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वामपंथी गिरोह – झूठी खबरें फैलाकर समाज में अस्थिरता पैदा करने का प्रयास कर रहा

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नई दिल्ली. संकट के इस काल में जब सभी को साथ आकर देश को आगे बढ़ाने के काम में लगना है, तब भी कुछ लोग फेक न्यूज़ के माध्यम से सरकार और समाज को अस्थिर करने के प्रयासों में लगे हैं. आज मोबाइल हर हाथ में है, कोई भी खबर तेजी से फैलती है. ऐसे में एक गलत खबर का प्रभाव मिनटों में ही लाखों-करोड़ों लोगों तक पहुंच जाता है, इस तकनीक को विपक्षी दल देश के खिलाफ इस्तेमाल करने में लगे हैं. इस तकनीक के माध्यम से वह अफवाहें और गलत सूचनाएं फैला रहे हैं. इससे पहले सीएए विरोधी प्रदर्शनों और दिल्ली दंगों के दौरान भी तरह-तरह की झूठी खबरें प्रसारित की गई थीं, जिनके कारण सामाजिक सद्भावना बिगड़ी और कई जगहों से हिंसा तक की खबरें आईं थीं.

लॉकडाउन के दौरान दिल्ली के कई इलाकों में अफवाह फैली कि उत्तरप्रदेश की सीमाओं पर सरकार बसों का इंतजाम कर रही है, जिसके परिणामस्वरुप हजारों की संख्या में प्रवासी श्रमिकों ने सीमाओं की तरफ कूच किया.

ट्रेनों को लेकर फैलाया भ्रम

जब देश भर में प्रवासियों की समस्या शुरू हुई तो उनकी समस्याओं के समाधान के लिए केंद्र सरकार ने श्रमिक ट्रेनों की शुरुआत की. इसका उद्देश्य था कि अपने घरों से दूर दूसरे राज्यों में काम कर रहे श्रमिकों को उनके घर तक पहुँचाया जा सके, लेकिन इस प्रयास को फेक न्यूज़ के माध्यम से प्रभावित करने के प्रयास किये गए.

कई बड़े पत्रकारों और मीडिया संस्थानों ने खबर चलायी कि श्रमिक ट्रेनें रास्ता भटक रही हैं, प्रसारित किया गया कि 16 मई से सूरत से सिवान के लिए चली ट्रेन 9 दिनों के बाद अपने गंतव्य पर पहुंची और इस ट्रेन में एक बच्चे की मौत खाना न मिलने की वजह से हुई. इसके बाद इसी तरह की मिलती जुलती दर्जनों खबरें न्यूज़ मीडिया वेबसाइट पर तैरने लगीं. इन ख़बरों को प्रमुखता से स्थान देने वाले मीडिया संस्थानों ने एक बार इसकी जांच करना भी जरुरी नहीं समझा. नतीजतन 26 मई को पीआईबी ने खबर का खंडन किया और इसे फेक न्यूज़ बताया. साथ ही सच्चाई सबके सामने रखी.

लेकिन फर्जी ख़बरों की आड़ में अपना राजनैतिक हित साध रहे पत्रकार उसके बाद भी नहीं रुके, जिसके बाद रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष वीके यादव ने प्रेस कांफ्रेंस कर स्थिति स्पष्ट की.

ट्रेनों की देरी के साथ यह भी प्रचारित किया जा रहा था कि श्रमिक ट्रेनों में भोजन न मिलने के कारण कई लोगों की भूख से मौत हो गई है. पीआईबी फैक्ट चेक ने इस खबर को भी ‘फेक न्यूज़’ बताया.

गौर करने वाली बात है कि यह झूठी और भ्रामक खबरें शेयर करने वाले अपने क्षेत्र के प्रतिष्ठित और नामी गिरामी लोग थे, जिनके पास इन ख़बरों की सच्चाई जानने के तमाम संसाधन मौजूद थे. मगर उन्होंने जानबूझकर भ्रम निर्माण करने का प्रयास किया.

हिन्दू मुस्लिम की राजनीती का हथियार फेक न्यूज़

एक वायरल विडियो में कुछ लोग सड़क किनारे एक महिला को बुरी तरह से पीट रहे हैं. वीडियो में देखा जा सकता है कि चार पांच लोग हाथ से, पैरों से, डंडे से, बुरी तरह महिला की पिटाई कर रहे हैं. वीडियो में एक पुलिसकर्मी भी दिखाई दे रहा है, लेकिन वह कोई दखल नहीं देता दिख रहा है.

इस वीडियो के साथ एक वेरीफाइड ट्विटर यूजर “Ali Keskin” ने दावा किया कि “भारत में मुसलमानों को प्रताड़ित किया जाता है और अगर हम उनकी रक्षा नहीं करेंगे तो उनका उत्पीड़न जारी रहेगा. यह एकजुट होने का समय है. भारत सरकार जवाबदेह होगी.”

इंडिया टुडे की फैक्ट चेक टीम की जाँच पर सामने आया कि दावा गलत है. यह घटना उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में एक पारिवारिक विवाद से जुड़ी है और सांप्रदायिक नहीं है. पुलिस ने स्पष्ट किया है कि पीड़ित और आरोपी दोनों हिंदू हैं और एक ही परिवार से हैं.

 

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