भोपाल. केशव स्मारक समिति के तत्वाधान में नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019, संवाद नामक कार्यक्रम आयोजित किया गया. जिसमें नागरिकता संशोधन अधिनियम के संबंध में विस्तार से जानकारी दी गई. कार्यक्रम के अध्यक्ष अरुण जी भट्ट सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी रहे, विशेष अतिथि सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर रामनारायण विनायक सेवन एवं शशि भाई सेठ पूर्व प्रांत संघचालक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ थे. मुख्य वक्ता अशोक जी पांडे, पूर्व न्यायाधीश एवं संघ लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष रहे.
कार्यक्रम में शांता देवी ने भी अपनी व्यथा सुनाई, वह 1980 में भारत आईं. उनके माता-पिता की मृत्यु हो चुकी है. अभी तक उनको नागरिकता नहीं मिली है. ऐसे ही पाकिस्तान से लगभग 30 साल पहले आए विकी कुमार ने अपनी आपबीती सुनाई, उन्होंने बताया कि करीब 15 साल पहले नागरिकता हेतु अप्लाई किया था. कलेक्टर वल्लभ भवन भेजते हैं और वल्लभ भवन वाले बोलते हैं, यह सब काम दिल्ली से होगा.
मुख्य वक्ता अशोक जी पांडे ने इसका विरोध करने वाले लोगों को तीन श्रेणी में बांटा, पहले वह जो सब कुछ जानते हैं, समझते हैं, परंतु अपनी राजनीति के लिए विरोध कर रहे हैं एवं भड़का रहे हैं. दूसरे वो जो भ्रम फैला रहे हैं और उकसा रहे हैं. तीसरे वह जो कम पढ़े लिखे हैं, उनको इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, उनके मन में उपरोक्त दोनों लोग असुरक्षा की भावना भर रहे हैं और उनको ऐसा बोल रहे हैं कि यह कानून आप को भगाने के लिए है. अशोक पांडे ने संविधान में नागरिकता से संबंधित अनुच्छेद 511 की व्याख्या की. इस संबंध में मोहम्मद रजा विरुद्ध स्टेट ऑफ मुंबई केस की जानकारी दी.
अशोक पांडे ने कहा कि अनुच्छेद 11 में स्पष्ट है कि नागरिकता से संबंधित किसी भी प्रावधान को संसद बदल सकता है. उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में मुसलमान के अलावा अन्य समाज के लोगों के साथ कैसा बर्बरता पूर्ण व्यवहार होता है, ईशनिंदा कानून के बारे में भी बताया. इन तीनों देशों का राजकीय धर्म इस्लाम है और वहां रहने वाले अल्पसंख्यक बहुत बुरी अवस्था में जी रहे हैं.
उन्होंने कहा कि जोगेंद्र नाथ मंडल जिन्ना के साथी थे. उनको जिन्ना ने सिलाहट भेजा था ताकि वहां के लोगों को पाकिस्तान में सम्मिलित होने को मनाया जा सके. जोगेंद्रनाथ मंडल को इस काम के लिए डॉ. अंबेडकर ने मना किया था. जोगेंद्रनाथ मंडल को पकिस्तान में कानून मंत्री बनाया था, परंतु हिन्दुओं पर धार्मिक उत्पीड़न जारी रहा, जिसके विरोध में 1950 में मंडल ने इस्तीफा दिया. उन्होंने बताया कि नेहरू जी और लियाकत अली के मध्य 1950 में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर समझौता हुआ था, लेकिन पाकिस्तान ने उसे नहीं निभाया. पाकिस्तान में कुल 428 मंदिर थे, जिसमें से मात्र 28 बचे हैं और उनकी समितियों में भी मुस्लिम हैं.
उन्होंने कहा कि अहमदीया, कादियानी समाज अपने आप को मुसलमान मानते हैं, इसलिए उनपर धार्मिक उत्पीड़न वाली बात लागू नहीं होती है. नागरिकता संसोधन कानून में एक भी शब्द ऐसा नहीं है, जिसमें किसी भी भारतीय मुसलमान से नागरिकता हेतु एक भी कागज मांगा जाए, यह कानून नागरिकता देने हेतु है ना कि नागरिकता लेने हेतु.
अगर यहीं के हो तो इतना डर कैसे?
अगर चोरी से घुसे हो तो यह तुम्हारा घर कैसे?
अगर तुम शांतिपसंद हो तो इतनी ग़दर कैसे?
इसी को तुम ख़ाक कर रहे हो यह तुम्हारा शहर कैसे ?