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योग से होती है चित्त की शुद्धि – स्वामी विद्यानंद सरस्वती जी

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योग:कर्मसु कौशलम् विषय पर व्याख्यान

unnamed-1जयपुर (विसंकें). जगद्गुरू रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर में मंगलवार को ‘योग:कर्मसु कौशलम्’ विषय पर व्याख्यान कार्यक्रम हुआ. व्याख्यान के मुख्य वक्ता गुजरात स्थित त्रयोदश ज्योतिर्लिंग तीर्थ भावेश्वर धार्म के अधिष्ठाता एवं राष्ट्रसंत आचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी विद्यानंद सरस्वती जी थे. व्याख्यान कार्यक्रम में स्वामी विद्यानंद सरस्वती जी ने कहा कि जिस प्रकार पद की शुद्धि व्याकरण से और शरीर की शुद्धि आयुर्वेद से होती है, उसी प्रकार मनुष्य के चित्त की शुद्धि योग से होती है. योग के नियमित सूक्ष्म अभ्यास से व्यक्ति न केवल जीवन में स्वस्थ रह सकता है, बल्कि अनेक प्रकार की वृत्तियों से भी छुटकारा पा सकता है.

उन्होंने योग विषय के विद्यार्थियों से कहा कि वे योग को केवल डिग्री लेने तक ही सीमित नहीं रखें, उसे जीवन में उतारें. योग को भले ही अपनी आजीविका का साधन बनाएं, मगर उसका व्यवसायीकरण करने की चेष्टा ना करें. योग के व्यवसायीकरण से न स्वयं का भला होगा और न साधक का.

जगद्गुरू रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति विनोद शास्त्री जी ने कहा कि संतों का सानिध्य ईश्वर कृपा से ही मिलता है. बगैर कृपा संतों का सानिध्य संभव नहीं है. व्याख्यान कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के कुल सचिव महेशनारायण शर्मा, योग विभाग प्रमुख शिव मूर्ति एवं योगगुरू शत्रुघन सिंह जी भी उपस्थित थे.

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