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लोक बोलियों को लिखने – बोलने में करें शामिल – जगदीश उपासने जी

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पटना (विसंकें). माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति जगदीश उपासने जी ने कहा कि स्थानीय बोली बोलने पर आज की पीढ़ी हीनता की भावना महसूस करती है. यह संपूर्ण समाज व देश के लिए चिंता की बात है. आज अगली पीढ़ी को लोक शब्दों की जानकारी नहीं है, इसके लिए किसी बाहरी ताकत को जिम्मेदार ठहराने की बजाय हरेक व्यक्ति लोक भाषा का प्रयोग करना शुरु करे तो हम अपनी जड़ों से जुड़े रह सकते हैं. जगदीश जी शनिवार को विश्व संवाद केंद्र द्वारा आयोजित आद्य पत्रकार देवर्षि नारद स्मृति कार्यक्रम सह पत्रकारिता सम्मान समारोह में संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि अंग्रेजी शासन ने संस्कृत को मार दिया और उसकी जगह पर वर्ण संकर भाषा उर्दू, फारसी तथा सबसे अधिक अंग्रेजी थोप दी. आज स्थिति यह है कि आज का युवा न तो ठीक से हिन्दी बोल पाता है और न अंग्रेजी बोल पाता है. स्थानीय बोलियां नष्ट होने से एक क्षेत्र विशेष की जीवन शैली के बारे में भी पता करना कठिन हो जाता है. यूनेस्को की हर दिन एक रिपोर्ट आती है कि आज कौन सी बोली इस दुनिया से समाप्त हो गई. उदाहरण के लिए अंडमान-निकोबार की कई बोलियां उनके बोलने वालों की मृत्यु के साथ ही खत्म हो गई, क्योंकि उनको लिपिबद्ध करने वाला कोई नहीं था. इसलिए यह जरूरी है कि लोक बोलियों को न सिर्फ आम बोलचाल में प्रयोग किया जाए, बल्कि पत्र-पत्रिकाओं में भी लिखा जाए. उन्होंने उदाहरण देकर स्पष्ट किया कि मीडिया कैसे लोक भाषाओं से दूर होता जा रहा है. लोक भाषाओं के संरक्षण व संवर्द्धन में शिक्षण-संस्थाओं का बड़ा योगदान हो सकता है. उन्हें इन भाषाओं का प्रयोग विद्यार्थियों के बीच शुरू करना चाहिए. हर चीज सरकार के भरोसे नहीं हो सकती. सरकार पर दबाव तभी पड़ेगा, जब उसके लिए समाज खड़ा होगा. इसलिए हरेक व्यक्ति लोक भाषा को बिना किसी हीन भावना के प्रयोग करना शुरू करे और अगली पीढ़ी को इससे अवगत कराये.

कार्यक्रम के अध्यक्ष मुंगेर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रंजीत वर्मा जी ने कहा कि यह एक स्थापित मान्यता है कि किसी भी विकसित देश में दूसरे देश की भाषा नहीं बोली जाती. उदाहरण के लिए इंग्लैंड, अमेरिका व अस्ट्रेलिया छोड़कर दुनिया के किसी विकसित देश में पूर्णरूप् से अंग्रेजी नहीं बोली जाती. इसका कारण है कि दूसरी भाषा में व्यक्ति खुद को संपूर्णता में व्यक्त नहीं कर पाता. आज लोक भाषाओं से दूर होने का ही कारण है कि अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद कर जो समाचार रपट तैयार होती है, उसमें भाव के संप्रेषण गलत हो जाते हैं. उनका प्रयास है कि विश्वविद्यालय स्तर पर स्थानीय बोलियों के मॉड्यूल्स तैयार किये जाएं, इसके पीछे धारणा यह है कि किसी भी ज्ञान को हम अपनी मातृभाषा में सर्वश्रेष्ठ ढंग से समझते हैं. हम आज भी अंग्रेजी मानसिकता से ग्रसित हैं इसलिए लोक बोलियों के प्रयोग में हिचकते हैं.

लोक भाषा विशेषज्ञ प्रमोद कुमार जी ने कहा कि भाव और संवेदना ही लोक की ताकत है. लोक जीवन में विश्वासों की अधिकता होती है. व्यक्ति समाज और प्रकृति का यहां अद्भुत संयोजन दिखता है. लोक शब्दों के संरक्षण का सबसे अच्छा तरीका है कि इसका प्रयोग करने में गर्व महसूस करें, हीनता नहीं.

विश्व संवाद केंद्र के सचिव डॉ. संजीव जी ने केंद्र की गतिविधियों के बारे में जानकारी दी. विश्व संवाद केंद्र द्वारा पत्रकारिता सम्मान समारोह में तीन पत्रकारों को सम्मानित किया गया. जीवन भर की पत्रकारीय उपलब्धि के लिए वरिष्ठ पत्रकार देवेन्द्र मिश्र जी को देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद पत्रकारिता शिखर सम्मान, विशेष रिपोर्टिंग के लिए पत्रकार अविनाश कुमार जी को केशवराम भट्ट पत्रकारिता सम्मान तथा सृजनात्मक पत्रकारिता के लिए संतोष कुमार जी को बाबूराव पटेल रचनाधर्मिता सम्मान से सम्मानित किया गया. केंद्र की स्मारिका ‘बिहार में मीडिया’ का विमोचन किया गया. विश्व संवाद केंद्र के अध्यक्ष श्रीप्रकाश नारायण सिंह जी सभी का आभार व्यक्त किया.

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