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युगानुकूल चिंतन से परंपरा का परिष्करण होना दीर्घजीवन के लिये आवश्यक – सुरेश भय्या जी जोशी

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मुंबई (विसंकें). मुंबई के कांदिवली पूर्व के तेरापंथी भवन में 25 सितंबर को सायं 5 बजे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश भय्याजी जोशी ने दीप प्रज्ज्वलन कर “दीनदयाळ कथा” कार्यक्रम के दूसरे दिन का शुभारंभ किया. यहाँ 24 सितंबर से रामभाऊ म्हाळगी प्रबोधिनी तथा दीनदयाळ शोध संस्थान संस्थाओं द्वारा दो दिवसीय “दीनदयाल कथा” का आयोजन किया जा रहा है. कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दिल्ली के प्रांत सह संघचालक आलोक कुमार जी कथा प्रस्तुत कर रहे है.

“दीनदयाळ कथा” के समापन में सरकार्यवाह भय्याजी जोशी ने सभा को संबोधित किया. सरकार्यवाह जी ने सहज सरल भाषा में पं. दीनदयाळजी का जीवन तथा तत्वज्ञान रखने के लिये कथाकार आलोक जी का अभिनंदन किया. पंडित जी के विचार शाश्वत विचार हैं. उन विचारों पर चलने की परंपरा जब तक थी, तब तक समाज, देश सुरक्षित रहा. जब उन में कमी आयी, तब देश पर संकट छाया. शाश्वत विचारों पर युगानुकूल चिंतन से परंपरा का परिष्करण होना दीर्घजीवन के लिये आवश्यक होता है. हमें यह अवसर मिला था, जब हमें स्वतंत्रता प्राप्त हुई, पर दुर्भाग्य से यह अवसर हम ने गँवाया. पंडितजी की उदारमनस्कता यह है कि वे कहते हैं मार्क्स का विचार मानव कल्याण का लक्ष्य रखता है, पर वह अपूर्ण चिंतन है. क्योंकि वह केवल संघर्ष का विचार करता है. मानव तथा सृष्टि के परस्परावलंबन को उसने अनदेखा किया. इस अपूर्ण चिंतन को आधार मानकर हमारे नेतृत्व ने स्वतंत्रता की प्राप्तिकाल को मिला अवसर गँवाया. स्वतंत्र समाज के नागरिकों का यह बहुत बहा कर्तव्य रहेगा कि भारत के शाश्वत चिंतन को अपनी परंपरा का रूप दे कर अपने राष्ट्र के भव्य भवितव्य के निर्माण में अपनी भूमिका निभाएं.

 

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