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राहत कोष के आईने में कांग्रेस देखे अपना चेहरा

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राजेश दत्त

थर्मल, पानीपत

कांग्रेस की स्थिति यह है कि उसने विरोध के लिए विरोध को अपना कर्तव्य समझ लिया है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विरोध करने के लिए कांग्रेस के नेता न तो समय की नजाकत को समझते हैं और न ही मुद्दे की सामान्य समझ भी उन्हें रहती है. ‘पीएम केयर्स’ के गठन पर कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने प्रश्न उठाकर अपने उसी कर्तव्य का निर्वहन किया और जनता की नज़रों में अपनी ही किरकिरी करायी. लगता है कि वे अब तक नहीं समझ सकी हैं कि देश का नेतृत्व ऐसे हाथों में है, जिसके लिए ‘राष्ट्र सबसे पहले है’. ‘पीएम केयर्स’ के गठन पर बेकार के प्रश्नों को सर्वोच्च न्यायालय भी ख़ारिज कर चुका है. कोरोना जैसी महामारी से निपटने और देशवासियों को मदद पहुँचाने के उद्देश्य से ‘पीएम केयर्स’ का गठन किया गया है, जो तात्कालिक परिस्थितियों में निःसंदेह आवश्यक था.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का लोकतान्त्रिक व्यवहार है कि उन्होंने ‘पीएम केयर्स’ पर प्रधानमंत्री का एकाधिकार नहीं रखा. यह एक ट्रस्ट है. इसमें आने वाले दान को कैसे और कहाँ खर्च करना है, इसका निर्णय अब केवल प्रधानमंत्री नहीं करेंगे, बल्कि ट्रस्ट में शामिल सदस्य इस सम्बंध में सामूहिक निर्णय लेंगे. यह भूलना नहीं चाहिए कि भारत के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने जब ‘प्रधानमंत्री राहत कोष’ का निर्माण किया था, तो उसके लिए गठित समिति में कांग्रेस के अध्यक्ष को भी मनोनीत किया था. यानि किसी न किसी रूप में ‘प्रधानमन्त्री राहत कोष’ में नेहरु परिवार का हस्तक्षेप रहना चाहिए. हम जानते हैं कि अपवाद छोड़ दें तो नेहरु परिवार का व्यक्ति या तो प्रधानमंत्री की कुर्सी पर होता है या फिर कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर. दोनों ही स्थिति में नेहरु जी ने सरकारी खजाने पर अपने परिवार के हस्तक्षेप को बनाये रखने की योजना बनायी थी. जबकि प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष को ‘पीएम केयर्स’ ट्रस्ट में शामिल नहीं किया है, इसमें सिर्फ शासकीय सेवा के लोग ही शामिल हैं. लगता है कि इस फंड में किसी प्रकार की राजनीतिक भागीदारी न मिलने के कारण राजमाता को नागवार गुजरा है. नेहरु परिवार ऐसे समय में बिना किसी आर्थिक सहायता दिए जाने के कारण असहाय और पंगु अवस्था में है. इसलिए कोरोना के संकट में देश को ताकत देने के लिए गठित ‘पीएम केयर्स’ पर प्रश्न उठाने की अपेक्षा कांग्रेस को अपने गिरेबां में झांकना चाहिए, उसे पं. नेहरु के बनाये अपारदर्शी राहत कोष के आईने में भी अपना चेहरा एक बार देख लेना चाहिए.

प्रधानमंत्री राहत कोष और पीएम केयर्स में अंतर

किसी भी आपदा का मुकाबला सरकार अकेले दम पर नहीं कर सकती. आसन्न कोरोना संकट की चुनौती का सामना भी सामूहिक स्तर पर ही किया जा सकता है. इसके लिए सभी संभव उपाय करने आवश्यक हैं और इन्हें सामाजिक स्तर पर ही सरकार के साथ कदमताल करके लागू किया जा सकता है. अचानक आए संकट के कारण अतिरिक्त धन जुटाना भी आवश्यक हो जाता है. भारत में प्रधानमंत्री राहत कोष के रूप में ऐसी व्यवस्था की गई है, जिसके जरिए आपात जरूरतमंदों को प्रधानमंत्री द्वारा संभव आर्थिक मदद पहुंचाई जाती है. भारत विभाजन के समय पाकिस्तान से आ रहे शरणार्थियों को व्यवस्थागत ढांचा प्रदान करने के लिए प्रधानमंत्री आपदा राहत कोष, 1948 पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा गठित किया गया था. यह कोष न तो ट्रस्ट के रूप में गठित किया गया था और न ही संसद के किसी प्रावधान द्वारा अधिसूचित किया गया. आज तक इस कोष के नियम व उपबंध स्पष्ट नहीं है. यहां तक कि कैग द्वारा भी आज तक इसका ऑडिट नहीं हो सका है. 1971 में भी बांग्लादेशियों के भारत में लगातार शरणार्थी बनकर आने से उत्पन्न हुई स्थिति के कारण राहत कोष के लिए श्रीमती इंदिरा गांधी ने 5 एवं 10 पैसे का स्टाम्प जारी किया था. इसे रिफ्यूजी टैक्स भी कहा गया. 1971 में एकत्रित धन की भी आज तक कोई जानकारी नहीं दी गई है. इस कोष के संचालन में कांग्रेस अध्यक्ष को आजीवन सदस्य के रूप में नामित किया गया है. इसी के चलते बाद की परिस्थितियों में इस राहत कोष से राजनीतिक रसूख के फलस्वरूप ही धन आबंटित किया जाने लगा. इसी कारण इस कोष द्वारा जारी की जाने वाले सहायता पर प्रश्न चिन्ह उठ खड़ा हुआ. 1985 में राहत कोष की प्रबंध समिति ने फंड संचालन की सारी जिम्मेवारी प्रधानमंत्री को सौंप दी. प्रधानमंत्री को फंड वितरण हेतु सभी प्रणालियों के संचालन हेतु स्वैच्छिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए कोष के सचिव पद की नियुक्ति का अधिकार भी प्रदान कर दिया. यह निर्णय स्वयं प्रधानमंत्री राजीव गांधी की अध्यक्षता में लिया गया. इस राहत कोष का संचालन बिना किसी ट्रस्ट डीड के ही किया जा रहा था. वर्ष 2013-14 तक इस कोष में केवल 2011.37 करोड़ रूपए थे. जो 31.12.2019 तक 3800.44 करोड़ रुपए हो गये. किंतु अपने प्रधानमंत्री मोदी की कार्यशैली के चलते उन्होंने कभी इस राहत कोष की आलोचना या टिप्पणी नहीं की. प्रधानमंत्री राहत कोष में वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष के अनावश्यक हस्तक्षेप से उत्पन्न विवाद से बचने के लिए ही प्रधानमंत्री ने यह अचूक उपाय निकाला. पीएम केयर्स की स्थापना का कोरोना महामारी से लड़ने के लिए 28 मार्च 2020 को की गई और इसे एक ट्रस्ट के रूप में स्थापित किया गया. इसके सभी नियम व उपबंध स्पष्ट करते हुए इसे सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट का रूप दिया गया है. इस ट्रस्ट की अध्यक्षता पदेन प्रधानमंत्री ही करेंगे तथा इनके साथ रक्षा मंत्री, गृह मंत्री एवं वित्त मंत्री रहेंगे. यह समूह अपने-अपने क्षेत्र में 10 प्रतिष्ठित व्यक्तियों को भी नामित करेगा ताकि दी जाने वाली सहायता अधिकृत एवं प्रामाणिक बन सके.

दान में आई राशि ने प्रधानमंत्री की स्वीकार्यता और विश्वसनीयता को किया प्रकट

वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक ट्वीट के माध्यम से कहा था कि पीएम केयर्स का सारा पैसा एफिसियेंसी, ट्रांसपरैंसी, अकाउंटेबिलिटी के लिए प्रधानमंत्री राहत कोष में स्थानांतरित किया जाये. इस शब्दावली में उन्होंने अंग्रेजी के तीन शब्दों का प्रयोग किया. यह शब्द प्रधानमंत्री की कार्यशैली पर संदेह जता रहे हैं. उन्होंने इस फंड के संचालन पर अपना अविश्वास प्रकट तो किया ही, अपितु जन भावनाओं का भी अपमान किया है. उन्हें इस बात का शायद भान नहीं है कि मात्र कुछ ही दिनों में प्रधानमंत्री मोदी की अपील पर 6500 करोड़ रूपये आ चुके हैं. अच्छा ही हुआ कि सोनिया गांधी के अतार्किक ट्वीट के कारण प्रधानमंत्री मोदी की जनता में स्वीकार्यता और उनके आह्वान का असर सामने आ गया. निःसंदेह ‘पीएम केयर्स’ में आई इतनी बड़ी राशि प्रधानमंत्री मोदी की भारतीय जनमानस में विश्वसनीयता एवं लोकप्रियता को सिद्ध करती है. उनकी इस अपील के कारण केवल बड़े-बड़े औद्योगिक प्रतिष्ठान एवं धार्मिक संगठन ही नहीं, अपितु साधारण आदमी भी यथासंभव सहयोग कर रहे हैं. पीएम केयर्स की विशेषता है कि इसमें छोटी से छोटी राशि भी दी जा सकती है. इस कारण हर उस व्यक्ति को देश के लिए कुछ सहयोग करने का अवसर और गौरव मिलता है, जो आर्थिक तौर पर तो कमजोर है, लेकिन भावनात्मक पक्ष और देशभक्ति के मामले में खूब धनवान है. प्रधानमंत्री द्वारा स्थापित यह ट्रस्ट करोना संकटग्रस्त नागरिकों व सम्बंधित समस्याओं के निराकरण में प्रमुख भूमिका निभाने वाला है.

जीतेंगे हम, कोरोना हारेगा :

कांग्रेस के नेताओं की स्थिति यह है कि वे भले काम में भी प्रशंसा करना तो छोड़िये चुप्पी भी नहीं साध सकते. कुछ भी अतार्कित बयान देकर अपनी जग-हंसाई करने में ही उन्हें आनंद आने लगा है. सांसद शशि थरूर का बयान तो अत्यधिक हास्यास्पद. उनका कहना है कि इस फंड में अधिक राशि दिखाने के लिए विदेशों से आर्थिक सहायता ली जा रही है. विनोद दुआ जैसे कुछ पत्रकार भी भारतीय जनमानस विरोधी मुहिम में जुड़ चुके हैं. इन सबके बावजूद भारतीय जन भावनाएं एवं राष्ट्रीय विचारधारा प्रधानमंत्री मोदी के साथ एकजुट और पूरी ताकत के साथ खड़ी हुई है. राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में हरदम देश की मुख्यधारा के विरुद्ध रहने वाली अराष्ट्रीय ताकतें अपना रंग दिखा ही रही हैं. इनसे हमें किंचित भी घबराने की आवश्यकता नहीं है. देश का शीर्ष नेतृत्व मुखर एवं सजग है. वह हरदम भारत के बारे में ही सोचता है. कोरोना संकट प्रधानमंत्री मोदी के सक्षम नेतृत्व और जन-सहयोग में पराजित होगा. हमारी अर्थव्यवस्था पुनः अधिक तेजी से विस्तार करेगी. हमें विश्वास है कि राष्ट्रीय विचारधारा ही समृद्ध जीडीपी का आधार बनेगी. हमें सारा विश्व पुनः अधिक तेजी से अपनी अर्थव्यवस्था का विस्तार करते हुए आश्चर्यचकित होकर देखने वाला है.

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