपए के हिसाब से दना-दन पोस्ट और ट्वीट किये जाएँगे. किन्तु हमारे आन्दोलनकारी इस मुद्दे पर खामोश हैं
इस पूरे मामले पर अभी तक ओवेसी बंधुओं से भी कोई ट्वीट या वार्तालाप देखने को नहीं मिला. सपा से कांग्रेस, कांग्रेस से बीजेपी और बीजेपी से निकाले जाने के बाद सीधा जेल में गये कुलदीप सेंगर के दोषों के कारण पूरी बीजेपी को आईना दिखाने वाला विपक्ष भी फिलहाल इस मुद्दे पर चुप है. पीड़िता की सहायता के लिए अभी कोई पार्टी या सामाजिक संगठन आगे नहीं आया है. हर तरफ से केवल ख़ामोशी ही ख़ामोशी पसरी है और न्याय भी अभी दूर है.
भारत में यह बार-बार देखने को मिलता है कि एक जमात निर्धारित एजेंडे के तहत सिर्फ कुछ ख़ास दोषों पर ही छाती कूटती है. बाकी सभी दोष उनकी नज़र में सेक्युलर हो जाते हैं. कठुआ के समय जिन लोगों ने एक दुष्कर्म को झूठी खबरों के आधार पर मंदिर से जोड़ दिया, वह सभी इस दुष्कर्म पर खामोश बैठे हैं. कैसे एक दुष्कर्म कम्युनल और सेक्युलर बन जाता है, ये पता भी नहीं लगता है. खैर पूरे मामले में आगे की राह क्या होगी, ये देखने वाली बात होगी. पुलिस ने आरोपी को पकड़ लिया है, अब आगे देखना होगा की क्या पीड़िता को इन्साफ मिल पाएगा? कौन उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी लेगा?
9 मई को इसी प्रकार की घटना राजस्थान में भी घटी है, जहाँ पर 4 मुस्लिम लोगों द्वारा एक नाबालिग हिन्दू लड़की के साथ दुष्कर्म किया गया. काफी दबाव पड़ने पर पुलिस द्वारा चारों आरोपियों पर मामला दर्ज किया गया है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार मामला दर्ज होने के बाद प्रशासन और सगे सम्बन्धी पीड़िता के परिवार पर शिकायत वापिस लेने का दबाव बना रहे हैं. डॉक्टर द्वारा भी पीड़िता को इस मामले को कोर्ट के बाहर निपटाने को कहा गया है. पीड़िता के अनुसार चारों आरोपियों को सजा देने की बजाय उसे ही चरित्र प्रमाणपत्र दे रहे हैं. लेकिन ये खबर भी इतनी बड़ी नहीं बन पा रही है कि राष्ट्रीय पत्रिकाओं, अखबारों और बड़े-बड़े मीडिया हाउसे की स्क्रीन में एक कोना पा सके.