जालंधर. देश में बढ़ती आत्महत्या की घटनाएं नि:संदेह गंभीर चिंतन का विषय है. ऐसे में आज जरूरत है एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था की जो मानवीय मूल्यों और मानवीय जीवन की सही अर्थों में कीमत क्या है, इसका ज्ञान करा सके. इसके साथ ही उसे अपने परिवार, समाज व राष्ट्र के प्रति एक जिम्मेदार नागरिक बना सके. बीते 70 वर्षों से चली आ रही मैकाले की शिक्षा प्रणाली के चलते आज देश की वैदिक पुरातन संस्कृति को बचाने की नितांत आवश्यकता है. इसी उद्देश्य को लेकर विद्या भारती का प्रयास सराहनीय है. विद्या धाम में आयोजित एनआरआई सम्मेलन में अपने उद्घाटन संबोधन में भारत सरकार के मानव संसाधन राज्यमंत्री डॉ. सत्यपाल सिंह जी ने विचार व्यक्त किए.
उन्होंने कहा कि राष्ट्र के समग्र विकास के लिए शिक्षा पद्धति को भारतीय संस्कृति एवं जीवन आदर्श प्रदान करने वाली बनाना जरूरी हो गया है. क्योंकि मैकाले की शिक्षा पद्धति में जीवन के आदर्श व मानवीय मूल्यों तथा राष्ट्र व समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व का बोध कराने वाले भाव लुप्त हो गए हैं. आज वही व्यक्ति, समाज व राष्ट्र अपना परचम लहरा सकता है जो शिक्षित हो, स्वस्थ हो और अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी से युक्त होने के अलावा शक्तिशाली हो. इन सब के लिए ज्ञान प्राप्त करने का मौलिक अधिकार सभी को है.
उन्होंने पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी के विचारों को उद्धृत करते हुए कहा कि आधुनिक ज्ञान को प्राप्त करने के लिए देशी-विदेशी तर्कों में नहीं पड़ना चाहिए. बल्कि उसे अपने अनुकूल कैसे बनाया जाए, इस पर ध्यान देने की आवश्यता है. शिक्षा सभी बीमारियों व समस्याओं से मुक्ति दिलाने में सहायक है. स्वस्थ्य रहने के लिए व्यक्ति को सकारात्मक सोच रखनी चाहिए. स्वस्थ व्यक्ति की पहचान हेतु कहावत – पैर गरम, पेट नरम, सिर ठंडा… बीमारी को मारो डंडा. उन्होंने कहा कि विकसित और मजबूत समाज के लिए जहां शिक्षित होना जरूरी है, वहीं समाज के अच्छे लोगों को भी एक मंच पर आना चाहिए और नकारात्मक भाव व बुरे काम करने वालों के साथ कभी न खड़े हों. शिक्षा के उत्थान में अपना बहुमूल्य योगदान देकर समाज के अंधकार को दूर करें.
इस मौक पर राष्ट्रीय मंत्री विद्या भारती शिव कुमार जी ने कहा कि हमारा उद्देश्य समाज के साथ जुड़कर उसके सहयोग से कार्य को संपादित करना है, ना कि सरकारी सहयोग से. ये दुनिया का पहला ऐसा गैर सरकारी संगठन है, जिसने बिना किसी सरकारी सहयोग के देश के सुदूरवर्ती सीमा क्षेत्रों, ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में शिक्षा का अलख जगाया है. विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान है. इसके अंतर्गत देशभर में 13465 विद्यालय हैं, जिसमें 31,37,930 विद्यार्थी हैं. 1,36,231 आचार्यों द्वारा उचित मार्गदर्शन व शिक्षा प्रदान की जा रही है. यहां की शिक्षा का मुख्य उद्देश्य भावी पीढ़ी को भारतीय संस्कृति व जीवन आदर्शों के प्रति, प्रतिबद्ध करना और राष्ट्र के प्रति एक जिम्मेदार नागरिक बनाना है.
इस मौके पर विद्या भारती के प्रांत महासचिव अशोक बब्बर जी ने कहा कि पंजाब की 300 किलोमीटर की सीमा जो पाकिस्तान से जुड़ी हुई है व अति संवेदनशील और पिछड़ा क्षेत्र है. वहां के लोगों को समुचित रूप से बुनियादी शिक्षा प्राप्त नहीं होती है. ऐसे क्षेत्रों में विद्या भारती बड़े स्तर पर समाज के साथ जुड़कर संस्कार आधारित शिक्षा व्यवस्था कार्य के प्रसार में जुटी हुई है. हम आधुनिक शिक्षा प्रणाली को एडाप्ट करने के साथ-साथ मानवीय जीवन शैली व उसके मूल्यों का ज्ञान प्रदान करने वाली वैदिक शिक्षा से बच्चों को संस्कारवान बनाते हैं.
सीमावर्ती क्षेत्रों में राष्ट्रवादी विचारों का विद्यालय खोलना और निःशुल्क शिक्षा प्रदान करना मुख्य ध्येय है. यह एक बड़ी चुनौती है, इसके लिए बड़े संसाधनों की जरूरत है. उन्होंने ऐसे कई अप्रवासी भारतीयों का उदाहरण दिया, जिनके सहयोग से इन क्षेत्रों में विद्यालय बनाए गए हैं.
इस मौके पर उत्तर क्षेत्र के प्रधान अशोक पाल ने संस्कार केद्रों की उपयोगिता पर रोशनी डाली. इस मौके पर विश्व विभाग से डॉ. राम वैद्य जी ने कहा कि इस क्षेत्र में मेरे एक इंडियन-अमेरिकन मित्र हैं. जिनका एयरबस के पार्ट्स निर्माण की कंपनी है. उनके सहयोग से गांव भदरवा के पास संस्कार केंद्र व एकल विद्यालय खुला. एकल विद्यालय का मासिक खर्च 15 हजार रुपए है. इसके अलावा उन्होंने विदेशों में भारतीयों द्वारा वैदिक शिक्षा के क्षेत्र में किए जा रहे कार्यों पर रोशनी डाली. जिस तरह से वहां के लोग संस्कृत भाषा के प्रति आस्थावान हैं और पढ़ व पढ़ा रहे हैं. यह इस बात को इंगित करता है कि संस्कृत हमारी भाषा, हमारे भविष्य की भाषा है. उन्होंने कीनिया, अमरीका, लंदन, इंग्लैंड, सेंट्रल लंदन, स्वीडन व अन्य देशों में वैदिक शिक्षा के प्रति लोगों की भावनाओं को उजागर करते हुए कहा कि संस्कृत दुनिया की प्राचीनतम भाषा है और वेदांत हमारी प्रेरणा के स्रोत हैं. उन्होंने एनआरआई बंधुओं से अपील की कि वह हमारे इस पुण्य यज्ञ के भागीदार बनें और साथ ही एक एंबेसडर के रूप में अपने-अपने देशों में जाकर इसका प्रचार-प्रसार करें और लोगों को प्रेरित करें. सम्मेलन के संयोजक संजीव संगर जी ने सभी का आभार व्यक्त किया.